मंगलवार, 15 अक्टूबर 2013

राजनीतिक बंदियों की रिहाई से लोकतांत्रिक छवि पेश कर म्यांमार

पांच दशक के सैन्य शासन के बाद करीब दो साल पहले लोकतंत्र की राह पर निकला म्यांमार जल्द ही महत्वपूर्ण मुकाम हासिल करना चाहता है इसलिए राष्ट्रपति थ्येन सेन बडे़ वैश्विक आयोजनों में शामिल होने से पहले राजनीतिक बंदियों की रिहाई करके दुनिया के समक्ष देश की नई तस्वीर पेश करने की भरपूर कोशिश करते हैै। 
म्यांमार में कई पीढिय़ों के लोकतंत्र समर्थक नेता, वकील, प्रोफेसर, पत्रकार, छात्र और अन्य राजनीतिक कार्यकर्ता लोकतंत्र की बहाली के लिए संघर्ष करते हुए लंबे समय से जेलों में बंद हैं। दशकों तक उन्हें किसी ने नहीं पूछा। शांति के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित लोकतंत्र समर्थक नेता आंग सांग सू की भी दशकों तक जेल में रही और रिहा होने के बाद वह देश के अन्य लोकतंत्र समर्थक नेताओं को मुक्त कराने के लिए शांतिपूर्वक संघर्ष शुरु कर रही है। म्यांमार में लोकतंत्र लौट रहा है इसका भी सू की बखूबी प्रचार कर रही हैं और इस क्रम में उन्होंने भारत सहित कई अन्य लोकतांत्रिक देशों की यात्रा भी की है। म्यांमार लोकतंत्र की राह पर तेजी से अग्रसर है यही बात संयुक्त राष्ट्र महासिचव बान की मून भी कहते हैं।  
राष्ट्रपति थ्येन सेन विश्व मंच पर देश की लोकतांत्रिक छवि पेश करने पर जुटे हैं। हाल ही में बु्रनेई में दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के संगठन आसियान की बैठक में हिस्सा लेने से पहले उन्होंने अपने यहां बंद 56 राजनीतिक बंदियों की रिहाई की घोषणा करके संदेश देना चाहा कि उनके देश में लोकतंत्र की शुरुआत हो चुकी है और वहां राजनीतिक स्तर पर लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत किया जा रहा हैै। उन्होंने विश्व समुदाय को बंदियों की रिहाई का आदेश देकर यह भी संदेश दिया है कि म्यांमार मेेंं खुला और पारदर्शी माहौल है और सभी के पास समान राजनीतिक अधिकार हैं।  
सरकार ने जुलाई में भी 70 राजनीतिक बंदियों को उस समय रिहा करने की घोषणा की थी जब राष्ट्रपति थ्येन संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में हिस्सा लेने जा रहे थे। उन्होंने तब भी पूरी दुनिया को संदेश दिया था कि उन्हें लोकतांत्रिक देश की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। उन्होंने उसी दौरान यह भी घोषणा की थी कि इस साल के अंत तक सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा किया जाएगा। एक अनुमान के अनुसार देश की जेलों में अब भी 130 के आसपास राजनीतिक बंदी हैं। 
म्यांमार की जेलें कभी दस हजार से अधिक राजनीतिक बंदियों का घर हुआ करती थीं लेकिन अब स्थिति सुधारी है और वहां से बड़ी संख्या में बंदियो ं को रिहा किया जा चुका है। जेलों से रिहा हो रहे राजनीतिक कैदियों का कहना है कि अब गिनती के ही उनके साथी जेलों में हैं और उनकी संख्या धीरे धीरे कम हो रही है। बंदियों में कई पीढिय़ों के राजनैतिक कार्यकर्ता है और सभी को देश में लोकतंत्र की बहाली की वकालत करने के आराप में सलाखों के पीछे ठूंसा गया था। राष्ट्रपति थ्येन ने मार्च 2011 में देश की बागडोर संभाली और तब से वह विश्व समुदाय को विश्वास दिलाने में लगे हैं कि म्यांमार अब लोकतांत्रिक देश है।  
