शुक्रवार, 24 मई 2013

बर्फ की चादर में लिपटी सोलंग


मस्त हवा के झोंके, पंछियों का कलरव और दूर कहीं झरने का कोलाहल समूचे परिवेश को जादुई बना देता है। गर्मियों में भी यहां सैलानियों की खूब भीड रहती है और लाहौल घाटी जाने वाले सैलानी यहां जरूर पड़ाव डालते हैं


हिमाचल प्रदेश की मनाली घाटी में स्थित सोलंग नाला एक ऐसा स्थल है जो सैलानियों, साहसिक पर्यटन के शौकीनों, रोमांचक क्रीड़ा प्रेमियों और फिल्मी हस्तियों को बार-बार यहां आने का न्योता देता दिखता है। हर मौसम में सोलंग का मिजाज देखते ही बनता है। गर्मियों में जहां सोलंग में बिछी हरियाली सहसा ही मन मोह लेती है, वहीं सर्दियों में यहां पहुंचकर ऐसा लगता है जैसे बर्फ के साम्राय में आ गए हों। सोलंग नाले के इर्द-गिर्द बसी है सोलंग घाटी। यह नाला ब्यास नदी का मुख्य स्त्रोत माना जाता है। नाले के शीर्ष पर ब्यास कुंड स्थित है। कुल्लू-मनाली घाटियों के ढलानें और उफनती नदियां वैसे भी रोमांच प्रेमियों के लिए स्वर्ग से कम नहीं हैं। लेकिन सोलंग घाटी ने सर्वाधिक ख्याति अर्जित करके देश-विदेश के पर्यटन मानचित्र पर अपना नाम अंकित करवाया है। गर्मियों में जहां सोलंग में आकाश में उड़ने के साहसिक खेलों का आयोजन होता है, वहीं सर्दियों में यहां की बर्फानी ढलानों पर फिसलता रोमांच देखते ही बनता है।

साहसिक खेलों का आयोजन
हिमाचल प्रदेश में कई ऐसे स्थल हैं जहां विभिन्न साहसिक खेलों का आयोजन किया जाता है, लेकिन सोलंग एकमात्र ऐसा स्थल है जहां आकाश में उड़ने के रोमांचक खेलों से लेकर हिमानी क्रीड़ाओं तक का आयोजन होता है। यहां कई बार राष्ट्रीय शीतकालीन खेल आयोजित हो चुके हैं। यहां की ढलानें स्कीइंग के लिए दुनिया की बेहतरीन प्राकृतिक ढलानों में शुमार की जाती हैं। मनाली स्थित पर्वतारोहण संस्थान तो 1961 से यहां स्कीइंग का प्रशिक्षण दे रहा है और यहां के कई युवक-युवतियों ने इस संस्थान से स्कीइंग का प्रशिक्षण हासिल करने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन किया है।

प्रकृति की मनोरम छटा
हिमाचल प्रदेश के खूबसूरत मनाली नगर से सोलंग की दूरी महज 13 किलोमीटर है। समुद्र तल से 2480 मीटर की उंचाई पर स्थित सोलंग में प्रकृति की अनुपम छटा देखते ही बनती है। रई, तोच्च और खनोर के फरफराते पेड़ वातावरण में संगीत घोलते प्रतीत होते हैं। पृष्ठभूमि में चांदी से चमकते खूबसूरत पहाड़ हैं, जिनका सौंदर्य शाम की लालिमा में और भी निखर जाता है। मनाली से सोलंग टैक्सी, कार या दुपहिया वाहन द्वारा भी पहुंचा जा सकता है और सोलंग के सौंदर्य को आत्मसात करके शाम को आप बडे अाराम से मनाली पहुंच सकते हैं। रुकना चाहें तो यहां कुछ रिजॉर्ट भी हैं। सर्दियों में जब यहां की पर्वत श्रृंखलाएं बर्फ की सफेद चादर में लिपट जाती हैं तो यहां का नजारा ही बदल जाता है। जिधर निगाह दौड़ाएं, बर्फ ही बर्फ। जमीन पर जमी बर्फ, दरख्तों पर लदी बर्फ, नदी-नालों पर तैरती बर्फ और पहाड़ों के सीने से लिपटी बर्फ- बड़ा अदभुत और मोहक दृश्य होता है। सोलंग घाटी जब बर्फ से श्रृंगार करती है तो इसका नैसर्गिक रूप देखते ही बनता है और इसी रूप के मोहपाश में बंध कर सैलानी यहां से जाने का नाम नहीं लेते। गर्मियों में तो सोलंग का रूप ही बदला होता है, सर्दियों से एकदम अलग। सोलंग में बिछी हरियाली सहसा ही मन मोह लेती है। दूर-दूर तक हरियावल जंगल, पेड़-पौधे और वनस्पति धरती पर हरा गलीचा बिछा होने का भ्रम पैदा करती है।

फूलों की बिछी चादरघाटी में जब रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं तो एक मादक सुगंध चहुं ओर बिखर जाती है। प्रकृति कितने रूप बदलती है, यह सोलंग आकर पता चलता है। मस्त हवा के झोंके, पंछियों का कलरव और दूर कहीं झरने का कोलाहल समूचे परिवेश को जादुई बना देता है। गर्मियों में भी यहां सैलानियों की खूब भीड रहती है और लाहौल घाटी जाने वाले सैलानी यहां जरूर पड़ाव डालते हैं। सिर्फ सैलानी ही नहीं, फिल्मी दुनिया के लोग भी सोलंग के सम्मोहन में बंधे हैं और शूटिंग के लिए उन्होंने सोलंग को कश्मीर का पर्याय माना है। कई चर्चित फिल्मों की शूटिंग सोलंग की खूबसूरत वादियों में हो चुकी है। स्थानीय निवासियों के लिए सोलंग फिल्म नगरी' बनता जा रहा है।

कुमाऊं का मुख्य पर्यटन स्थल बागेश्वर

बागेश्वर कुमाऊं का एक मुख्य पर्यटन स्थल है। यह नीलेश्वर और भीलेश्वर पर्वत श्रृंखलाओं के बीच सरयू, गोमती व विलुप्त सरस्वती नदी के संगम पर बसा है। पुराने समय से ही बागेश्वर को व्यापारिक मंडी के रूप में जाना जाता है। बागेश्वर में प्रतिवर्ष के बागनाथ मंदिर में ही प्रतिवर्ष विश्वप्रसिध्द उत्तरायणी मेला भी लगता है। प्राचीन समय में दारमा, व्यास, मुनस्यारी के निवासी भोटियों और साथ ही मैदान के व्यापारी भी इस मेले में आते थे। भेटिया जाति के लोग ऊन से बने वस्त्रों और जड़ी-बूटियों को बेचते थे और उसके बदले में अनाज व नमक इत्यादि जरूरत का सामान यहां से ले जाया करते थे। इसी कारण वर्तमान में नुमाइश मैदान कहे जाने वाले स्थान को पहले दारमा पड़ाव व स्वास्थ्य केंद्र वाले स्थान को भोटिया पड़ाव कहा जाता था। बागेश्वर के संगम पर हमेशा ही स्नान पर्व चलते रहता है। अयोध्या में बहने वाली सरयू और बागेश्वर की सरयू नदी एक ही मानी जाती है। सरमूल से निकलकर बागेश्वर से बहते हुए पिथौरागढ़ तक इसे सरयू उसके आगे टनकपुर तक इसे रामगंगा तथा टनकपुर से आगे इसे शारदा नाम से जाना जाता है। अयोध्या में इसे पुन: सरयू नाम से पुकारा जाता है। बागेश्वर का जिक्र स्कन्द पुराण के मानस खंड में भी किया गया है। इसके अनुसार बागेश्वर की उत्पत्ति आठवीं सदी के आस-पास की मानी जाती है। यहां के बागनाथ मंदिर की स्थापना को तेरहवीं शताब्दी का बताया जाता है। 1955 तक बागेश्वर ग्राम सभा में आता था। 1955 में इसे टाउन एरिया माना गया। सन् 62 में इसे नोटिफाइड ऐरिया व 1968 में नगरपालिका के रूप में पहचान मिली। 1997 में इसे जनपद बना दिया गया। स्वतंत्रता संग्राम में भी बागेश्वर का महत्वपूर्ण स्थान है। कुली बेगार आंदोलन की शुरुआत बागेश्वर से ही हुई थी। बागेश्वर अपने विभिन्न ग्लेशियरों के लिए भी विश्व में अलग स्थान रखता है। इन ग्लेशियरों के नाम है - सुंदरढु्रगा, कफनी और पिंडारी ग्लेशियर।

