पृथ्वी की सुरक्षा के लिये सबसे पहले पर्यावरण संतुलन पर विचार मंथन जरूरी है। जब तक पृथ्वी का पर्यावरण सभी प्राणियों के अनुकूल नहीं होगा, तब तक गर्म हो रही पृथ्वी पर चिंता व्यक्त करना समय की बर्बादी ही होगी। धरती की गोद पर पलने वाली नदियों से लेकर हरे भरे जंगल, बाग बगीचे सभी का अस्तित्व मनुष्य ने अपने स्वार्थ के चलते या तो समाप्त कर दिया है या उनके जीवन पर संकट पैदा कर रखा है। धरती को ठंडक पहुंचाने वाले शीतल और अच्छादित वन कट जाने से धरती का तापमान बढ़ने लगा है। शहरों में सड़क किनारे लगाये गये वृक्षों को विकास और सड़क चौड़ीकरण योजना ने लील लिया है। धर्म शास्त्रों में बरगद, पीपल, तुलसी, आंवला जैसे पौधों और वृक्षों को देव तुल्य बताये जाने और पूजे जाने की परंपरा भी विलुप्त देखी जा रही है। इन प्रजाति के वृक्षों को भी काटने से परहेज नहीं किया जा रहा है। मनुष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिये लगाये जाने वाले कारखानों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जो विषैले धुओं के माध्यम से पृथ्वी ही नहीं वरन पूरे वातावरण को प्रदूषित कर रहे है।
हरियाली की कमी से बढ़ रहा तापमान
भारत वर्ष के लिये 21वीं सदी की शुरूआत विकास बनाम विनाश कही जा सकती है। वर्तमान समय में हमारे देश में हरियाली की कमी बड़ी तीव्रता से हो रही है। ग्रामीण क्षेत्रों को यातायात के साधनों से जोड़ने या फिर कारखानों के स्थापना के नाम पर उस क्षेत्र में व्याप्त जंगलों को काटा जा रहा है। कई किलो तक फैले एवं हरियाली से युक्त जंगलों के विनाश का कारण विकास से जोड़ा जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार 20वीं शताब्दी के आरंभ में भातर वर्ष के धरती पर लगभग 30 प्रतिशत हिस्सों पर जंगल और वृक्षों का राज था। अब उसी भारत वर्ष में 21वीं शताब्दी के शुरूआती दशकों में जंगल अथवा हरित पट्टी वाला क्षेत्र घटकर 13 से 14 प्रतिशत रह गया है। यही वह कारण है जो पर्यावरण को असंतुलित कर रहा है और धरती का तापमान लगातार बढ़ता ही जा रहा है। ग्रीष्मकाल में जहां बहुत अधिक गर्मी पड़ने पर तापमान 38 से 40 डिग्री सेल्सियस हुआ करता था, वह अब 48 से 50 डिग्री पहुंच रहा है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार प्रतिवर्ष 13 हजार वर्ग किमी वन धराशायी हो रहे है। परिणाम स्वरूप हरित गृह गैसों में 20 प्रतिशत तक की वृध्दि दर्ज की गई है। इसका दूसरा नकारात्मक पहलू वनों की मिट्टी में कार्बन डाईऑक्साईड की मात्रा का बढ़ जाना भी है। यह सर्वविदित तथ्य है कि मानसून की सक्रियता भी वनों पर ही निर्भर करती है। साथ ही वृक्ष ही वह ताकत है जो धरती पर मिट्टी की पकड़ बनाये रखते है, बाढ़ को रोकते है और उपजाऊ मृदा को बनाये रखते है। धरती से हरियाली को दूर करना प्रकृति के साथ भयंकर खिलवाड़ है। जिसके कारण हम अपनी बहुमूल्य जैव विविधता को भी खोते जा रहे है।
पर्यावरण सुरक्षा महज नारा ही रहा