संयुक्त राष्ट्र ने म्यांमार में मानवाधिकार पर नजर रखने के लिए विशेष प्रतिनिधि के तौर पर तोमस आेजे किंताने को भेजा है। तोमस ने हाल में राजनीतिक बंदियों की रिहाई पर म्यांमार सरकार की सराहना की और कहा है कि इन सभी बंदियों को देश की पूर्व सैन्य सरकार ने अन्यायपूर्ण तरीके से जेलों में ठूंस दिया था। उनका कहना है कि राजनीतिक कैदियों की रिहाई उनके अथवा उनके परिवार के सदस्यों के लिए ही नहीं बल्कि  देश मंे लोकतंत्र की बहाली और देश को फिर से पटरी पर लाने के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है। 
मानवाधिकार के विशेष प्रतिनिधि का कहना है कि जिन लोगों को रिहा किया जा रहा है उनमें 1988 और फिर 1996 के दौरान बंद हुए राजनीतिक कार्यकर्ता शामिल हैं। उन्हें इस बात की भी चिंता है कि अब भी बडी संख्या में लोगों को गिरफ्तार  किया जा रहा है।  सरकार पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि कई लोगों को राजनीतिक विद्वेष के कारण गिरफ्तार किया गया है। पिछले साल जून जुलाई में भी बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया गया था। विशेषज्ञों का कहना है कि राजनीतिक बंदियों की रिहाई का काम  सिद्धांत आधारित और बिना शर्त होना चाहिए। रिहाई के बाद उन्हें कहीं भी जाने और किसी भी स्थान पर रहने की छूट होनी चाहिए। जेल से बाहर उन्हें पूरी राजनीतिक और सामाजिक आजादी मिलनी चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के विशेष प्रतिनिधि म्यांमार में मानवाधिकार की स्थिति पर कड़ी नजर रखे हैं और सरकार का प्रयास अपनी छवि सुधारने के लिए उन्हें हर संभव यह विश्वास दिलाना है कि देश की शासन व्यवस्था लोकतंत्र के अनरूप हैं इसलिए उसे अब विश्व मंच पर लोकतांत्रिक देश केरूप में देखा जाना चाहिए। विशेष प्रतिनिधि म्यांमार में चल रही मानवाधिकार की स्थिति पर संतुष्ट हैं और वह संयुकतराष्ट्र महासभा की आम बैठक में वहां की स्थिति पर जल्द ही रिपोर्ट भी पेश कर देंगे। 
संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने महासभा की हाल में ही न्यूयार्क में हुई 68वीं बैठक के दौरान म्यांमार  के मित्र देशों के प्रतिनिधियों के साथ अलग से बातचीत की। इस बैठक में भी यही कहा गया कि म्यांमार में सुधार हो रहा हैै और यह देश तेजी से लोकतंत्र की राह पर चल रहा है। म्यांमार में 1988 के सैन्य तख्ता पलट के दौरान लोकतंत्र समर्थकों के सपने को चकनाचूर कर दिया गया था, लेकिन आज स्थिति बहुत बदली है और वहां लोकतंत्र का रास्ता दिखाई देने लगा है। पिछले दो साल के दौरान हजारों राजनीतिक कैदियों को रिहा किया जा चुका है और म्यांमार अपनी आर्थिक हालात में सुधार लाने के लिए वैश्विक स्तर पर बाजार तलाश रहा है। वह दुनिया के साथ अन्य लोकतांत्रिक देशों की तरह सहभागिता चाहता है। 

शनिवार, 21 सितंबर 2013

त्योहारी मौसम में और मैली होगी गंगा


विश्व में भारतीय संस्कृति की पर्याय तथा करोड़ांे हिन्दू अनुयायियों की आस्था की प्रतीक मोक्षदायिनी गंगा त्योहारी मौसम में एक बार फिर और मैली होने को विवश है। वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों ने आगामी त्योहारी के दौरान प्रतिमा विसर्जन तथा पूजा सामग्री के प्रवाह से गंगाजल दस प्रतिशत तक और अधिक दूषित होने की संभावना जताई है। 
देश की करीब आधी आबादी की जीवन रेखा गंगा का उदगम उत्तरांचल में स्थित हिमालय के पश्चिमी छोर पर 12 हजार 769 फिट की ऊंचाई पर स्थित गोमुख से माना जाता है। उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल से गुजरते हुए यह पवित्र नदी बंगाल की खाड़ी में लुप्त होने से पहले 2525 किलोमीटर का सफर तय कर करोड़ों भारतीयों को भोजन तथा रोजगार उपलब्ध करा देती है। उत्तर प्रदेश की प्रमुख नदी गंगा इस दौरान वाराणसी, मिर्जापुर, कानपुर और इलाहाबाद समेत उत्तर प्रदेश के एक दर्जन से अधिक जिलों में श्रद्धा, संस्कृति और भक्ति के  संगम की अनुपम मिसाल पेश करती है। 