भारत भी झेलेगा ग्लोबल वार्मिग का असर

16 नवंबर को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने जलवायु परिवर्तन पर इंडियन नेटवर्क फॉर क्लायमेट चेंज असेसमेंट की रिपोर्ट जारी करते हुए चेताया है कि यदि पृथ्वी के औसत तापमान का बंढना इसी प्रकार जारी रहा तो अगामी वर्षों में भारत को इसके दुष्परिणाम झेलने होंगे। विभिन्न स्थलाकृतियां (पहाड़, रेगिस्तान, दलदली क्षेत्र व पश्चिमी घाट जैसे समृद्ध क्षेत्र) ग्लोबल वार्मिंग के कहर की शिकार होंगी। 
120 संस्थाओं एवं लगभग 500 वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार भारत में कृषि, जल, पारिस्थितिकी तंत्र एवं जैव विविधता व स्वास्थ्य ग्लोबल वार्मिंग से उत्पन्न समस्याओं से अछूते नहीं रहेंगे। वर्ष 2030 तक औसत सतही तापमान
में 1.7 से 2.0 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है। इस रिपोर्ट में चार भौगोलिक क्षेत्रों - हिमालय क्षेत्र, उत्तर-पूर्वी क्षेत्र, पश्चिमी घाट व तटीय क्षेत्र - के आधार पर पूरे देश पर जलवायु परिवर्तन का अध्ययन किया गया है। इन चारों क्षेत्रों में तापमान में वृद्धि के कारण बारिश और गर्मी-ठंड पर पंडने वाले प्रभावों का अध्ययन कर संभावित परिणामों का अनुमान लगाया गया है।  यह रिपोर्ट बढ़ते तापमान के कारण समुद्री जलस्तर में वृद्धि एवं तटीय क्षेत्रों में आने वाले चक्रवातों पर भी प्रकाश डालती है। पश्चिमी घाट में तापमान में वृद्धि के कारण चावल की उपज में 4 प्रतिशत तक की गिरावट आएगी। इसके अलावा जहां कुछ क्षेत्रों में नारियल की उपज 30 प्रतिशत तक बढ़ेगी, वहीं दक्षिण-पश्चिमी कर्नाटक और तमिलनाडु व महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में पैदावार में कमी आएगी। इसके साथ ही पालतू पशुओं पर भी ग्लोबल वार्मिंग का गंभीर प्रभाव पड़ेगा।  जहां तटीय क्षेत्रों में चावल के सिंचित क्षेत्र में 10 से 20 प्रतिशत की गिरावट आएगी वहीं महाराष्ट्र के तटीय ंजिलों, उत्तरी आंध्र प्रदेश व उड़ीसा में चावल के सिंचित क्षेत्र में 5 प्रतिशत की बढत हो सकती है। उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में मक्का की उपज में 40 प्रतिशत गिरावट दर्ज की जाएगी। चावल की उपज में कहीं 10 प्रतिशत तक कमी आ सकती है तो कहीं 5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की जाएगी।  जलवायु परिवर्तन का मानव स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। बांढ एवं सूखे की स्थिति में विस्थापन केकारण कुपोषण, भुखमरी एवं संक्रामक रोगों का भी खतरा बढ़ जाता है। तापमान में होने वाले बदलावों के कारण डेंगू, मलेरिया और दूसरी बीमारियों के बंढने की आशंका रहेगी। मलेरिया जन स्वास्थ्य की एक गंभीर समस्या है। प्रति वर्ष पूरे विश्व में करीब 50 करोंड लोग मलेरिया की चपेट में आते हैं। भारत में पिछले दस सालों में हर साल मलेरिया के लगभग 20 लाख मामले सामने आते रहे हैं। मच्छरों की विकास प्रक्रिया, उनकी आयु तथा रोग संचरण क्रिया में तापमान एवं आर्द्रता की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। धरती के गरमाने के कारण ऊंचाई वाले क्षेत्र में तापमान में वृद्धि के कारण मलेरिया का खतरा बढ़ सकता है। इसके अलावा तापमान में वृद्धि के साथ डेंगू की महामारी की संभावना भी बढेग़ी। इस साल अकेले दिल्ली में ही डेंगू के करीब पांच हंजार मामले देखे गए।  जलवायु परिवर्तन के कारण रोग उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया, वायरस आदि की संख्या में तीव्रता से वृद्धि स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा करेगी। इसके अलावा गर्म मौसम के कारण मच्छर, चूहों आदि की आबादी बढ़ने की संभावना व्यक्त की जा रही है जिसके पारिणामस्वरूप भविष्य में नई-नई बीमारियों के फैलने का खतरा बढ ज़ाएगा।
यह तो हम जानते ही हैं कि प्रदूषित पर्यावरण करीब एक चौथाई रोगों का कारण बनता है। प्रति वर्ष घरेलू एवं बाहरी वायु प्रदूषण के कारण लगभग 20 लाख लोग मृत्यु के मुंह में समा जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अकेले भारत में ही हर साल चार लाख से अधिक महिलाएं और बच्चे सांस के साथ फेफड़ों में कार्बन पहुंचने के कारण बीमार होते हैं।  जलवायु परिवर्तन की समस्या पर्यावरण और पृथ्वी पर उपस्थित समस्त जीवन के साथ-साथ मानव के रहन-सहन एवं सामाजिक व आर्थिक जीवन को भी प्रभावित करेगी। वैसे इसका प्रभाव धीरे-धीरे दिखाई देने लगा है। वैश्विक गर्माहट के कारण पृथ्वी की जलवायु में परिवर्तन होने से यहां उपस्थित जीवन के सामने अनेक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। आज बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण मौसम में अनियमितता आई है, जिसके परिणामस्वरूप कहीं बांढ तो कहीं सूखे की स्थिति उत्पन्न हो रही है। बदलती जलवायु ने सुनामी, भूस्खलन और तूफानों के खतरे में वृद्धि की है।  बंढते तापमान से पृथ्वी की जैव विविधता भी तहस-नहस होगी। अभी जहां हमारी पृथ्वी जीवन के रंग-बिरंगे रूपों से सजी है वहीं बंढता तापमान जीवों की विलुप्ति का कारण बनेगा। जलवायु परिवर्तन के कारण अनेक जीव धरती से विलुप्त हो सकते हैं। तापमान में वृद्धि के कारण विभिन्न पारस्थितिकी तंत्रों में भी बदलाव आने से वहां विद्यमान जैव विविधता घटेगी।  अब सवाल यह उठता है कि पृथ्वी पर मंडरा रहे ग्लोबल वार्मिंग का कारणक्या है। अनेक वर्षों तक वैज्ञानिकों, समाज विज्ञानियों व बुद्धिजीवियों ने अपने अध्ययन के उपरांत पृथ्वी पर मानवीय गतिविधियों को ही दोषी पाया है। यों-यों मानव ने सभ्यता की सीढ़ियां चढ़ी हैं, त्यों-त्यों उसकी आवश्यकताएं बढी हैं। अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने की खातिर मानव ने प्राकृतिक संपदा का अंधाधुंध दोहन करके इस ग्रह के नांजुक संतुलन को ही गड़बड़ा दिया है। लेकिन यह बात सोचने की है कि बेलगाम दोहन के बावजूद आदमी पहले से ंज्यादा सुखी नहीं हुआ है, बल्कि ंज्यादा दुखी हो गया है। 
औद्योगिक विकास के साथ-साथ विकास प्रक्रियाओं की खातिर कार्बन डाईऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, मीथेन और क्लोरोफ्लोरोकार्बन जैसे पदार्थ धीरे-धीरे वायुमंडल में समाते रहे और इन सभी घटनाओं से पृथ्वी गर्म होने लगी। पृथ्वी का धीरे-धीरे गर्म होना जलवायु में ऐसे अनेक अनगिनत बदलाव का कारण साबित हुआ है जिसके कारण यहां उपस्थित जीवन को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पंड रहा है।     आज शुद्ध जल, शुद्ध मिट्टी और शुद्ध वायु हमारे लिए अपरिचित हो गए हैं। आज विकास की राह सिर्फ इंसान के लिए बनाई जा रही है, इसमें प्रकृति कहीं नहीं है। ऐसी परिस्थितियों में मानवीय मूल्यों और पर्यावरण में होते ह्रास के कारण पृथ्वी और यहां उपस्थित जीवन के खुशहाल भविष्य को लेकर चिंता होने लगी है। ऐसे समय में महात्मा गांधी के 'सादा जीवन उच विचार' वाली विचारधारा को अपनाने की आवश्यकता अनुभव की जा रही है। गांधीजी के विचारों का अनुकरण करने पर मानव प्रकृति के साथ प्रेममयी सम्बंधस्थापित करते हुए आनंदमय जीवन व्यतीत कर इस पृथ्वी ग्रह की सुंदरता को बरकरार रख सकता है।  जलवायु परिवर्तन एवं इससे सम्बंधित विभिन्न समस्याओं, जैसे प्रदूषित होता पर्यावरण, जीवों व वनस्पतियों की प्रजातियों का विलुप्त होना, उपजाऊ भूमि में होती कमी, खाद्यान्न संकट, तटवर्ती क्षेत्रों का क्षरण, ऊर्जा के स्रोतों का कम होना और नई-नई बीमारियों का फैलना आदि संकटों से पृथ्वी ग्रह को बचाने के लिए सभी को प्रयास करने होंगे। समय की मांग है कि हम प्रकृति की चेतावनी को समझें और पर्यावरण से छेड़खानी बंद करें। हम आज प्रदूषण के कारण हो रही पर्यावरण की हानि को अछी तरह समझ चुके हैं। हमें जलवायु परिवर्तन से जीवन पर मंडराते खतरे अब नंजर आने लगे हैं। इसलिए ंजरूरत है अपने लालच और इछाओं से ऊपर उठकर आने वाली पीढी क़े बारे में सोचने की। हमें रासायनिक उर्वरक और कीटनाशियों को छोड़कर जैविक खेती को अपनाना होगा। पर्यावरण की रक्षा करनी होगी। प्लास्टिक, जीवाश्म ईंधन आदि का कम से कम उपयोग करना होगा। अपारंपरिक ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना होगा। जैव-डींजल, सौर ऊर्जा, हाइड्रोजन ईंधन, पन एवं पवन बिजली जैसे प्राकृतिक अक्षय ऊर्जा के स्रोतों को बंडे स्तर पर अपनाना होगा। पर्यावरण सुरक्षित रहेगा तो धरती पर जीवन सुरक्षित रहेगा। आज ंजरूरत है अपनी पिछली गलतियों से सबक लेने की और उन्हें सुधारने की। हमें अपने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए आज से ही कदम उठाने होंगे वरना कल बहुत देर हो जाएगी।  जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने और हमारी पृथ्वी को जीवनदायी ग्रह बनाए रखने के लिए प्रत्येक मानव को प्रकृति के संग-संग चलना होगा ताकि हमारा यह ग्रह जीवनमय बना रहे। आज पृथ्वी के जीवनदायी स्वरूप को बनाए रखने की सर्वाधिक ंजिम्मेदारी मानव के कंधों पर ही है। ऐसे में मानव को ऐसे व्यक्ति या उसके विचारों का अनुसरण करने की आवश्यकता है, जिसने प्रकृति को करीब से जाना-समझा हो और सदैव प्रकृति का सम्मान किया हो। दुनिया में प्रकृति के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाले लोगों में महात्मा गांधी, सुंदरलाल बहुगुणा एवं बाबा आमटे आदि अनेक नाम शामिल हैं। 
आज उपस्थित सामाजिक व पर्यावरणीय विषम परिस्थितियों के लिए हमारा भोगवादी नंजरिया ही ंजिम्मेदार है। इसमें कोई दो राय नहीं कि भोग की बंढती प्रवृत्ति ही प्रकृति का दोहन करवाती है। जल, ंजमीन और भोजन जैसी अनिवार्य सुविधाओं के लिए हमें प्रकृति का दोहन नहीं बल्कि उसका उपयोग करना चाहिए, तभी यह धरती युगों-युगों तक हमारी आवश्यकताओं को पूरा करती हुई जीवन के विविध रूपों के साथ मुस्कुराती रहेगी।