वर्तमान समय में पर्यावरण सुरक्षा पृथ्वी के अस्तित्व का प्रश्न बन गया है। यह मानवीय जीवन से घनिष्ठ संबंध रखने वाला सबसे बड़ा संकट बना हुआ है। पर्यावरणीय संकट के साथ साथ इस पृथ्वी पर जीवनोपयोगी कार्यकलाप का भविष्य भी संकट में दिखाई पड़ रहा है। विसंगति तो यह है कि विकास की अंधाधुंध दौड़ ने पर्यावरण सुरक्षा को महज एक नारे तक सीमित कर रखा है। हम अपने पर्यावरण को अनुकूल बनाये रखने के मामले में बहुत अधिक पीछे रह गये है। हमारी विकास की सोच इतनी बलवती हो गई है कि आने वाले निकट भविष्य में पर्यावरण की जागरूकता के संबंध में कोई क्रांतिकारी पर्यावरण की संभावना नजर नहीं आ रही है। जिस प्रकार के हम अपने स्वार्थ पूर्ति के लिये जीवन व्यतीत कर रहे है, इससे यही कहा जा सकता है कि 'डुबते जहाज पर सवार सभी लोग देर सबेर डुबेेंगे ही।' कारखानों से निकल रहा धुंआ, रसायनों से दूषित जल का नदियों में जाकर मिल जाना विभिन्न बीमारियों का कारण बन रहा है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, सिमटते जंगलों की वजह से बंजर होती भूमि और रेगिस्तान का बढ़ता दायरा एक दूसरे पर आधारित है। भूमि कटाव से प्रतिवर्ष बाढ़ का खतरा बढ़ता जा रहा है।
अर्थ ऑवर की शुरूआत ग्लोबल वार्मिंग के प्रति जागरूकता
पृथ्वी पर बढ़ रही ग्लोबल वार्मिंग मनुष्य सहित प्रत्येक प्राणियों के लिये खतरा बनी हुई है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण बर्फ के पहाड़ों का पिघलना और समुद्र का जलस्तर बढ़ना, समुद्र किनारे बसे बड़े बड़े महानगरों के लिये जल प्लावन की स्थिति निर्मित कर रहा है। पृथ्वी पर बढ़ रहा खतरा पूरे विश्व में माथे पर चिंता की लकीर खींच चुका है। इसी ग्लोबल वार्मिंग के प्रति सचेतता बढ़ाने और वैश्विक स्तर पर लोगों को जोड़ने के लिये आस्ट्रेलिया ने एक अभियान की शुरूआत की। आस्ट्रेलिया की राजधानी सिडनी मे आज से 6 वर्ष पूर्व सन 2007 में 'अर्थ ऑवर' की शुरूआत पृथ्वी को बचाने जनजागरूकता कार्यक्रम के रूप में पहचान बना पाया है। प्रारंभिक चरण में आस्ट्रेलिया के प्रयास में लगभग 20 लाख लोगों को इस अभियान से जोड़ने में सफलता पाई। तब से ग्लोबल वार्मिंग अथवा जलवायु परिवर्तन से निपटने से संबंधित जागरूकता कार्यक्रम के रूप में विश्व स्तर पर 1 घंटे तक (रात्रि 8.30 बजे से 9.30 बजे तक) अपने घरों, कारखानों, कार्यालयों, एतिहासिक भवनों की ऐसी बिजलियों को बंद कर, जिनकी जरूरत नहीं है, एक ऐसा संदेश प्रसारित कर रहे है कि वे सब भी आस्ट्रेलिया द्वारा शुरू किये गये अभियान में शामिल है। मार्च माह के लगभग तीसरे सप्ताह में एक घंटे तक बिजलियां बंद रखने का अभियान अब अंर्तराष्ट्रीय कार्यक्रम बन गया है। अब शालाओं में भी इस प्रकार की जागरूकता का प्रसार रैली आदि के माध्यम से विश्व के सामने लाया जा रहा है। इस वर्ष 'अर्थ ऑवर डे' 23 मार्च को बनाया गया, और इस दिन शहरों तथा प्रसिध्द इमारतों ेकी बत्तियां एक घंटे बंद रखने पर विशेष ध्यान दिया गया। इस प्रकार की जागरूकता ने अब पारिवारिक और व्यक्तिगत रूप से भी लोगो को अभियान में जोड़ने में सफलता प्राप्त करना शुरू किया है। सन 2013 के मार्च में ग्लोबल वार्मिंग से निपटने अर्थ ऑवर दिवस की प्रासंगिकता ने 55 देशों को अभियान से जोड़ दिया है।