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार प्रतिमाओं के निर्माण में काम आने वाले प्लास्टर आफ पेरिस में जिप्सम, सल्फर, फासफोरस और मैग्नीशियम नदियों के जल को प्रदूषित करते हैं जबकि मूर्तियों की सजावट के लिये इस्तेमाल होने वाले रसायनिक रंगो में मौजूद मरकरी, कैडमियम, शीशा और कार्बन जल को विषाक्त बनाने में महती भूमिका अदा करते हैं। बोर्ड के अनुसार नदियों में प्रवास करने वाली मछली और चिडिय़ों जैसे जलीय जीव जंतु इन रसायनों से कुप्रभावित होते हैं जबकि इन जंतुओं को खाद्य सामग्री के तौर पर इस्तेमाल करने तथा पेय जल से लोग चर्मरोग, श्वांस रोग, अम्लता तथा कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं। 
गणेश पूजा के साथ शुरू हिन्दुओं का त्योहारी मौसम करीब दो माह के बाद छठ पूजा के साथ समाप्त होगा। इस दौरान दुर्गापूजा समेत कई छोटे बड़े त्योहारो से घर और बाजार जगमगायेंगे। दिलचस्प पहलू यह है कि गंगा के प्रति अटूट श्रद्धा रखने वाले ये श्रद्धालु ही इस दौरान गंगा में प्रतिमायें और पूजा सामग्री प्रवाहित कर उसके जल को और मैला  करेंगे। 
गणेश प्रतिमाओं के विसर्जन का कार्यक्रम सम्पन्न हो चुका है । एकअनुमान के अनुसार इस वर्ष पूरे प्रदेश में गणेश प्रतिमाओं के पंडाल में करीब दो गुना का इजाफा हुआ जबकि 15 दिनों तक चलने वाले पितृपक्ष के बाद श्रद्धालु दुर्गापूजा में व्यस्त हो जाएंगे। दुर्गा प्रतिमाओं और पूजा सामग्री का विसर्जन गंगा, गोमती और यमुना समेत कई छोटी बड़ी नदियों में सम्पन्न होगा। 
गैर सरकारी संस्था 'इको फ्रैन्डस के कार्यकारी निदेशक राकेश जायसवाल ने इस सबंध में कहा कि सीवर तथा चर्म टेनरियों से निकले रसायन गंगा को सर्वाधिक प्रदूषित करते हैं मगर श्रद्धा के नाम पर आम लोगों का अल्प मात्रा में ही सही मगर नदियों को प्रदूषित करना खेदजनक है। जायसवाल ने कहा कि मूर्तियों के विसर्जन का मानसून के तुरंत बाद होता है। इस दौरान नदियों में पर्याप्त जल होता है जिससे फौरी तौर पर प्रदूषण का पता नहीं चलता मगर नवम्बर से जून के मध्य जब नदियों में जल की मात्रा कम होती है उस दौरान प्रदूषित सामग्री से जल मे घुलित आक्सीजन सामान्य से काफी क म हो जाती है। 
उन्होंने कहा कि नदियों के पीने योग्य जल में सामान्य तौर पर जैविक आक्सीजन डिमांड (बीओडी) तीन मिलीग्राम प्रति लीटर से कम होनी चाहिये जबकि घुलित आक्सीजन (डीओ) की मात्रा 5 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक होनी चाहिये। सीवर के प्रदूषित जल में बीओडी 250 मिलीग्राम प्रति लीटर के करीब होता है जबकि चर्म शोधन इकाइयों से निकले प्रदूषित जल में यह स्तर 2000 मिली प्रति लीटर से अधिक हो सकता है। 
उन्होंने सुझाव दिया कि यदि प्लास्टर आफ पेरिस की जगह मिट्टी और जूट से बनी मूर्तियां इस्तेमाल की जाये तथा इनकों रंगने के लिये हानिकारक रसायनिक रंगो की बजाय पर्यावरण के अनुकूल वनस्पतियों से बने रंगों को इस्तेमाल किया जाये तो प्रतिमाओं के विसर्जन से नदियों पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा। पूजा सामग्री को नदियों में विसर्जित करने की बजाय पेड़ अथवा गमलों में डाल देना चाहिये जों खाद का काम करेंगे।

खतरे की घंटी बजाते मोबाइल!