सोमवार, 6 मई 2013

सोच ही सफलता का मार्ग है

आज के सांसारिक युग में कदम-कदम पर नई-नई जानकारियां खड़ी हैं। जानकारियां अच्छी-बुरी, व्यवहारिक इत्यादि हो सकती हैं। गुरु ही हमें विश्व की सभी जानकारियों से ओत-प्रोत कर देते हैं। आत्मनिर्भर बना देते हैं। अंतरात्मा में प्रेम का सागर उड़ेल देते हैं। शास्त्रों के अनुसार भूखंड का ईशान कोण गुरु का पर्यायवाची शब्द है। शास्त्र अनुकूल बना हुआ ईशान कोण सकारात्मक ऊर्जाओं को घर में भर देता है। सकारात्मक ऊर्जा में असंभव को संभव बनाने की शक्ति है। 
जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि- दृष्टि में अगर सकारात्मक भाव हो, तो भूखंड का चप्पा-चप्पा हमें जन्नत नजर आता है। जीवन में अगर सफल होना है, छोटी सोच वालों के चक्कर में न आएं, न उनसे सलाह लें और न ही संगत लें। जिस तरह दूषित भोजन शरीर को अस्वस्थ बना देता है। उसी तरह छोटे सोच, ओछे विचार वाले मस्तिष्क को अस्वस्थ कर देते हैं, तो छोटी-छोटी बातों से ऊपर उठ जाइए। अपनी दृष्टि को अपने लक्ष्य पर लगाइए लक्ष्य आपसे दूर नहीं रहेगा। आपने देखा होगा कि बारिश और धूप दोनों के मिलने से इंद्रधनुष बनता है। जीवन में खुशियां भी हैं, गम भी है। सुख भी है, दु:ख भी है। अंधेरा भी है, उजाला भी है। हम अपने को कर्मों के अधीन पाते हैं। अगर हम अपनी हालत बदलना चाहते हैं, तो अपनी सोच के नजरिए बदलने होंगे। सोच के नजरिया ही सफलता पाने की कुंजी है। अपनी दृष्टि का विस्तार करें, सृष्टि के अंदर सफलता खोजें। असफल व्यक्ति दो तरह के होते हैं, एक तो वो जो करते हैं, लेकिन सोचते नहीं। दूसरे वो सोचते रहते हैं मगर कुछ करते नहीं। कुम्हार अपने चाक पर मनचाहे बर्तनों को आकार दे देता है। बाजार हाट में कुम्हार की कारीगरी पसंद की जाती है। हम अपनी जिंदगी को अच्छे ढांचे में ढालने का प्रयास करेंगे। सफलता के शिखर पर पहुंचने से पहले सफलता क्या होती है, इसको अपनी सोच से अनुभव करना पड़ेगा। तभी सफलता आपके कदम चूमेगी। हर एक में कुछ न कुछ कमी होती है। जैसा पात्र मिले, उसको स्वीकार कर लेना चाहिए। हमें हर जगह पूर्णता की इच्छा नहीं रखनी चाहिए। कोई भी मानव पूर्ण नहीं होता। परिस्थितियां सब समय अनुकूल नहीं होती। हमें परिस्थितियों के अनुकूल होने की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। अपनी उलझनों को सुलझाने का प्रयास करना चाहिए। जिस काम से डर लगता हो, उस काम को जरूर करें। काम करने से मन का डर निकल जाएगा। अच्छे समय का इंतजार करके समय बर्बाद न करें। काम में जुट जाइए, समय अपने आप अनुकूल हो जाएगा। विचार मजबूत रखें। विचारों से सफलता नहीं मिलती, सफलता विचारों के द्वारा प्रदान किए गए मार्ग पर चलने से मिलती है। लक्ष्य, सच्ची लगन, कठोर परिश्रम करने वाला असंभव शब्द पसंद नहीं करता। अगर आप अपनी हालत बदलने के लिए कमर कसकर तैयार हैं, तो परमात्मा आपके साथ है।
खुदा ने उस कौम की हालत न बदली,
जिसे न फिक्र हो अपनी हालत बदलने का।

जीवन में जब भी कभी असफलता मिले, न उससे घबड़ाएं, न असफलता का कारण किसी दूसरे को बनाएं। कार्य के बारे में पूरी जानकारी न होना, काम की पूरी तैयारी नहीं करना इत्यादि कारणों के अलावा कार्य करने में उत्साह एवं लगन की कमी भी हार का मुख्य कारण हो सकती है। अपने दिमाग को ठंडा रखने की आदत डालें। प्रतिकूल परिस्थितियों में घबराना या उत्तेजित होकर अपने आप को परेशान न होंने दें। असफलता जिस कारण से मिली, उसकी तलाश करें, समाधान करें। अपने मार्ग पर आगे बढ़ जायें। हार से कभी भी अपने मन में मानसिक व्यथा पैदा न करें। एक विद्वान ने कहा है कि निराशा एक प्रकार की कायरता है, जो आदमी को कमजोर बनाती है। अपनी गलतियों का आत्ममंथन करें एवं फिर प्रयास में जुट जाएं। सकारात्मक सोच को चेतनरूपी मन पर बैठा दिया जाए, तो एक कुशल नाविक की तरह आपकी नौका पार लगा सकता है। आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। आपके अंदर अद्भुत शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्तियां भरी हुई हैं। आप अपनी सकारात्मक सोच से उनका विकास कर सकते हैं। अंतरात्मा के विश्वास से, अपने कार्यों से संसार को चकित कर सकते हैं। सफल व्यक्ति कभी भी तर्क नहीं करते। लड़ाई-झगड़ा पसंद नहीं करते। बहस करके अपना समय बर्बाद नहीं करते। अपने सोच का दायरा विशाल बना लेते हैं। अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने का प्रयास करते हैं, तो निश्चित रूप से सफल हो जाते हैं। विजय के मुकुट से माथा शोभित हो जाएगा। 

सच्ची लगन सही सोच

सभी लोग सफल होना चाहते हैं और इसके लिए वे मेहनत भी करते हैं। अगर पूरी ताकत और लगन के साथ कोई भी कठिन से कठिन कार्य किया जाए तो उसमें सफलता जरूर मिलती है। काम जितना बड़ा होगा, मुश्किलें भी उतनी ही बड़ी होंगी। किसी ने सच कहा है आसान काम तो सभी कर लेते हैं कठिन करके दिखाओ तो मानें। मुश्किल और मेहनत के बाद मिलने वाली सफलता का आनंद भी कई गुना यादा होता है।
सफलता के लिए आत्मबल और आत्मविश्वास के साथ पूरी फोकस की भी जरूरत होती है।  सफल व्यक्ति कोई अलग या नया काम नहीं करता, बल्कि
काम को अलग और नए ढंग से करता है। कार्य करने का तरीका और कार्य करने की क्षमता ही उसे सफल बनाती है। मेरा मानना है कि हर किसी को अपने जीवन में कुछ न कुछ विशेष लक्ष्य जरूर निर्धारित करना चाहिए क्योंकि बिना उद्देश्य हमारा जीवन सार्थक नहीं होता है। हम अपने उद्देश्य के लिए हर संभव प्रयास करते हैं और एक दिन हम सफल हो जाते हैं। हम जानवरों से अलग इसलिए हैं क्योंकि हमारे कुछ सपने हैं और हम उन्हें पूरा करने के लिए कुछ खास करते हैं। अगर हमारे सपने नहीं होंगे तो हमारा जीवन भी व्यर्थ ही होगा। सपनों के बारे में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम का कहना है कि हमें सपने खुली आंखों से देखने चाहिए क्योंकि सच्चे सपने वही हैं जो सोने की इजाजत नहीं देते हैं अर्थात् जिसको देखने के लिए नींद की जरूरत नहीं होती है बल्कि उसे खुली आंखों के सहारे देखा जाता है जो समय के साथ पूरा होता है।
जानकारों  का मानना है कि बिना उद्देश्य कोई मनुष्य का जीवन व्यतीत नहीं कर सकता है। इनसान वही है जो अपने मूल उद्देश्य के साथ जीता है। खास बात तो यह है कि लक्ष्य बनाने से पहले हम उसकी आवश्यकता और उसे पाने के तरीकों के बारे में तो जानें ही, साथ ही उसकी महत्ता को भी समझें। इनसान की सोच ही उसे सफल और महान बनाती है। नकारात्मक सोच वालों के आसपास नकारात्मक ऊर्जा और सकारात्मक सोच वालों के साथ सकारात्मक या सफलता की किरणें घूमती रहती हैं। सफल  बनने के लिए जरूरी है कि हम अपने विचारों को हमेशा सकारात्मक बनाएं। हमारी सोच ही हमें सफलता प्रदान करती है। हम अगर कल के बारे में अच्छा सोचेंगे तो हमारा आने वाला कल निऱ्संदेह अच्छा होगा। यानी प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण की कोई जरूरत नहीं है। आज से ही आप सकारात्मक सोचें और सफलता का आनंद लें। सकारात्मक सोच और लगन से किया गया कार्य जरूर सफल होता है।

शनिवार, 4 मई 2013

जिस देश में गंगा बहती थी.......