वैश्विक तापमान होगा तबाही का कारण
आने वाले समय में वैश्विक तापमान का सीधा प्रभाव जलवायु पर पड़ेगा, जो वातावरण को पूरी तरह बदल देगा। चक्रवात और वारभाटा जैसी प्राकृतिक आपदाओं की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हो सकती है। पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों में गर्मी बढ़ने के कारण प्रलय की स्थिति भी आ सकती है। पृथ्वी में ताप वृध्दि के कारण ही हिम नदियों की बर्फ में तेजी के साथ पिघलाव होगा, परिणाम स्वरूप एक तरफ जहां सामुद्रिक जलस्तर में वृध्दि होगी, वहीं अनेक नदियां सुख जायेंगी। वैज्ञानिकों का मानना है कि ताप वृध्दि इसी तरह बनी रही तो भारत और बंग्लादेश के समृध्द कृषि क्षेत्र सुखे की चपेट में आ जायेंगे। वैज्ञानिकों ने ऐसी भी संभावना जतायी है कि ग्रीष्मकाल में सुखा पड़ेगा और शीतकाल में जल प्लावन की दृश्य उत्पन्न होगा। इसी कारण फसल चक्र पूरी तरह गड़बड़ा जायेगा और विश्व के अधिकांश देश अकाल की चपेट में आ जायेंगे। इसी तरह अनेक प्रकार की जानलेवा बीमारियों का प्रसार होगा। मलेरिया, हैजा, डैंगू, फाईलेरिया जैसी बीमारियां अनियंत्रित होकर सर्वव्यापी हो जायेंगी।
पृथ्वी को बचाने ईमानदार प्रयास जरूरी
प्रकृति में प्रदूषण एवं अन्य संकटों के उपजने के मुख्य कारणाें में मानवीय कारण ही सबसे बड़ा कारण है। इंसान ही है जिसमें प्रकृति का सबसे अधिक शोषण किया है। मनुष्य आज भी प्रकृति के विनाश कार्य में लगा हुआ है। जंगल कटते जा रहे है, नदियां प्रदूषित हो रही है, ग्लेशियर पिघल रहे है, समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। ये ऐसे कारण है जिससे ग्लोबल वार्मिंग एवं अन्य आपत्तियां बढ़ती जा रही है। अत: पर्यावरण संतुलन के लिये अधिक से अधिक पेड़ पौधों को लगाना उनकी देखभाल करना सभी को अपना कर्तव्य मानना होगा। वैश्विक ताप के निवारक उपायों में गैसों के उत्सर्जन पर भारी कटौती के साथ साथ प्रभावकारी उपायों पर गंभीर चिंतन करना होगा। बॉयो गैस का उपयोग भी वैश्विक तापमान पर लगाना लगाने में सहायक हो सकता है।
हरियाली की कमी से बढ़ रहा तापमान
भारत वर्ष के लिये 21वीं सदी की शुरूआत विकास बनाम विनाश कही जा सकती है। वर्तमान समय में हमारे देश में हरियाली की कमी बड़ी तीव्रता से हो रही है। ग्रामीण क्षेत्रों को यातायात के साधनों से जोड़ने या फिर कारखानों के स्थापना के नाम पर उस क्षेत्र में व्याप्त जंगलों को काटा जा रहा है। कई किलो तक फैले एवं हरियाली से युक्त जंगलों के विनाश का कारण विकास से जोड़ा जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार 20वीं शताब्दी के आरंभ में भातर वर्ष के धरती पर लगभग 30 प्रतिशत हिस्सों पर जंगल और वृक्षों का राज था। अब उसी भारत वर्ष में 21वीं शताब्दी के शुरूआती दशकों में जंगल अथवा हरित पट्टी वाला क्षेत्र घटकर 13 से 14 प्रतिशत रह गया है। यही वह कारण है जो पर्यावरण को असंतुलित कर रहा है और धरती का तापमान लगातार बढ़ता ही जा रहा है। ग्रीष्मकाल में जहां बहुत अधिक गर्मी पड़ने पर तापमान 38 से 40 डिग्री सेल्सियस