शनिवार, 4 मई 2013

जिस देश में गंगा बहती थी.......

औद्योगिक सभ्यता विनाश की ओर ले जा रहा है।  विज्ञान केवल ध्वंस (मारने) के लिए है। पौराणिक काल बताता है पर्यावरण को प्रदूषित किए बगैर युध्द नियमानुसार चलते थे। कौशलपूर्वक छोड़े गए तीर वापस आ जाते थे। आधुनिक काल के मिसाइल वापस नहीं आते इसे छोड़ देने का मतलब जीव हत्या और प्रदूषण फैला देना है। इसकी सजा व्यक्ति को मिलती है व्यवस्था को क्यों नहीं मिलती सजा...?
गंगोत्री से गंगा सागर तक बहने वाली गंगा को हम मां कहते हैं और उद्योग प्लास्टिक, मानव तीनों ही कारण बन गंगा को गंदा भी कर रहे। गंगा के बेसिन में 40 करोड़ लोग बसते हैं। इस गंगा में 290 करोड़ लीटर गंदा पानी जा रहा है। 30 करोड़ लीटर तो अकेले बनारस (काशी वाराणसी) में सात किलोमीटर के क्षेत्र में 30 नाले गंगा में गिर रहे हैं। 14 शहरों से प्लांट के सीवरेज इसी गंगा में गिर रहे हैं। जल का मानव के स्वास्थ्य पर असरकारी प्रभाव होता है। 11 रायों के 40 प्रतिशत कृषि भूमि गंगा से सिंचित होते है। ऐसा भी एक आरोप सामने आया है कि जहां से गंगा बह रही है वहां कैंसर के मरीज बढ़ रहे हैं। यह भी कि गंगा जल में सभी बीमारियों के कीटाणु है। कई-कई कारणों से गंगा पर चिंता और नाराजगी दोनों बढ़ी है। 20 फरवरी 2005 को प्रधानमंत्री ने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया। इससे पहले अप्रैल 1986 को राजीव गांधी ने गंगा एक्शन प्लान शुरू की। यह तब हुआ जब एक हजार 20 करोड़ रुपये गंगा पर साफ-सफाई के लिए खर्च हो चुके थे। पं. बंगाल राय सरकार ने 1996 से अब तक 40 करोड़ रुपये गंगा की सफाई में खर्च कर दिए। भारत की अन्य नदियों का उध्दार भी गंगा के नाम से हो जाए तो कुछ बात बने। पांच सदस्य देशों (ब्रिक्स) का 5वां सम्मेलन दक्षिण अफ्रीका के समुद्र तटीय शहर डरबन में चलकर 27 मार्च 2013 को तेरह पन्नों के बने घोषणा पत्र के साथ संपन्न हुआ। इसमें जो बात निकल कर सामने आई वह ब्रिक्स डेवलपमेंट बैंक की स्थापना है, जिसमें भारत 18 अरब डालर का वित्तीय सहयोग देगा। यह बात भी महत्वपूर्ण रूप से स्पष्ट हुआ कि प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने चीन के राष्ट्रपति जी जिनपिंग से अपने 25 मिनट की चर्चा में ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध (चीन द्वारा बनाए जा रहे) के प्रति अपनी चिंता जताई। 11 मार्च 2001 को राय सभा में एक भाजपा सांसद ने चर्चा में बताया कि नदियों की सुरक्षा के लिए नदी 
आयुर्विज्ञान संस्थान बननी चाहिए। प्रधान मंत्री ने इसे तवाो दी है और पत्र को आगे बढ़ा दिया है।
क्या नदियों का बहाव प्रदूषण मुक्त है... यह प्रश्न विभिन्न ढंग से उच्च निम्न सदन और रायों के  विधानसभा (सदन) में उठते रहते हैं। परम्परा है कि गंगोत्री हरिद्वार या प्रयोग से गंगा का जल लेकर रामेश्वर में चढ़ाने की। हम गंगा को जीवनदायिनी कहते हैं। मलमूत्र और चमड़ा कारखानों से निकले कोमियान (प्रदूषित रसायन) को गंगा में डालते हैं। कलकत्ता हावड़ा ब्रिज के नीचे से बह रही गंगा में दोनों ओर के घाटों में खड़े होकर गंगा में बहते मटमैले जल में मानव मल को देखा जा सकता है। मृत्यु को प्राप्त कर रहा व्यक्ति दो चम्मच गंगा जल घुटक कर और मुंह में डालने वाले परिजन संतुष्ट होते मिलते हैं। भारत में 50 प्रतिशत परिवारों में गंगाजल अनिवार्यत: रखा मिलता हैं। इस गंगा की जो स्थिति बनती दिख रही उसने राजकपूर को यह कहने मजबूर किया कि क्या हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है?... उन्होंने 'राम तेरी गंगा मैली' नाम से फिल्म बना डाली। कुरान में लिखा है पानी का बेजा इस्तेमाल न करें। श्रीमद्भागवत के 30 वें अध्याय से लिखा है जो गंगा को गंदा करेगा उसे नरक मिलेगा।
केदारनाथ यमुनोत्री से निकली यम की बहन यमुना का गुस्सा भी फट पड़ा है। मार्च 2013 के प्रयाग कुंभ के अंतिम दिनों में यमुना की गदंगी पर लाखों श्रध्दालुओं ने रैली (यमुना बचाओ) निकाली। युनिसेफ ने कह दिया है कि दिल्ली में यमुना बहुत गंदी है। इसके 22 किलो मीटर क्षेत्र में यमुना बहती है, लेकिन यह नाले के रूप में।  यमुना में डेढ़ करोड़ व्यक्तियों का मलमूत्र जा रहा। मथुरा में ही 4 गंदे नाले यमुना में गिर रहे। ऊपर की बातें स्पष्ट संकेत दे रही हैं कि आदमी जात पर यमराज अपने दूतों के साथ टूट पड़ेंगे, नरकवासी बनाने के लिए। लंदन की टेम्स नदी सफाई और व्यवस्था के नाम से बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन इसे पवित्र और व्यवस्थित बना दिया गया है। यह नदी लंदन की शान बनी है। गुजरात की नदी साबरमती भी गटर बन गया था। इसे व्यवस्थित कर आलोचना मुक्त कर दिया गया है। जल ही जीवन है। जल है तो अन्न है। सब कुछ जानते-समझते जल के प्रति समाज अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सजग सचेत नहीं है। छत्तीसगढ़ के कई बड़े जलाशय केवल खेतों में सिंचाई करने के लिए बने, लेकिन इसका पानी उद्योगों के लिए काम की चीज हो गई है। पानी भाप बनाकर उड़ाया जा रहा है। नदियों का बहाव टूट गया है।  एक और नया संगठन खड़ा करने की कोशिशें क्यों होती हैं। साफ बात है जब तक गंगा और दूसरी नदियां हमारे कारण गंदी है तो जाति समाज भी इसी दिशा चलेगा।

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