औद्योगिक सभ्यता विनाश की ओर ले जा रहा है।  विज्ञान केवल ध्वंस (मारने) के लिए है। पौराणिक काल बताता है पर्यावरण को प्रदूषित किए बगैर युध्द नियमानुसार चलते थे। कौशलपूर्वक छोड़े गए तीर वापस आ जाते थे। आधुनिक काल के मिसाइल वापस नहीं आते इसे छोड़ देने का मतलब जीव हत्या और प्रदूषण फैला देना है। इसकी सजा व्यक्ति को मिलती है व्यवस्था को क्यों नहीं मिलती सजा...?
गंगोत्री से गंगा सागर तक बहने वाली गंगा को हम मां कहते हैं और उद्योग प्लास्टिक, मानव तीनों ही कारण बन गंगा को गंदा भी कर रहे। गंगा के बेसिन में 40 करोड़ लोग बसते हैं। इस गंगा में 290 करोड़ लीटर गंदा पानी जा रहा है। 30 करोड़ लीटर तो अकेले बनारस (काशी वाराणसी) में सात किलोमीटर के क्षेत्र में 30 नाले गंगा में गिर रहे हैं। 14 शहरों से प्लांट के सीवरेज इसी गंगा में गिर रहे हैं। जल का मानव के स्वास्थ्य पर असरकारी प्रभाव होता है। 11 रायों के 40 प्रतिशत कृषि भूमि गंगा से सिंचित होते है। ऐसा भी एक आरोप सामने आया है कि जहां से गंगा बह रही है वहां कैंसर के मरीज बढ़ रहे हैं। यह भी कि गंगा जल में सभी बीमारियों के कीटाणु है। कई-कई कारणों से गंगा पर चिंता और नाराजगी दोनों बढ़ी है। 20 फरवरी 2005 को प्रधानमंत्री ने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया। इससे पहले अप्रैल 1986 को राजीव गांधी ने गंगा एक्शन प्लान शुरू की। यह तब हुआ जब एक हजार 20 करोड़ रुपये गंगा पर साफ-सफाई के लिए खर्च हो चुके थे। पं. बंगाल राय सरकार ने 1996 से अब तक 40 करोड़ रुपये गंगा की सफाई में खर्च कर दिए। भारत की अन्य नदियों का उध्दार भी गंगा के नाम से हो जाए तो कुछ बात बने। पांच सदस्य देशों (ब्रिक्स) का 5वां सम्मेलन दक्षिण अफ्रीका के समुद्र तटीय शहर डरबन में चलकर 27 मार्च 2013 को तेरह पन्नों के बने घोषणा पत्र के साथ संपन्न हुआ। इसमें जो बात निकल कर सामने आई वह ब्रिक्स डेवलपमेंट बैंक की स्थापना है, जिसमें भारत 18 अरब डालर का वित्तीय सहयोग देगा। यह बात भी महत्वपूर्ण रूप से स्पष्ट हुआ कि प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने चीन के राष्ट्रपति जी जिनपिंग से अपने 25 मिनट की चर्चा में ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध (चीन द्वारा बनाए जा रहे) के प्रति अपनी चिंता जताई। 11 मार्च 2001 को राय सभा में एक भाजपा सांसद ने चर्चा में बताया कि नदियों की सुरक्षा के लिए नदी 
आयुर्विज्ञान संस्थान बननी चाहिए। प्रधान मंत्री ने इसे तवाो दी है और पत्र को आगे बढ़ा दिया है।
क्या नदियों का बहाव प्रदूषण मुक्त है... यह प्रश्न विभिन्न ढंग से उच्च निम्न सदन और रायों के  विधानसभा (सदन) में उठते रहते हैं। परम्परा है कि गंगोत्री हरिद्वार या प्रयोग से गंगा का जल लेकर रामेश्वर में चढ़ाने की। हम गंगा को जीवनदायिनी कहते हैं। मलमूत्र और चमड़ा कारखानों से निकले कोमियान (प्रदूषित रसायन) को गंगा में डालते हैं। कलकत्ता हावड़ा ब्रिज के नीचे से बह रही गंगा में दोनों ओर के घाटों में खड़े होकर गंगा में बहते मटमैले जल में मानव मल को देखा जा सकता है। मृत्यु को प्राप्त कर रहा व्यक्ति दो चम्मच गंगा जल घुटक कर और मुंह में डालने वाले परिजन संतुष्ट होते मिलते हैं। भारत में 50 प्रतिशत परिवारों में गंगाजल अनिवार्यत: रखा मिलता हैं। इस गंगा की जो स्थिति बनती दिख रही उसने राजकपूर को यह कहने मजबूर किया कि क्या हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है?... उन्होंने 'राम तेरी गंगा मैली' नाम से फिल्म बना डाली। कुरान में लिखा है पानी का बेजा इस्तेमाल न करें। श्रीमद्भागवत के 30 वें अध्याय से लिखा है जो गंगा को गंदा करेगा उसे नरक मिलेगा।
केदारनाथ यमुनोत्री से निकली यम की बहन यमुना का गुस्सा भी फट पड़ा है। मार्च 2013 के प्रयाग कुंभ के अंतिम दिनों में यमुना की गदंगी पर लाखों श्रध्दालुओं ने रैली (यमुना बचाओ) निकाली। युनिसेफ ने कह दिया है कि दिल्ली में यमुना बहुत गंदी है। इसके 22 किलो मीटर क्षेत्र में यमुना बहती है, लेकिन यह नाले के रूप में।  यमुना में डेढ़ करोड़ व्यक्तियों का मलमूत्र जा रहा। मथुरा में ही 4 गंदे नाले यमुना में गिर रहे। ऊपर की बातें स्पष्ट संकेत दे रही हैं कि आदमी जात पर यमराज अपने दूतों के साथ टूट पड़ेंगे, नरकवासी बनाने के लिए। लंदन की टेम्स नदी सफाई और व्यवस्था के नाम से बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन इसे पवित्र और व्यवस्थित बना दिया गया है। यह नदी लंदन की शान बनी है। गुजरात की नदी साबरमती भी गटर बन गया था। इसे व्यवस्थित कर आलोचना मुक्त कर दिया गया है। जल ही जीवन है। जल है तो अन्न है। सब कुछ जानते-समझते जल के प्रति समाज अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सजग सचेत नहीं है। छत्तीसगढ़ के कई बड़े जलाशय केवल खेतों में सिंचाई करने के लिए बने, लेकिन इसका पानी उद्योगों के लिए काम की चीज हो गई है। पानी भाप बनाकर उड़ाया जा रहा है। नदियों का बहाव टूट गया है।  एक और नया संगठन खड़ा करने की कोशिशें क्यों होती हैं। साफ बात है जब तक गंगा और दूसरी नदियां हमारे कारण गंदी है तो जाति समाज भी इसी दिशा चलेगा।

गंगा की बूंद-बूंद में समाहित ऑक्सीजन

लगातार गंदगी की गिरफ्त में घिर रही गंगा अभी भी अपने मायके में पाक साफ है। प्राणदायक ऑक्सीजन गंगा की बूंद-बूंद में समाहित है। उत्तरकाशी से ऋषिकेश तक गंगा के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा करीब 80 फीसदी तक है। हालांकि पिछले 10 सालों में गंदगी ने पानी में घुलित ऑक्सीजन (डिजॉल्व ऑक्सीजन) की मात्रा को कुछ हद तक प्रभावित किया है, लेकिन इसका असर ऋषिकेश तक ना के बराबर है। हरिद्वार व आगे के हिस्सों में जरूर गंगा के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा 10-20 फीसदी तक कम है। केंद्रीय जल आयोग ने विभिन्न स्थानों पर गंगा के पानी की जांच की तो जीवनदायिनी नदी की नई तस्वीर सामने आई। पता चला कि गोमुख, उत्तरकाशी से लेकर ऋषिकेश तक गंगा के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा 79 से 94 फीसदी तक पाई गई। जबकि हरिद्वार व आगे के हिस्सों में यह मात्रा 60-70 फीसदी के आसपास है। पिछले 10 साल की बात करें तो डिजॉल्व ऑक्सीजन का लेवल औसतन एक फीसदी तक घटा है।  उत्तरकाशी से ऋषिकेश तक गंगा में प्रदूषण कम है। बहाव अधिक होने से पानी में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा अधिक हो जाती है। ऋषिकेश के बाद यह परिस्थिति एकदम उलटी हो जाती हैं। ऑक्सीजन के फायदे जिस पानी में ऑक्सीजन का स्तर जितना अधिक होता है, वह पानी सेहत के लिए उतना ही बेहतर माना जाता है। पानी में घुलित ऑक्सीजन जलीय जीव-जंतुओं के लिए भी बेहद मायने रखती है। यदि पानी में ऑक्सीजन का स्तर 04 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम हो जाए तो मछलियां मरने लग जाती हैं। कैसे घटती-बढ़ती ऑक्सीजन वैज्ञानिकों के मुताबिक यदि पानी में गंदगी होगी तो उसका ऑर्गेनिक (कार्बनिक) लेवल बढ़ जाएगा और ऑक्सीजन घटने लगती है। इसी तरह जब पानी में बहाव अधिक होता है तो हवा में मौजूद ऑक्सीजन पानी में घुलने लगती है