हुआ करता था, वह अब 48 से 50 डिग्री पहुंच रहा है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार प्रतिवर्ष 13 हजार वर्ग किमी वन धराशायी हो रहे है। परिणाम स्वरूप हरित गृह गैसों में 20 प्रतिशत तक की वृध्दि दर्ज की गई है। इसका दूसरा नकारात्मक पहलू वनों की मिट्टी में कार्बन डाईऑक्साईड की मात्रा का बढ़ जाना भी है। यह सर्वविदित तथ्य है कि मानसून की सक्रियता भी वनों पर ही निर्भर करती है। साथ ही वृक्ष ही वह ताकत है जो धरती पर मिट्टी की पकड़ बनाये रखते है, बाढ़ को रोकते है और उपजाऊ मृदा को बनाये रखते है। धरती से हरियाली को दूर करना प्रकृति के साथ भयंकर खिलवाड़ है। जिसके कारण हम अपनी बहुमूल्य जैव विविधता को भी खोते जा रहे है।
पर्यावरण सुरक्षा महज नारा ही रहा
वर्तमान समय में पर्यावरण सुरक्षा पृथ्वी के अस्तित्व का प्रश्न बन गया है। यह मानवीय जीवन से घनिष्ठ संबंध रखने वाला सबसे बड़ा संकट बना हुआ है। पर्यावरणीय संकट के साथ साथ इस पृथ्वी पर जीवनोपयोगी कार्यकलाप का भविष्य भी संकट में दिखाई पड़ रहा है। विसंगति तो यह है कि विकास की अंधाधुंध दौड़ ने पर्यावरण सुरक्षा को महज एक नारे तक सीमित कर रखा है। हम अपने पर्यावरण को अनुकूल बनाये रखने के मामले में बहुत अधिक पीछे रह गये है। हमारी विकास की सोच इतनी बलवती हो गई है कि आने वाले निकट भविष्य में पर्यावरण की जागरूकता के संबंध में कोई क्रांतिकारी पर्यावरण की संभावना नजर नहीं आ रही है। जिस प्रकार के हम अपने स्वार्थ पूर्ति के लिये जीवन व्यतीत कर रहे है, इससे यही कहा जा सकता है कि 'डुबते जहाज पर सवार सभी लोग देर सबेर डुबेेंगे ही।' कारखानों से निकल रहा धुंआ, रसायनों से दूषित जल का नदियों में जाकर मिल जाना विभिन्न बीमारियों का कारण बन रहा है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, सिमटते जंगलों की वजह से बंजर होती भूमि और रेगिस्तान का बढ़ता दायरा एक दूसरे पर आधारित है। भूमि कटाव से प्रतिवर्ष बाढ़ का खतरा बढ़ता जा रहा है।
अर्थ ऑवर की शुरूआत ग्लोबल वार्मिंग के प्रति जागरूकता
पृथ्वी पर बढ़ रही ग्लोबल वार्मिंग मनुष्य सहित प्रत्येक प्राणियों के लिये खतरा बनी हुई है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण बर्फ के पहाड़ों का पिघलना और समुद्र का जलस्तर बढ़ना, समुद्र किनारे बसे बड़े बड़े महानगरों के लिये जल प्लावन की स्थिति निर्मित कर रहा है। पृथ्वी पर बढ़ रहा खतरा पूरे विश्व में माथे पर चिंता की लकीर खींच चुका है। इसी ग्लोबल वार्मिंग के प्रति सचेतता बढ़ाने और वैश्विक स्तर पर लोगों को जोड़ने के लिये आस्ट्रेलिया ने एक अभियान की शुरूआत की। आस्ट्रेलिया की राजधानी सिडनी मे आज से 6 वर्ष पूर्व सन 2007 में 'अर्थ ऑवर' की शुरूआत पृथ्वी को बचाने जनजागरूकता कार्यक्रम के रूप में पहचान बना पाया है। प्रारंभिक चरण में आस्ट्रेलिया के प्रयास में लगभग 20 लाख लोगों को इस अभियान से जोड़ने में सफलता पाई। तब से ग्लोबल वार्मिंग अथवा जलवायु परिवर्तन से निपटने से संबंधित जागरूकता कार्यक्रम के रूप में विश्व स्तर पर 1 घंटे तक (रात्रि 8.30 