मोबाइल फोन के बिना अब हम जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर पाते। आदत ऐसी बन गई है कि जब कॉल नहीं होता, तो भी हमें लगता है कि घंटी बज रही है। यह घंटी दरअसल खतरे की घंटी हो सकती है। मोबाइल फोन और मोबाइल टावर से निकलने वाला रेडिएशन सेहत के लिए खतरा भी साबित हो सकता है। लेकिन कुछ सावधानियां बरती जाएं, तो मोबाइल रेडिएशन से होने वाले खतरों से काफी हद तक बचा जा सकता है। 
क्या रेडिएशन से सेहत से जुड़ी समस्याएं होती हैं?
मोबाइल रेडिएशन पर कई रिसर्च पेपर तैयार कर चुके आईआईटी बॉम्बे में इलेक्ट्रिकल इंजिनियर प्रो. गिरीश कुमार का कहना है कि मोबाइल रेडिएशन से तमाम दिक्कतें हो सकती हैं, जिनमें प्रमुख हैं सिरदर्द, सिर में झनझनाहट, लगातार थकान महसूस करना, चक्कर आना, डिप्रेशन, नींद न आना, आंखों में ड्राइनेस, काम में ध्यान न लगना, कानों का बजना, सुनने में कमी, याददाश्त में कमी, पाचन में गड़बड़ी, अनियमित धड़कन, जोड़ों में दर्द आदि।
स्टडी कहती है कि मोबाइल रेडिएशन से लंबे समय के बाद प्रजनन क्षमता में कमी, कैंसर, ब्रेन ट्यूमर और मिस-कैरेज की आशंका भी हो सकती है। दरअसल, हमारे शरीर में 70 फीसदी पानी है। दिमाग में भी 90 फीसदी तक पानी होता है। यह पानी धीरे-धीरे बॉडी रेडिएशन को अब्जॉर्ब करता है और आगे जाकर सेहत के लिए काफी नुकसानदेह होता है। यहां तक कि बीते साल आई डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक मोबाइल से कैंसर तक होने की आशंका हो सकती है। इंटरफोन स्टडी में कहा गया कि हर दिन आधे घंटे या उससे ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल करने पर 8-10 साल में ब्रेन ट्यूमर की आशंका 200-400 फीसदी बढ़ जाती है।
रेडिएशन कितनी तरह का होता है?
माइक्रोवेव रेडिएशन उन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स के कारण होता है, जिनकी फ्रीक्वेंसी 1000 से 3000 मेगाहर्ट्ज होती है। माइक्रोवेव अवन, एसी, वायरलेस कंप्यूटर, कॉर्डलेस फोन और दूसरे वायरलेस डिवाइस भी रेडिएशन पैदा करते हैं। लेकिन लगातार बढ़ते इस्तेमाल, शरीर से नजदीकी और बढ़ती संख्या की वजह से मोबाइल रेडिएशन सबसे खतरनाक साबित हो सकता है। मोबाइल रेडिएशन दो तरह से होता है, मोबाइल टावर और मोबाइल फोन से।
रेडिएशन से किसे ज्यादा नुकसान होता है?