बचा लो पृथ्वी, वरना आएगा सैलाब

पृथ्वी की सुरक्षा के लिये सबसे पहले पर्यावरण संतुलन पर विचार मंथन जरूरी है। जब तक पृथ्वी का पर्यावरण सभी प्राणियों के अनुकूल नहीं होगा, तब तक गर्म हो रही पृथ्वी पर चिंता व्यक्त करना समय की बर्बादी ही होगी। धरती की गोद पर पलने वाली नदियों से लेकर हरे भरे जंगल, बाग बगीचे सभी का अस्तित्व मनुष्य ने अपने स्वार्थ के चलते या तो समाप्त कर दिया है या उनके जीवन पर संकट पैदा कर रखा है। धरती को ठंडक पहुंचाने वाले शीतल और अच्छादित वन कट जाने से धरती का तापमान बढ़ने लगा है। शहरों में सड़क किनारे लगाये गये वृक्षों को विकास और सड़क चौड़ीकरण योजना ने लील लिया है। धर्म शास्त्रों में बरगद, पीपल, तुलसी, आंवला जैसे पौधों और वृक्षों को देव तुल्य बताये जाने और पूजे जाने की परंपरा भी विलुप्त देखी जा रही है। इन प्रजाति के वृक्षों को भी काटने से परहेज नहीं किया जा रहा है। मनुष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिये लगाये जाने वाले कारखानों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जो विषैले धुओं के माध्यम से पृथ्वी ही नहीं वरन पूरे वातावरण को प्रदूषित कर रहे है। 
हरियाली की कमी से बढ़ रहा तापमान
भारत वर्ष के लिये 21वीं सदी की शुरूआत विकास बनाम विनाश कही जा सकती है। वर्तमान समय में हमारे देश में हरियाली की कमी बड़ी तीव्रता से हो रही है। ग्रामीण क्षेत्रों को यातायात के साधनों से जोड़ने या फिर कारखानों के स्थापना के नाम पर उस क्षेत्र में व्याप्त जंगलों को काटा जा रहा है। कई किलो तक फैले एवं हरियाली से युक्त जंगलों के विनाश का कारण विकास से जोड़ा जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार 20वीं शताब्दी के आरंभ में भातर वर्ष के धरती पर लगभग 30 प्रतिशत हिस्सों पर जंगल और वृक्षों का राज था। अब उसी भारत वर्ष में 21वीं शताब्दी के शुरूआती दशकों में जंगल अथवा हरित पट्टी वाला क्षेत्र घटकर 13 से 14 प्रतिशत रह गया है। यही वह कारण है जो पर्यावरण को असंतुलित कर रहा है और धरती का तापमान लगातार बढ़ता ही जा रहा है। ग्रीष्मकाल में जहां बहुत अधिक गर्मी पड़ने पर तापमान 38 से 40 डिग्री सेल्सियस हुआ करता था, वह अब 48 से 50 डिग्री पहुंच रहा है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार प्रतिवर्ष 13 हजार वर्ग किमी वन धराशायी हो रहे है। परिणाम स्वरूप हरित गृह गैसों में 20 प्रतिशत तक की वृध्दि दर्ज की गई है। इसका दूसरा नकारात्मक पहलू वनों की मिट्टी में कार्बन डाईऑक्साईड की मात्रा का बढ़ जाना भी है। यह सर्वविदित तथ्य है कि मानसून की सक्रियता भी वनों पर ही निर्भर करती है। साथ ही वृक्ष ही वह ताकत है जो धरती पर मिट्टी की पकड़ बनाये रखते है, बाढ़ को रोकते है और उपजाऊ मृदा को बनाये रखते है। धरती से हरियाली को दूर करना प्रकृति के साथ भयंकर खिलवाड़ है। जिसके कारण हम अपनी बहुमूल्य जैव विविधता को भी खोते जा रहे है। 
पर्यावरण सुरक्षा महज नारा ही रहा 
वर्तमान समय में पर्यावरण सुरक्षा पृथ्वी के अस्तित्व का प्रश्न बन गया है। यह मानवीय जीवन से घनिष्ठ संबंध रखने वाला सबसे बड़ा संकट बना हुआ है। पर्यावरणीय संकट के साथ साथ इस पृथ्वी पर जीवनोपयोगी कार्यकलाप का भविष्य भी संकट में दिखाई पड़ रहा है। विसंगति तो यह है कि विकास की अंधाधुंध दौड़ ने पर्यावरण सुरक्षा को महज एक नारे तक सीमित कर रखा है। हम अपने पर्यावरण को अनुकूल बनाये रखने के मामले में बहुत अधिक पीछे रह गये है। हमारी विकास की सोच इतनी बलवती हो गई है कि आने वाले निकट भविष्य में पर्यावरण की जागरूकता के संबंध में कोई क्रांतिकारी पर्यावरण की संभावना नजर नहीं आ रही है। जिस प्रकार के हम अपने स्वार्थ पूर्ति के लिये जीवन व्यतीत कर रहे है, इससे यही कहा जा सकता है कि 'डुबते जहाज पर सवार सभी लोग देर सबेर डुबेेंगे ही।' कारखानों से निकल रहा धुंआ, रसायनों से दूषित जल का नदियों में जाकर मिल जाना विभिन्न बीमारियों का कारण बन रहा है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, सिमटते जंगलों की वजह से बंजर होती भूमि और रेगिस्तान का बढ़ता दायरा एक दूसरे पर आधारित है। भूमि कटाव से प्रतिवर्ष बाढ़ का खतरा बढ़ता जा रहा है। 
अर्थ ऑवर की शुरूआत ग्लोबल वार्मिंग के प्रति जागरूकता
पृथ्वी पर बढ़ रही ग्लोबल वार्मिंग मनुष्य सहित प्रत्येक प्राणियों के लिये खतरा बनी हुई है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण बर्फ के पहाड़ों का पिघलना और समुद्र का जलस्तर बढ़ना, समुद्र किनारे बसे बड़े बड़े महानगरों के लिये जल प्लावन की स्थिति निर्मित कर रहा है। पृथ्वी पर बढ़ रहा खतरा पूरे विश्व में माथे पर चिंता की लकीर खींच चुका है। इसी ग्लोबल वार्मिंग के प्रति सचेतता बढ़ाने और वैश्विक स्तर पर लोगों को जोड़ने के लिये आस्ट्रेलिया ने एक अभियान की शुरूआत की। आस्ट्रेलिया की राजधानी सिडनी मे आज से 6 वर्ष पूर्व सन 2007 में 'अर्थ ऑवर' की शुरूआत पृथ्वी को बचाने जनजागरूकता कार्यक्रम के रूप में पहचान बना पाया है। प्रारंभिक चरण में आस्ट्रेलिया के प्रयास में लगभग 20 लाख लोगों को इस अभियान से जोड़ने में सफलता पाई। तब से ग्लोबल वार्मिंग अथवा जलवायु परिवर्तन से निपटने से संबंधित जागरूकता कार्यक्रम के रूप में विश्व स्तर पर 1 घंटे तक (रात्रि 8.30 बजे से 9.30 बजे तक) अपने घरों, कारखानों, कार्यालयों, एतिहासिक भवनों की ऐसी बिजलियों को बंद कर, जिनकी जरूरत नहीं है, एक ऐसा संदेश प्रसारित कर रहे है कि वे सब भी आस्ट्रेलिया द्वारा शुरू किये गये अभियान में शामिल है। मार्च माह के लगभग तीसरे सप्ताह में एक घंटे तक बिजलियां बंद रखने का अभियान अब अंर्तराष्ट्रीय कार्यक्रम बन गया है। अब शालाओं में भी इस प्रकार की जागरूकता का प्रसार रैली आदि के माध्यम से विश्व के सामने लाया जा रहा है। इस वर्ष 'अर्थ ऑवर डे' 23 मार्च को बनाया गया, और इस दिन शहरों तथा प्रसिध्द इमारतों ेकी बत्तियां एक घंटे बंद रखने पर विशेष ध्यान दिया गया। इस प्रकार की जागरूकता ने अब पारिवारिक और व्यक्तिगत रूप से भी लोगो को अभियान में जोड़ने में सफलता प्राप्त करना शुरू किया है। सन 2013 के मार्च में ग्लोबल वार्मिंग से निपटने अर्थ ऑवर दिवस की प्रासंगिकता ने 55 देशों को अभियान से जोड़ दिया है। 
वैश्विक तापमान होगा तबाही का कारण
आने वाले समय में वैश्विक तापमान का सीधा प्रभाव जलवायु पर पड़ेगा, जो वातावरण को पूरी तरह बदल देगा। चक्रवात और वारभाटा जैसी प्राकृतिक आपदाओं की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हो सकती है। पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों में गर्मी बढ़ने के कारण प्रलय की स्थिति भी आ सकती है। पृथ्वी में ताप वृध्दि के कारण ही हिम नदियों की बर्फ में तेजी के साथ पिघलाव होगा, परिणाम स्वरूप एक तरफ जहां सामुद्रिक जलस्तर में वृध्दि होगी, वहीं अनेक नदियां सुख जायेंगी। वैज्ञानिकों का मानना है कि ताप वृध्दि इसी तरह बनी रही तो भारत और बंग्लादेश के समृध्द कृषि क्षेत्र सुखे की चपेट में आ जायेंगे। वैज्ञानिकों ने ऐसी भी संभावना जतायी है कि ग्रीष्मकाल में सुखा पड़ेगा और शीतकाल में जल प्लावन की दृश्य उत्पन्न होगा। इसी कारण फसल चक्र पूरी तरह गड़बड़ा जायेगा और विश्व के अधिकांश देश अकाल की चपेट में आ जायेंगे। इसी तरह अनेक प्रकार की जानलेवा बीमारियों का प्रसार होगा। मलेरिया, हैजा, डैंगू, फाईलेरिया जैसी बीमारियां अनियंत्रित होकर सर्वव्यापी हो जायेंगी। 
पृथ्वी को बचाने ईमानदार प्रयास जरूरी
प्रकृति में प्रदूषण एवं अन्य संकटों के उपजने के मुख्य कारणाें में मानवीय कारण ही सबसे बड़ा कारण है। इंसान ही है जिसमें प्रकृति का सबसे अधिक शोषण किया है। मनुष्य आज भी प्रकृति के विनाश कार्य में लगा हुआ है। जंगल कटते जा रहे है, नदियां प्रदूषित हो रही है, ग्लेशियर पिघल रहे है, समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। ये ऐसे कारण है जिससे ग्लोबल वार्मिंग एवं अन्य आपत्तियां बढ़ती जा रही है। अत: पर्यावरण संतुलन के लिये अधिक से अधिक पेड़ पौधों को लगाना उनकी देखभाल करना सभी को अपना कर्तव्य मानना होगा। वैश्विक ताप के निवारक उपायों में गैसों के उत्सर्जन पर भारी कटौती के साथ साथ प्रभावकारी उपायों पर गंभीर चिंतन करना होगा। बॉयो गैस का उपयोग भी वैश्विक तापमान पर लगाना लगाने में सहायक हो सकता है।

शुक्रवार, 3 मई 2013

भारत और चीन


भारत और चीन दक्षिण एशिया खंड के दो महत्वपूर्ण देश हैं  जिन पर सारी दुनिया की  नजर टिकी हुई हैI आज के समय में इन दोनों देशो ने अपने जीडीपी से सारे विश्व को चौका दिया है और वैश्विक आर्थिक मंदी के सामने भी इन दोनों देशो ने अपनी आर्थिक प्रगति की  दर को बनाये रखा है और दोनों देश २१वी सदी की आर्थिक महाशक्ति बनने की और आगे बढ़ रहे हैI यह संतोषजनक बात है कि चीन के साथ चल रहे सीमा विवाद को सुलझाने की जिम्मेदारी वर्ष 2003 से दोनों देशों की सरकारों द्वारा एक संस्थागत तंत्र को सौंप दी गई है। नई दिल्ली और बीजिंग, दोनों ने ही आश्वासन दिया है कि आर्थिक व्यापार सीमा विवाद के कारण बाधित नहीं होंगे । दूसरे शब्दों में, बातचीत के जरिए सीमा-निर्धारण और सहयोग दोनों समानांतर मार्ग पर साथ-साथ चल रहे हैं और दोनों पक्षों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पूर्व स्थिति को बदलने के लिए बल-प्रयोग की संभावना को नकार दिया है। हालांकि इधर चीन  व भारत  के संबंधों में भारी सुधार हुआ है, तो भी दोनों के संबंधों में कुछ अनसुलझी समस्याएं रही हैं। चीन व भारत के बीच सबसे बड़ी समस्याएं सीमा विवाद और तिब्बत की हैं।

भारत और चीन के मध्य कुछ विवादित बिंदु -:

मैकमोहन लाइन -  550 मीटर की यह लाइन भूटान से हिमालय के सहारे ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक जाती है । इस लाइन को भारत अपनी स्थायी सीमा रेखा मानता है जबकि चीन इसे अस्थाई सीमा रेखा मानता है।

अरुणाचल प्रदेश - मैकमोहन लाइन के दक्षिण में स्थित इस विवादित क्षेत्र को 1937 में सर्वे ऑफ़ इंडिया ने प्रथम बार अपने नक़्शे में मैकमोहन लाइन की  अधिकारिक सीमा के रूप में दर्शाया था और इस विवादित क्षेत्र को भारतीय हिस्सा माना था। 1938 में ब्रिटेन द्वारा अधिकारक तोर पर शिमला समझोते के प्रकाशन के बाद इस पर भारतीय अधिकार सिद्ध हो गया था। लेकिन 1949 की चीनी क्रांति के पश्चात साम्यवादी सरकार ने इस क्षेत्र पर अपना अधिकार जताना आरम्भ कर दिया। तब से लेकर वर्तमान तक यह दोनों देशो के मध्य विवाद का बिंदु बना है।

अक्साई चिन - अक्साई चिन 19 वी शताब्दी तक लद्दाख साम्राज्य का हिस्सा था । जब कश्मीर का लद्दाख पर अधिकार हो गया तो अक्साई चिन भी कश्मीर का हिस्सा बन गया । सन 1950 में चीन ने अक्साई चिन पर अधिकार कर लिया । उसने इस क्षेत्र से होते हुए तिब्बत तक एक सड़क 'चीन राष्ट्रीय राज मार्ग-219 का निर्माण प्रारम्भ कर दिया जिसकी परिणति 1962 के भारत-चीन युद्ध में हुई