बजे से 9.30 बजे तक) अपने घरों, कारखानों, कार्यालयों, एतिहासिक भवनों की ऐसी बिजलियों को बंद कर, जिनकी जरूरत नहीं है, एक ऐसा संदेश प्रसारित कर रहे है कि वे सब भी आस्ट्रेलिया द्वारा शुरू किये गये अभियान में शामिल है। मार्च माह के लगभग तीसरे सप्ताह में एक घंटे तक बिजलियां बंद रखने का अभियान अब अंर्तराष्ट्रीय कार्यक्रम बन गया है। अब शालाओं में भी इस प्रकार की जागरूकता का प्रसार रैली आदि के माध्यम से विश्व के सामने लाया जा रहा है। इस वर्ष 'अर्थ ऑवर डे' 23 मार्च को बनाया गया, और इस दिन शहरों तथा प्रसिध्द इमारतों ेकी बत्तियां एक घंटे बंद रखने पर विशेष ध्यान दिया गया। इस प्रकार की जागरूकता ने अब पारिवारिक और व्यक्तिगत रूप से भी लोगो को अभियान में जोड़ने में सफलता प्राप्त करना शुरू किया है। सन 2013 के मार्च में ग्लोबल वार्मिंग से निपटने अर्थ ऑवर दिवस की प्रासंगिकता ने 55 देशों को अभियान से जोड़ दिया है।
वैश्विक तापमान होगा तबाही का कारण
आने वाले समय में वैश्विक तापमान का सीधा प्रभाव जलवायु पर पड़ेगा, जो वातावरण को पूरी तरह बदल देगा। चक्रवात और वारभाटा जैसी प्राकृतिक आपदाओं की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हो सकती है। पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों में गर्मी बढ़ने के कारण प्रलय की स्थिति भी आ सकती है। पृथ्वी में ताप वृध्दि के कारण ही हिम नदियों की बर्फ में तेजी के साथ पिघलाव होगा, परिणाम स्वरूप एक तरफ जहां सामुद्रिक जलस्तर में वृध्दि होगी, वहीं अनेक नदियां सुख जायेंगी। वैज्ञानिकों का मानना है कि ताप वृध्दि इसी तरह बनी रही तो भारत और बंग्लादेश के समृध्द कृषि क्षेत्र सुखे की चपेट में आ जायेंगे। वैज्ञानिकों ने ऐसी भी संभावना जतायी है कि ग्रीष्मकाल में सुखा पड़ेगा और शीतकाल में जल प्लावन की दृश्य उत्पन्न होगा। इसी कारण फसल चक्र पूरी तरह गड़बड़ा जायेगा और विश्व के अधिकांश देश अकाल की चपेट में आ जायेंगे। इसी तरह अनेक प्रकार की जानलेवा बीमारियों का प्रसार होगा। मलेरिया, हैजा, डैंगू, फाईलेरिया जैसी बीमारियां अनियंत्रित होकर सर्वव्यापी हो जायेंगी।
पृथ्वी को बचाने ईमानदार प्रयास जरूरी
प्रकृति में प्रदूषण एवं अन्य संकटों के उपजने के मुख्य कारणाें में मानवीय कारण ही सबसे बड़ा कारण है। इंसान ही है जिसमें प्रकृति का सबसे अधिक शोषण किया है। मनुष्य आज भी प्रकृति के विनाश कार्य में लगा हुआ है। जंगल कटते जा रहे है, नदियां प्रदूषित हो रही है, ग्लेशियर पिघल रहे है, समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। ये ऐसे कारण है जिससे ग्लोबल वार्मिंग एवं अन्य आपत्तियां बढ़ती जा रही है। अत: पर्यावरण संतुलन के लिये अधिक से अधिक पेड़ पौधों को लगाना उनकी देखभाल करना सभी को अपना कर्तव्य मानना होगा। वैश्विक ताप के निवारक उपायों में गैसों के उत्सर्जन पर भारी कटौती के साथ साथ प्रभावकारी उपायों पर गंभीर चिंतन करना होगा। बॉयो गैस का उपयोग भी वैश्विक तापमान पर लगाना लगाने में सहायक हो सकता है।
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