मैक्स हेल्थकेयर में कंसल्टेंट न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. पुनीत अग्रवाल के मुताबिक मोबाइल रेडिएशन सभी के लिए नुकसानदेह है लेकिन बच्चे, महिलाएं, बुजुर्गों और मरीजों को इससे ज्यादा नुकसान हो सकता है। अमेरिका के फूड एंड ड्रग्स ऐडमिनिस्ट्रेशन का कहना है कि बच्चों और किशोरों को मोबाइल पर ज्यादा वक्त नहीं बिताना चाहिए और स्पीकर फोन या हैंडसेट का इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि सिर और मोबाइल के बीच दूरी बनी रहे। बच्चों और और प्रेगनेंट महिलाओं को भी मोबाइल फोन के ज्यादा यूज से बचना चाहिए।
मोबाइल टावर या फोन, किससे नुकसान ज्यादा?
प्रो. गिरीश कुमार के मुताबिक मोबाइल फोन हमारे ज्यादा करीब होता है, इसलिए उससे नुकसान ज्यादा होना चाहिए लेकिन ज्यादा परेशानी टावर से होती है क्योंकि मोबाइल का इस्तेमाल हम लगातार नहीं करते, जबकि टावर लगातार चौबीसों घंटे रेडिएशन फैलाते हैं। मोबाइल पर अगर हम घंटा भर बात करते हैं तो उससे हुए नुकसान की भरपाई के लिए हमें 23 घंटे मिलते हैं, जबकि टावर के पास रहनेवाले उससे लगातार निकलने वाली तरंगों की जद में रहते हैं। अगर घर के समाने टावर लगा है तो उसमें रहनेवाले लोगों को 2-3 साल के अंदर सेहत से जुड़ी समस्याएं शुरू हो सकती हैं। मुंबई की उषा किरण बिल्डिंग में कैंसर के कई मामले सामने आने को मोबाइल टावर रेडिएशन से जोड़कर देखा जा रहा है। फिल्म ऐक्ट्रेस जूही चावला ने सिरदर्द और सेहत से जुड़ी दूसरी समस्याएं होने पर अपने घर के आसपास से 9 मोबाइल टावरों को हटवाया।
मोबाइल टावर के किस एरिया में नुकसान सबसे ज्यादा?
मोबाइल टावर के 300 मीटर एरिया में सबसे ज्यादा रेडिएशन होता है। ऐंटेना के सामनेवाले हिस्से में सबसे ज्यादा तरंगें निकलती हैं। जाहिर है, सामने की ओर ही नुकसान भी ज्यादा होता है, पीछे और नीचे के मुकाबले। मोबाइल टावर से होनेवाले नुकसान में यह बात भी अहमियत रखती है कि घर टावर पर लगे ऐंटेना के सामने है या पीछे। इसी तरह दूरी भी बहुत अहम है। टावर के एक मीटर के एरिया में 100 गुना ज्यादा रेडिएशन होता है। टावर पर जितने ज्यादा ऐंटेना लगे होंगे, रेडिएशन भी उतना ज्यादा होगा।
कितनी देर तक मोबाइल का इस्तेमाल ठीक है?
दिन भर में 24 मिनट तक मोबाइल फोन का इस्तेमाल सेहत के लिहाज से मुफीद है। यहां यह भी अहम है कि आपके मोबाइल की SAR वैल्यू क्या है? ज्यादा SAR वैल्यू के फोन पर कम देर बात करना कम SAR वैल्यू वाले फोन पर ज्यादा बात करने से ज्यादा नुकसानदेह है। लंबे वक्त तक बातचीत के लिए लैंडलाइन फोन का इस्तेमाल रेडिएशन से बचने का आसान तरीका है। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि ऑफिस या घर में लैंडलाइन फोन का इस्तेमाल करें। कॉर्डलेस फोन के इस्तेमाल से बचें।
बोलते हैं आंकड़े
-2010 में डब्ल्यूएचओ की एक रिसर्च में खुलासा हुआ कि मोबाइल रेडिएशन से कैंसर होने का खतरा है।
-हंगरी में साइंटिस्टों ने पाया कि जो युवक बहुत ज्यादा सेल फोन का इस्तेमाल करते थे, उनके स्पर्म की संख्या कम हो गई।
-जर्मनी में हुई रिसर्च के मुताबिक जो लोग ट्रांसमिटर ऐंटेना के 400 मीटर के एरिया में रह रहे थे, उनमें कैंसर होने की आशंका तीन गुना बढ़ गई। 400 मीटर के एरिया में ट्रांसमिशन बाकी एरिया से 100 गुना ज्यादा होता है।
-केरल में की गई एक रिसर्च के अनुसार सेल फोन टॉवरों से होनेवाले रेडिएशन से मधुमक्खियों की कमर्शल पॉप्युलेशन 60 फीसदी तक गिर गई है।
-सेल फोन टावरों के पास जिन गौरेयों ने अंडे दिए, 30 दिन के बाद भी उनमें से बच्चे नहीं निकले, जबकि आमतौर पर इस काम में 10-14 दिन लगते हैं। गौरतलब है कि टावर्स से काफी हल्की फ्रीक्वेंसी (900 से 1800 मेगाहर्ट्ज) की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्ज निकलती हैं, लेकिन ये भी छोटे चूजों को काफी नुकसान पहुंचा सकती हैं।
-2010 की इंटरफोन स्टडी इस बात की ओर इशारा करती है कि लंबे समय तक मोबाइल के इस्तेमाल से ट्यूमर होने की आशंका बढ़ जाती है।
रेडिएशन को लेकर क्या हैं गाइडलाइंस?