ब्रह्मपुत्र को मोड़ने की योजना - चीन पिछले काफी वर्षो से ब्रह्मपुत्र नदी से पानी लेने की योजना बना रहा है। यह चीन की विशाल 'साउथ नोर्थ वाटर लिंक' योजना का हिस्सा है। चीन शुमाटन पॉइंट पर प्रस्तावित बांध के लिए ब्रह्मपुत्र नदी से पानी लेना चाहता है। यदि चीन इस योजना में सफल हो जाता है तो भारत के लिए जल-विज्ञान और भू-विज्ञान सम्बन्धी खतरे पैदा हो जायेगे।

हिमालय पर चीन का खतरा - चीन सतलज तथा उसकी सहायक नदियों पर कई बिजली परियोजनाओ का निर्माण कर रहा है जिसके कारण यह नदिया हिमाचल प्रदेश में तबाही ला सकती हैं। वही दूसरी और गर्मियों में इसके कारण अकाल पड़ सकता है।


तिब्बत पर विवाद - चीन के कब्जे में आने से पूर्व तिब्बत उत्तर-पूर्वी एशियाई देशों के लिए एक बफर राज्य के रूप में था। सन 1892 से 1913 तक चीन ने तिब्बत पर कब्ज़ा करने के असफल प्रयास किये। सन 1913 में तिब्बत ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी और 1914 में इस पर मुद्दे पर शिमला में बैठक हुई। ब्रिटन,चीन तथा तिब्बत के मध्य हुई इस बैठक में तिब्बत ने अपनी संप्रभुता की मांग रखी जिसे चीन ने मानने से इंकार कर दिया। बाद में तिब्बत ने लोचन शत्रा शत्रा के तथा ब्रिटन ने सर हेनरी मैकमिलन की अगुवाई में शिमला समझोता किया और मैकमिलन लाइन अस्तित्व में आयी। इस समझोते में तिब्बत को एक स्वतंत्र राष्ट्र माना गया नाकि चीन का एक प्रान्त। तब से चीन मैकमोहन लाइन को नकारता आ रहा है। 23 मई 1951 को चीन ने दलाईलामा से 17 सूत्रीय समझोते पर जबरदस्ती स्ताक्षर करा लिए और तिब्बत पर चीन का अधिकारिक
कब्ज़ा हो गया। इसके पश्चात दलाईलामा ने बहुत से तिब्बतियों के साथ भारत में शरण ले रखी है।

इन सब विवादित बिन्दुओ का हल निकालने का शांतिपूर्वक प्रयास दोनों देशो को निकलना चाहिए इसके लिए दोनों देशो द्वारा समय-समय पर कदम उठाये जाते रहे हैं।

 दुनिया भारत और चीन  को एक दुसरे का प्रतिस्पर्धी मानती है, लेकिन सच में यह दोनों प्रतिस्पर्धी कम और सहयोगी ज्यादा है I दोनों देशो में राजनितिक माहोल भी अलग है चीन एक समाजवादी देश है जब की भारत लोकतान्त्रिक देश है I दोनों की औद्योगिक नीतियाँ भी अलग है I लेकिन फिर भी हकीकत यही है की अगर इन दोनों देशो को आर्थिक सुधार एवम प्रगति को  जारी रखना है, तो एक दुसरे के साथ आर्थिक एवम राजनीतिक संबधो को और मजबूत करना होगा जिसकी दिशा में सकारात्मक प्रयास दोनों देशो की तरफ से हो रहे है I अगर वाकई में भारत और चीन दोनों एक साथ हो जाये तो फिर अमेरिकी और यूरोपियन संगठन को काफी पीछे छोड़ देगे। हलाकि पिछले कुछ वर्षो में भारत और चीन के व्यापारी रिश्तो में जो सुधार आया है और जो व्यापर बढ़ा है वो इस बात का सबूत है की दोनों देशो को एक दुसरे की अहमियत का पता चल गया है और इसीलिए सभी चीजो को भुलाकर एक दुसरे के साथ आर्थिक रिश्तो को मजबूत करने की और बढ़ रहे है I वास्तव में  दोनों देश एक दुसरे के पूरक हैं, जहाँ चीन में ज्यादातर मेन्युफेकचरिंग उद्योग ज्यादा है और वह सुई से लेकर हवाईजहाज तक बनाता है वहीँ भारत की आर्थिक प्रगति  में सर्विस सेक्टर की ज्यादा भागीदारी है 

हम आशा कर सकते हैं कि दोनों देश मिल जुलकर न केवल एशिया की आर्थिक सूरत सुधारने में आधारभूत भूमिका निभाएंगे, बल्कि 21वीं शताब्दी के मानव इतिहास की दिशा तय करने के साथ-साथ विश्व आर्थिक परिदृश्य में संतुलन के संदर्भ में भी श्रेयस्कर भूमिका निभाएंगे।

सिविल सेवा मुख्य परीक्षा :सामान्य हिन्दी की तैयारी कैसे करें?

सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में सामान्य हिन्दी (या आठवीं अनुसूची में शामिल कोई एक भारतीय भाषा) के लिए 300 अंक निर्धारित होते हैं। यह एक अनिवार्य प्रश् पत्र है, जिसमें केवल अर्हता प्राप्त करनी होती है। इसमें प्राप्त अंकों को योग्यता क्रम निर्धारित करने में नहीं जोड़ा जाता। इसके बावजूद इस प्रश् पत्र की उपेक्षा नहीं की जा सकती, क्योंकि यदि कोई अभ्यर्थी इसमें उत्तीर्ण नहीं हो पाता है, तो उसके शेष प्रश्-पत्रों के उत्तर पत्रों को जांचा ही नहीं जायेगा। मतलब स्पष्ट कि आपने भले ही शेष प्रश् पत्रों में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया हो, लेकिन यदि आप अनिवार्य प्रश्-पत्र हिन्दी (और अंग्रेजी भी) उत्तीर्ण नहीं हो पाते हैं, तो आपकी सारी मेहनत बेकार चली जायेगी। इस लिए इन प्रश् पत्रों को हल्के से न लें और इनकी तैयारी के प्रति पूरी सावधानी बरतें। हिन्दी माध्यम से परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों को सामान्य हिन्दी के प्रश् पत्र में कोई खास परेशानी नहीं होती है, इसके बावजूद उन्हें भी इसकी तैयारी के प्रति उपेक्षा नहीं बरतनी चाहिए। इस प्रश् पत्र में उन अभ्यर्थियों को अधिक परेशानी होती है, जिनका माध्यम शुरू से ही अंग्रेजी रहा है। हालांकि वे हिन्दी क्षेत्र के होते हैं और सामान्य हिन्दी की परीक्षा में शामिल होना उनकी विवशता होती है। ऐसे अभ्यर्थियों को इस प्रश् पत्र में कठिनाई इसलिए होती है, क्योंकि हिन्दी लिखने पढ़ने से उनका नाता टूटा होता है- हालांकि यह भी सच है कि उनका माध्यम भले ही अंग्रेजी होता है, लेकिन अपने परिवार के सदस्यों मित्रों तथा अन्य आत्मीय जनों के साथ उनकी बातचीत का माध्यम हिन्दी या हिन्दी की कोई क्षेत्रीय बोली ही होती है। ऐसे अभ्यर्थियों को परेशानी से बचने के लिए हिन्दी भाषा के साथ अपना संपर्क कमोबेश बनाये रखना चाहिए-इससे न केवल उनका आत्मविश्वास ही बढ़ेगा, बल्कि उन्हें हिन्दी में लिखने-पढ़ने समझने में कभी कोई दिक्कत नहीं होती।
सिविल सेवा मुख्य परीक्षा के पाठयक्रम के अनुसार सामान्य हिन्दी का प्रश् पत्र मैट्रिकुलेशन या समकक्ष स्तर का होता है। इस प्रश् पत्र का उद्देश्य अभ्यर्थियों द्वारा इस भाषा में अपने विचारों को स्पष्ट तथा सही रूप में प्रकट करने की योजना की जांच करना होता है।
पाठयक्रम का विश्लेषण
इस पाठयक्रम के आधार पर निम् प्रकार के कुल 6 प्रश् पूछे जाते हैं।
1.दिए गये विषयों में से किसी एक पर लगभग तीन सौ शब्दों में निबंध लिखना (100 अंक)
2. दिये गये गद्यांश को पढ़ना और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर अपने शब्दों में देना (60 अंक)
3. दिये गये गद्यांश को पढ़ना और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर अपनी भाषा में लगभग 200 शब्दों में देना। संक्षेपण निर्धारित कागज पर ही लिखना होता है, और लिखे गये संक्षेपण में व्यक्त शब्द संख्या का अवश्य उल्लेख करना होता है। उत्तर पुस्तिका के साथ दिए गये निर्धारित कागज पर संक्षेपण न लिखने की स्थिति में या फिर निर्धारित शब्द सीमा से अधिक में संक्षेपण करने पर आपके अंक काटे जा सकते हैं। (60)
4. चौथे प्रश् में दिये गये अंग्रेजी गद्यांश का हिन्दी में अनुवाद करना होता है, इसके लिए 20 अंक निर्धारित होते हैं।
5. पांचवें प्रश् में दिए गये हिन्दी गद्यावतरण का अंग्रेजी में अनुवाद करना होता है। इसके लिए 20 अंक निर्धारित होते हैं।
6. यह प्रश् शब्द प्रयोग तथा शब्द भंडार पर आधारित होता है। इसके लिए कुल 40 अंक निर्धारित होते हैं। इसमें प्राय:तीन तरह के प्रश् पूछे जाते हैं।
दिये गये मुहावरों और लोकोक्तियों का अर्थ स्पष्ट करना और उनका वाक्यों में प्रयोग करना
शब्द युग्मों का वाक्यों में इस प्रकार प्रयोग करना, जिससे उन शब्दों का अर्थ स्पष्ट हो जाये, साथ ही उन दोनों शब्दों के बीच का अंतर भी स्पष्ट हो जाये (10)
इसमें अशुध्द वाक्यों को शुध्द करके लिखना होता है (10)
अंग्रेजी अनुवाद पर दें ध्यान
जिस स्तर पर परीक्षा आप देने जा रहे हैं वह प्रथम श्रेणी अधिकारी के लिए होती है। ऐसे में संघ लोक सेवा आयोग आपसे यह अपेक्षा करता है कि आप दोनों भाषाओं (हिन्दी और अंग्रेजी) का कार्यसाधक ज्ञान अवश्य रखें। प्राय: हिन्दी भाषी और हिन्दी माध्यम के अधिकांश अभ्यर्थियों की पकड़ अंग्रेजी पर उतनी नहीं होती जितनी उनसे अपेक्षित होती है। लिहाजा, इस स्थिति में उन्हें हिन्दी प्रश् पत्र में शामिल 20-20 अंक के दो प्रश्नों (हिन्दी से अंग्रेजी और अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद) का उत्तर देने में परेशानी होती है। ऐसे अभ्यर्थियों को चाहिए कि वे अपनी जानकारी के अनुसार यथासंभव इनके उत्तर देने की कोशिश करें, हो सकता है कि इन दोनों प्रश्नों में कुछ अंक आपको मिल जायें। इनमें कम अंक प्राप्त होने की अवस्था में अभ्यर्थियों को चिंता नहीं करनी चाहिए। क्यों कि कुल 300 अंकों के प्रश्-पत्र में इन दोनोंप् रश्नों के लिए 40 अंक निर्धारित होते हैं। आप शेष बचे 260 अंकों के प्रश्नों के उत्तर अच्छी प्रकार से दें।
वैसे, अंग्रेजी व्याकरण का अध्ययन करने के साथ-साथ नियमित रूप से थोड़ा ही सही किसी अंग्रेजी अखबार का भी अध्ययन करने से अंग्रेजी भाषा पर पकड़ बनने लगती है। यदि आप किसी भी तरह से अनुवाद वाले इन दोनों प्रश्नों का उत्तर देने से बचना चाहते हैं, तो भी परेशान होने की जरूरत नही हैं।
निबंध : उक्त 260 अंकों के प्रश्नों में से पहला प्रश् दिये गये विषय पर 300 शब्दों में निबंध (100 अंक) लिखने का होता है। यहां पर, निबंध लेखन का उद्देश्य आपकी विध्दता को परखना नहीं होता है, बल्कि इसका उद्देश्य आपके प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति कौशल की जांच करना होता है। इसके द्वारा यह देखने की कोशिश की जाती है कि आप कितने प्रभावशाली ढंग से अपनी बात को रख पाते हैं। निबंध लिखते समय शब्द सीमा का हमेशा ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि सीमा से अधिक शब्द हो जाने पर आपके अंकों में कटौती की जा सकती है। इस परीक्षा में जिस तरह के निबंध पूछे जाते हैं, उसके लिए अलग से किसी पुस्तक को पढ़ने की कोई खास आवश्यकता नहीं है। निबंध लेखन (200 अंकों का प्रश् पत्र) की तैयारी यहां पर बखूबी काम आती है।
गद्यांश : गद्यांश पर आधारितप्रश्नों के लिए अभ्यर्थियों से किसी विशेष ज्ञान की अपेक्षा नहीं होती। इसमें गद्यांश को सिर्फ सावधानीपूर्वक पढ़ना और उसे समझना अपेक्षित होता है। इस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर देने से पहले गद्यांश के भावार्थ को समझने की कोशिश करनी चाहिए। यदि आप गद्यांश को समझ चुके होते हैं तो फिर उससे पूछे गये प्रश्नों का अपने शब्दों में उत्तर देना आपके लिए कतई मुश्किल नहीं होता। यह प्रश् कुल 60 अंकों का होता हैयानी दिये गये गद्यांश के आधार पर 12-12 अंक के कुल 5 प्रश् पूछे जाते हैं। यदि आपने पांचों प्रश्ों के सटीक उत्तर दे दिये तो आपको 40 अंक बड़े आराम से मिल सकते है। 