जीएसएम टावरों के लिए रेडिएशन लिमिट 4500 मिलीवॉट/मी. स्क्वेयर तय की गई। लेकिन इंटरनैशनल कमिशन ऑन नॉन आयोनाइजिंग रेडिएशन (आईसीएनआईआरपी) की गाइडलाइंस जो इंडिया में लागू की गईं, वे दरअसल शॉर्ट-टर्म एक्सपोजर के लिए थीं, जबकि मोबाइल टॉवर से तो लगातार रेडिएशन होता है। इसलिए इस लिमिट को कम कर 450 मिलीवॉट/मी. स्क्वेयर करने की बात हो रही है। ये नई गाइडलाइंस 15 सितंबर से लागू होंगी। हालांकि प्रो. गिरीश कुमार का कहना है कि यह लिमिट भी बहुत ज्यादा है और सिर्फ 1 मिलीवॉट/मी. स्क्वेयर रेडिशन भी नुकसान देता है। यही वजह है कि ऑस्ट्रिया में 1 मिलीवॉट/मी. स्क्वेयर और साउथ वेल्स, ऑस्ट्रेलिया में 0.01 मिलीवॉट/मी. स्क्वेयर लिमिट है।
दिल्ली में मोबाइल रेडिएशन किस लेवल पर है?
2010 में एक मैगज़ीन और कंपनी के सर्वे में दिल्ली में 100 जगहों पर टेस्टिंग की गई और पाया कि दिल्ली का एक-चौथाई हिस्सा ही रेडिएशन से सुरक्षित है लेकिन इन जगहों में दिल्ली के वीवीआईपी एरिया ही ज्यादा हैं। रेडिएशन के लिहाज से दिल्ली का कनॉट प्लेस, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन, खान मार्केट, कश्मीरी गेट, वसंत कुंज, कड़कड़डूमा, हौज खास, ग्रेटर कैलाश मार्केट, सफदरजंग अस्पताल, संचार भवन, जंगपुरा, झंडेवालान, दिल्ली हाई कोर्ट को डेंजर एरिया में माना गया। दिल्ली के नामी अस्पताल भी इस रेडिएशन की चपेट में हैं।
किस तरह कम कर सकते हैं मोबाइल फोन रेडिएशन?
-रेडिएशन कम करने के लिए अपने फोन के साथ फेराइट बीड (रेडिएशन सोखने वाला एक यंत्र) भी लगा सकते हैं।
-मोबाइल फोन रेडिएशन शील्ड का इस्तेमाल भी अच्छा तरीका है। आजकल कई कंपनियां मार्केट में इस तरह के उपकरण बेच रही हैं।
-रेडिएशन ब्लॉक ऐप्लिकेशन का इस्तेमाल कर सकते हैं। दरअसल, ये खास तरह के सॉफ्टवेयर होते हैं, जो एक खास वक्त तक वाईफाई, ब्लू-टूथ, जीपीएस या ऐंटेना को ब्लॉक कर सकते हैं।
टावर के रेडिएशन से कैसे बच सकते हैं?