सिविल सेवा में कैसे करें अंग्रेजी की तैयारी

सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में 300 अंकों का अंग्रेजी विषय का एक अनिवार्य प्रश् पत्र होता है। यद्यपि इसमें लाये गये अंक मुख्य परीक्षा के कुल अंकों में शामिल नहीं किये जाते हैं, फिर भी इस प्रश्-पत्र में उत्तीर्ण होना अनिवार्य है। जब तक आप इस प्रश् पत्र में उत्तीर्ण नहीं होंगे। आपके बाकी प्रश्-पत्रों का नही जांचा जायेगा, अर्थात् आप अनुत्तीर्ण घोषित किये जायेंगे। इस प्रश् पत्र में पांच प्रश् होते हैं। पहला प्रश् 300 शब्दों का एक निबंध होता है, जिसके लिए 100 अंक निर्धारित होते हैं। निबंध के प्रश् पत्र के उद्देश्य से अभ्यर्थी जो तैयारी करते हैं, वो यहां काम आती है, अंतर महज इतना है कि विचारों को अंग्रेजी में अभिव्यक्ति करना पड़ता है। अपने विचारों को स्पष्ट तथा सही रूप से प्रकट करना पड़ता है। अपने विचारों को स्पष्ट तथा सही रूप से प्रकट करने के लिए यह जरूरी नहीं है कि हम अच्छी अंग्रेजी का ही उपयोग करें, बल्कि सरल शब्दों का प्रयोग कर हम अपना काम चला सकते हैं। निबंध लिखने में शब्द सीमा का पालन अवश्य करें तथा निबंध लिखने से पहले उसका एक प्रारूप तैयार कर लें।
दूसरा प्रश् अपठित गद्यांश का होता है। इसमें आपको गद्यांश को समझ कर उसके बाद दिये गये प्रश्ों को हल करना पड़ता है। जब आप इस प्रश् को कर रहे हों तो प्रश्ों को गौर से पढ़े। उसमें प्रयुक्त शब्दों को गद्यांश में ढूढें तथा अपने शब्दों में उत्तर देने की चेष्टा करें। यह प्रश् 75 अंकों का होता है अर्थात् यह अंकों की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। गद्यांश मैट्रिकुलेशन अथवा समकक्ष स्तर के होंगे, इसलिए आपको यादा परेशानी नहीं होनी चाहिए। तीसरा प्रश् संक्षेपण का होता है,जिसके लिए 75 अंकों निर्धारित होते है। इसके लिए आपको अलग से एक संक्षेपण पृष्ठ दिया जाता है। आपको संक्षेपण एक तिहाई (लगभग 230) शब्दों में करना होता है। यदि यह दस शब्द यादा या कम हो तो आपके अंक काटे जा सकते हैं। इस प्रश् को हल करने से पूर्व आप दो या तीन बार प्रश् को पढ़े। आम तौर पर विद्यार्थी संक्षेपण में प्रयुक्त शब्दों को ही घटा कर संक्षेपण लिख डालते हैं। ऐसा करना गलत है। संक्षेपण आपके अपने शब्दों में होना चाहिए, जिसमें संक्षेपण का सार स्पष्ट हो। चौथे प्रश् के तीन भाग होते है। ये व्याकरण का आधारित प्रश् होते हैं। पहले भाग में आपको रिक्त स्थान को दिये गये शब्दों के विकल्प में से भरना होता है। इस प्रश् के लिए आपका शब्दकोष अच्छा होना चाहिए। वैसे शब्दकोष एक या दो दिनों में नहीं बढ़ाया जा सकता है। यदि आप नियमित रूप से अंग्रेजी अखबार या पत्रिका पढ़ रहे हैं तो आपको विशेष दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ेगा। इस प्रश् के दूसरे भाग में आपको एक ही शब्द को संज्ञा और क्रिया के रूप में प्रयुक्त कर वाक्य बनाना पड़ता है। उदाहरण के लिए नर्स या जज। यह बेहद आसान प्रश् है उदाहरण के तौर पर हम नर्स शब्द को लें तो इसके दो वाक्य बनेंगे। पहला  -He nursed an injury (Verb) तथा दूसरा -The nurse attended the patientÐ(Noun)  इस प्रश् के तीसरे भाग में आपको दिये गये निर्देशों के आधार पर वाक्य बनाना होता है। उदाहरणार्थ, She said, can you write a poem?” (Change into indirect Speech) उत्तर : She queried if i could write a poem
पांचवां प्रश् भी व्याकरण पर आधारित है और चौथे प्रश् की तरह इसके लिए 25 अंक होते हैं। इसके भी तीन भाग हैं। पहला भाग वाक्य सुधारने का है। दूसरे भाग में दो शब्दों में से एक को चुनकर रिक्त स्थान भरना होता है। तीसरे भाग में शब्द समूह से वाक्य बनाना होता है।
प्रश् संख्या 4 और 5 व्याकरण पर आधारित हैं। इनके लिए आप विदेशी या किसी भारतीय लेखक की व्याकरण की पुस्तक का सहारा ले सकते हैं। आम तौर पर भारतीय लेखकों द्वारा लिखित पुस्तकें यादा अच्छी होती हैं, क्योंकि उनमें हिन्दी में सब कुछ समझाया जाता है। चूंकि इस प्रश्-पत्र का मूल्यांकन बहुत कठोर नहीं होता है, अत: यदि आप ठीक तरी से प्रश्ों को हल कर देते हैं तो आपको इस प्रश् पत्र में उत्तीर्ण होने से कोई नहीं रोक सकता, बल्कि आपको अच्छे अंक प्राप्त हो जायेंगे।
कुछ सामान्य अनुदेश
1. Listen to an English news bulleting everyday ऱ् अंग्रेजी में समाचार आदि सुनने की आदत डालें। इससे आपकी श्रवण-क्षमता बेहतर होगी। इस परिप्रेक्ष्य में टेलीविजन पर समाचार देखने की बजाय रेडियो पर समाचार सुनना अधिक लाभदायक होगा।
2. Speak to you friends in EnglishÑ यथासंभव अपने मित्रों एवं सहपाठियों के साथ अंग्रेजी में बोलने का प्रयास करें। हो सकता है कि आप और आपके साथी शुरूआत में गलत अंग्रेजी बोल रहे हों, मगर अच्छी बात यह है कि आप कोशिश तो कर रहे हैं। कुछ दिनों में जब आप सही व्याकरण एवं उच्चारण सीख जायेंगे, तो फिर आपका भाषा-प्रवाह भी ठीक हो जायेगा।
3. Read an English Newpaper ervryday प्रयास करें कि 20-30 मिनट के लिए कोई भी अंग्रेजी अखबार पढ़े। यदि पढ़ पायें तो बेहतर होगा। इसमें वही समाचार पढ़े जो आप हिंदी में पढ़ चुके हों। इससे आपको समझने में आसानी होगी।
4. Write a page Everyday इसके बाद किसी भी विषय पर 200-300 शब्दों का एक लेख लिखें। शुरूआत में कठिनाई होगी, गलतियां भी होंगी। किंतु समय के साथ आपके लेखन में सुधार आयेगा।
सिविल सेवा के अभ्यर्थी यह न सोचें कि मुख्य परीक्षा में अभी समय है, अत: यदि अभी से प्रतिदिन आधे घंटे से एक घंटे तक का समय अंग्रेजी के लिए समर्पित करें, तो बहुत जल्दी आप इस भाषा पर प्रभुत्व पा सकते हैं। अत: पूरी निष्ठा के साथ प्रयासरत रहें। 