मोबाइल रेडिएशन से बचने के लिए ये उपाय कारगर हो सकते हैं:
-मोबाइल टॉवरों से जितना मुमकिन है, दूर रहें।
-टावर कंपनी से ऐंटेना की पावर कम करने को बोलें।
-अगर घर के बिल्कुल सामने मोबाइल टावर है तो घर की खिड़की-दरवाजे बंद करके रखें।
-घर में रेडिएशन डिटेक्टर की मदद से रेडिएशन का लेवल चेक करें। जिस इलाके में रेडिएशन ज्यादा है, वहां कम वक्त बिताएं।
Detex नाम का रेडिएशन डिटेक्टर करीब 5000 रुपये में मिलता है।
-घर की खिड़कियों पर खास तरह की फिल्म लगा सकते हैं क्योंकि सबसे ज्यादा रेडिएशन ग्लास के जरिए आता है। ऐंटि-रेडिएशन फिल्म की कीमत एक खिड़की के लिए करीब 4000 रुपए पड़ती है।
-खिड़की दरवाजों पर शिल्डिंग पर्दे लगा सकते हैं। ये पर्दे काफी हद तक रेडिएशन को रोक सकते हैं। कई कंपनियां ऐसे प्रॉडक्ट बनाती हैं।
क्या कम सिग्नल भी हो सकते हैं घातक?
अगर सिग्नल कम आ रहे हों तो मोबाइल का इस्तेमाल न करें क्योंकि इस दौरान रेडिएशन ज्यादा होता है। पूरे सिग्नल आने पर ही मोबाइल यूज करना चाहिए। मोबाइल का इस्तेमाल खिड़की या दरवाजे के पास खड़े होकर या खुले में करना बेहतर है क्योंकि इससे तरंगों को बाहर निकलने का रास्ता मिल जाता है।
स्पीकर पर बात करना कितना मददगार?
मोबाइल शरीर से जितना दूर रहेगा, उनका नुकसान कम होगा, इसलिए फोन को शरीर से दूर रखें। इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन से बचने के लिए स्पीकर फोन या या हैंड्स-फ्री का इस्तेमाल करें। ऐसे हेड-सेट्स यूज करें, जिनमें ईयर पीस और कानों के बीच प्लास्टिक की एयर ट्यूब हो।
क्या मोबाइल तकिए के नीचे रखकर सोना सही है?
मोबाइल को हर वक्त जेब में रखकर न घूमें, न ही तकिए के नीचे या बगल में रखकर सोएं क्योंकि मोबाइल हर मिनट टावर को सिग्नल भेजता है। बेहतर है कि मोबाइल को जेब से निकालकर कम-से-कम दो फुट यानी करीब एक हाथ की दूरी पर रखें। सोते हुए भी दूरी बनाए रखें।
जेब में मोबाइल रखना दिल के लिए नुकसानदेह है?
अभी तक मोबाइल रेडिएशन और दिल की बीमारी के बीच सीधे तौर पर कोई ठोस संबंध सामने नहीं आया है। लेकिन मोबाइल के बहुत ज्यादा इस्तेमाल या मोबाइल टावर के पास रहने से दूसरी समस्याओं के साथ-साथ दिल की धड़कन का अनियमित होने की आशंका जरूर होती है। बेहतर यही है कि हम सावधानी बरतें और मोबाइल का इस्तेमाल कम करें।
SAR की मोबाइल रेडिएशन में क्या भूमिका है?
-कम एसएआर संख्या वाला मोबाइल खरीदें, क्योंकि इसमें रेडिएशन का खतरा कम होता है। मोबाइल फोन कंपनी की वेबसाइट या फोन के यूजर मैनुअल में यह संख्या छपी होती है। वैसे, कुछ भारतीय कंपनियां ऐसी भी हैं, जो एसएआर संख्या का खुलासा नहीं करतीं।
क्या है SAR: अमेरिका के नैशनल स्टैंडर्ड्स इंस्टिट्यूट के मुताबिक, एक तय वक्त के भीतर किसी इंसान या जानवर के शरीर में प्रवेश करने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों की माप को एसएआर (स्पैसिफिक अब्जॉर्पशन रेश्यो) कहा जाता है। एसएआर संख्या वह ऊर्जा है, जो मोबाइल के इस्तेमाल के वक्त इंसान का शरीर सोखता है। मतलब यह है कि जिस मोबाइल की एसएआर संख्या जितनी ज्यादा होगी, वह शरीर के लिए उतना ही ज्यादा नुकसानदेह होगा।
भारत में SAR के लिए क्या हैं नियम?