कैसे करें सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी


अधिकांश छात्रों की यहीं मनोदेशा रहती है कि भारतीय सिविल सेवा परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना साधरण व्यक्ति के वश की बात नहीं है और सिर्फ असाधारण बौध्दिक क्षमता वाले लोग ही इसमें सफल होते हैं। लेकिन कुछ ऐसे लोग भी इन परीक्षाओं में सफल होने लगे हैं जिन्होंने इस धारणा को तोड़ा है। अनुभव बताते हैं कि धैर्ये के साथ लगातार एक सुव्यवस्थिति तरीके से तैयारी करने वाले साधारण छात्रा भी सिविल सेवा परीक्षाओं में उत्तीण हो सकते है। अभी तक एक सोच थी कि इन परीक्षाओं में अधिकांश बच्चे बड़े-बड़े अधिकारियों के ही उत्तीर्ण होते हैं। आज यह धरणा भी अब पूरी तरह से गलत साबित हो रही है। चूंकि यह परीक्षा हमारे देश के लिए बड़े अधिकारी वर्ग को पैदा करती है, इस लिए देश का हर युवा अपने दिल में यह अभिलाषा संजोकर चलता है कि वह भी भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में उत्तीर्ण हो। अत: यह ध्यान देना आवश्यक है कि आखिर इसमें क्या जरूरी है तथा तैयारी करने के लिए क्या योजनाएं बनानी पड़ती हैं?
भारतीय सिविल सेवा के लिए यदि धैर्य के साथ लगातार एक सुव्यवस्थित तरीके से तैयारी की जाए तो सफलता अवश्य ही मिलती हैं। इसके लिए एक सुव्यवस्थित तरीका अपनाना चाहिए। सिविल सेवा के मुख्य विषय हैं सामान्य ज्ञान, प्रारंभिक परीक्षा, सामान्य अध्ययन, मुख्य परीक्षा, ऐच्छिक विषय, ऐच्छिक विषय, मुख्य परीक्षा। सामान्य ज्ञान की तैयारी का सबसे आसान तरीका है प्रमुख राजनीतिक-आर्थिक अखबारों व प्रतियोगी परीक्षाओं से संबंधित पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन करना। ये काफी लाभदायक सिध्द होता है। साथ ही यदि सम-सामायिक घटनाओं पर नजर रखी जाए और कुछ प्रमुख आंकड़ों व आलेखों का संकलन करते रहे तो सामान्य ज्ञान में बढ़ावा होता हैं। इसके साथ ही साथ अर्थशास्त्र, इतिहास, भूगोल, विज्ञान, टेक्नोलॉजी व राजनीति विज्ञान का अध्ययन बहुत ही फायदेमंद होता है।
सामान्य अध्ययन, मुख्य परीक्षा- मुख्य परीक्षा के लिए सभी कठिन तथ्यों, फार्मूलों एवं चित्रों को एक अलग नोटबुक में संकलित करते रहे। इस परीक्षा में गहन अध्ययन की आवश्यकता होती हैं अत:गहन अध्ययन करे। किताबी भाषा रटने की बजाए खुद अपने शब्दों में अभिव्यक्त करने की आदत डाले। इस परीक्षा में भारतीय भाषा और अंग्रेजी का भी अध्ययन करना पड़ता है। भारतीय भाषा की तैयारी में पिछले दो-तीन सालों के प्रश्न-पत्रों का स्वरूप समझ लेना ही काफी लाभदायक है। जबकि रेन एंड मार्टिन की ग्रामर अंग्रेजी के लिए लाभदायक होती है। निबंधों की तैयारी लिखकर करनी चाहिए। अपना स्वयं का दृष्टिकोण बनाना चाहिए जो काफी प्रभावकारी होती है।
इसी तरह ऐच्छिक विषय, प्रांरभिक परीक्षा के तहत समाज शास्त्र, भारतीय इतिहास, भौतिकी या कानून का अध्ययन जरूरी है। जबकि ऐच्छिक विषय, मुख्य परीक्षा में समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, लोकप्रकाशासन, भौतिकी तथा गणित की विधिवत तैयारी आवश्यक हैं। लेकिन सबकी ये ख्वाहिश पूरी नहीं हो पाती है क्यों कि अधिकांश लोग उसके लिए अपने आप को मानसिक रूप से तैयार नहीं कर पाते अत: तैयारी छोड़ देते हैं। ऐसे में वे हारे बिना ही हार जाते हैं। दरअसल प्रारंभिक परीक्षा में प्रदर्शन तथा मुख्य परीक्षा की तैयारी के आधार पर अभ्यर्थियों को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है।
1वे अभ्यर्थी जो प्रांरभिक परीक्षा उत्तीर्ण कर लेने के प्रति काफी आश्वस्त होंगे और उन्होंने मुख्य परीक्षा के काफी हिस्से की तैयारी कर रखी होगी।
1वे अभ्यर्थी जो प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण कर लेने के प्रति आश्वस्त होंगे, लेकिन मुख्य परीक्षा की पूर्व तैयारी नहीं की होगी। किंतु प्रारंभिक परीक्षा देने के बाद मुख्य परीक्षा की तैयारी में लग गए होंगे।
वे अभ्यर्थी जो प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण कर लेने के प्रति आश्वस्त नहीं होंगे, इस लिए वे परिणाम को देख लेने के बाद ही मुख्य परीक्षा की तैयारी प्रारंभ करना चाहते होंगे। कहना न होगा कि पहली श्रेणी के अभ्यर्थियों की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर होगी। दूसरी श्रेणी के अभ्यर्थी मुख्य परीक्षा की तैयारी की दृष्टि से बहुत अच्छी स्थिति में नहीं होंगे, लेकिन परिणाम की प्रतीक्षा किए बिना मुख्य परीक्षा की तैयारी शुरू कर देने की वजह से ऐसी आशा की जा सकता है कि वे अंत तक अच्छी स्थिति में आ जाएंगे। जहां तक तीसरी श्रेणी के अभ्यर्थियों का प्रश् है, उनकी स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती। ऐसे अभ्यर्थियों के लिए कहा जा सकता है कि अभी भी देर नहीं हुई है, शुरूआत करें और तैयारी के लिए जी-जान से आगे बढ़ें। आपकी प्रारंभिक परीक्षा बेहतर हुई है या नहीं, आप इसमें सफल होंगे या नहीं, आपने पहले से मुख्य परीक्षा की तैयारी कर रखी है या नहीं। इन सभी मामलों में मुख्य परीक्षा की तैयारी तुरंत प्रारंभ कर देनी चाहिए, क्योंकि आप को खोना कुछ नहीं, बस पाना ही पाना है। एक मिनट भी परिणाम की प्रतीक्षा या उसके बारे में चितिंत होने में बर्बाद न करें। इस समस्या का सर्वोत्तम समाधान है-'चिंतित होना बंद करें और काम करना शुरू करें'।
प्रारंभिक परीक्षा और मुख्य परीक्षा के बीच का अंतराल काफी महत्वपूर्ण होता है। इस अंतराल में अभ्यर्थी कई मन:स्थितियों से गुजरते हैं। कभी वे परिणाम को लेकर चिंतित होते हैं, तो कभी वे 'क्या करें, क्या न करें' के ऊहापोह में लगे रहते हैं। लेकिन स्वयं पर नियंत्रण रखते हुए इन स्थितियों को अपना बनाना होगा। कहा गया है, 'दो निरंतर युध्दों के बीच की तैयारी अवधि विजयश्री को सुनिश्चत करने में प्राय:सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक होती है'। जो अपने हौसले को उच्च स्तर पर बनाए रखता है तथा सकारात्मक मन:स्थिति को संपोषित करने में सक्षम होता है। वही विजेता बनकर उभरता है।
कोई भी युध्द तभी जीता जा सकता है जब उसके लिए पहले ही एक फुलप्रूफ योजना बनाई जाए और उस योजना के तहत तैयारी की जाए। बिना योजना बनाए युध्द लड़ना पराजय को ही आमंत्रित करना होता है, क्यों कि ऐसी स्थिति में हर योध्दा दिशाहीन लड़ाई लड़ेगा, आक्रमण जिधर करना चाहिए उधर नहीं होगा, अंधेरे में तीर चलेंगे, परिणाम तो शून्य होगा ही। सिविल सेवा परीक्षा का युध्द तीन स्तरों 'प्रारंभिक, मुख्य और साक्षात्कार' पर लड़ा जाता है, जिनमें से मुख्य परीक्षा काफी अहम है। ऐसा इस लिए कि इसमें प्राप्त होने वाले अंक ही आप को इस सेवा में जाने की गारंटी देते हैं। अत: युध्द के इस स्तर को लड़ने के लिए पूर्व तैयारी करना आवश्यक है। लेकिन मुख्य परीक्षा की तैयारी प्रारंभ करने के पूर्व यह जान लेना आवश्यक है कि इस परीक्षा की प्रकृति कैसी है और आयोग इस परीक्षा के माध्यम से अभ्यर्थियों में किन गुणों की खोज करना चाहता है? साथ ही, यह भी जानना जरूरी है कि मुख्य परीक्षा प्रारंभिक परीक्षा से कैसे भिन्न है? ताकि स्पष्ट रूप से ज्ञात हो सके कि मुख्य परीक्षा में करना क्या है।
मुख्य परीक्षा परिमाणात्मक एवं गुणात्मक रूप से प्रारंभिक परीक्षा से भिन्न होती है। मुख्य परीक्षा में सही विकल्प का चुनाव करने और उसे ओएमआर पत्रक में चिह्नित करने के बजाए शब्द सीमा एवं समय सीमा का ध्यान रखते हुए विस्तृत व व्यापक अध्ययन के विपरीत मुख्य परीक्षा के लिए चयनात्मक, गहन एवं विशेषणात्मक अध्ययन की जरूरत होती है। जहां प्रारंभिक परीक्षा बहुत सारे तथ्यों, चित्रों और सूचनाओं को स्मरण रखने की अपेक्षा करती है, वहीं इनके अलावा मुख्य परीक्षा अभ्यर्थी से पढ़ी गई सामग्री को सुव्यवस्थित करने, उसका विश्लेषण करने तथा अभ्यर्थी को अपनी विचारधारा को विकसित करने की अपेक्षा रखती है। इससे तैयारी में एक गुणात्मक अंतर पैदा हो जाता है। अत:उम्मीदवार को मुख्य परीक्षा की तैयारी पूर्णत: नए तथा नियोजित एवं वैज्ञानिक तरीके से करनी चाहिए, जो पूर्ण रूप से परीक्षा की मांग के अनुरूप हो।