अभी तक हैंडसेट्स में रेडिएशन के यूरोपीय मानकों का पालन होता है। इन मानकों के मुताबिक हैंडसेट का एसएआर लेवल 2 वॉट प्रति किलो से ज्यादा बिल्कुल नहीं होना चाहिए। लेकिन एक्सपर्ट इस मानक को सही नहीं मानते हैं। इसके पीछे दलील यह दी जाती है कि ये मानक भारत जैसे गर्म मुल्क के लिए मुफीद नहीं हो सकते। इसके अलावा, भारतीयों में यूरोपीय लोगों के मुकाबले कम बॉडी फैट होता है। इस वजह से हम पर रेडियो फ्रीक्वेंसी का ज्यादा घातक असर पड़ता है। हालांकि, केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित गाइडलाइंस में यह सीमा 1.6 वॉट प्रति किग्रा कर दी गई है, जोकि अमेरिकी स्टैंडर्ड है।
मोबाइल को कहां रखें?
मोबाइल को कहां रखा जाए, इस बारे में अभी तक कोई आम राय नहीं बनी है। यह भी साबित नहीं हुआ है कि मोबाइल को पॉकेट आदि में रखने से सीधा नुकसान है, पेसमेकर के मामले को छोड़कर। फिर भी एहतियात के तौर पर महिलाओं के लिए मोबाइल को पर्स में रखना और पुरुषों के लिए कमर पर बेल्ट पर साइड में लगाए गए पाउच में रखना सही है।

गुरुवार, 22 अगस्त 2013

विवेकानंद का चिंतन: हम क्षुद्र नहीं

जो व्यक्ति स्वयं को अविनाशी और अनंत आत्मा के रूप में देखने लगता है, उसे दुख नहीं घेरते। स्वामी विवेकानंद का चिंतन..
जो कोई यह सोचता है कि मैं क्षुद्र हूं, वह भूल कर रहा है। क्योंकि सत्ता केवल एक आत्मा की ही है। सूर्य का अस्तित्व इसलिए है, क्योंकि हम कहते हैं कि सूर्य है। जब मैं उद्घोषित करता हूं कि दुनिया विद्यमान है, तभी उसे अस्तित्व प्राप्त होता है। मेरे बिना वे नहीं रह सकते, क्योंकि मैं सत, चित और आनंद स्वरूप हूं। मैं सदा सुखी हूं, मैं सदा पवित्र हूं, मैं सदा सुहावना हूं। देखो, सूर्य के कारण ही प्राणिमात्र देख सकते हैं, किंतु किसी की भी आंख के दोष का उस पर कोई परिणाम नहीं होता। मैं भी इसी तरह हूं। शरीर की सब इंद्रियों द्वारा मैं काम करता हूं, किंतु काम के भले-बुरे गुण का परिणाम मुझ पर नहीं होता। मेरा कोई नियामक नहीं है और न कोई कर्म। मैं ही कर्मो का नियामक हूं। मैं तो सदा वर्तमान था और अभी भी हूं। मेरा सच्चा सुख भौतिक वस्तुओं में कभी न था। सुख और दुख, अच्छा और बुरा मेरी आत्मा को एक क्षण के लिए भले ही ढक ले, पर फिर भी वहां मेरा अस्तित्व है ही। वे इसलिए निकल जाते हैं, क्योंकि वे बदलने वाले हैं। मैं रह जाता हूं, क्योंकि मैं विकारहीन हूं। अगर दुख आता है, तो मैं जानता हूं कि वह मर्यादित है। बुराई आती है, तो मैं जानता हूं कि वह चली जाएगी। मैं अनंत, शाश्वत और अपरिणामी आत्मा हूं। आओ, इस प्याली का पेय पिएं, जो विकारहीन वस्तु की ओर हमें ले जाती है। ऐसा मत सोचो कि हममें बुराई है, हम साधारण हैं या हम कभी भी मर सकते हैं। यह सच नहीं है।

खुद को पाने की आजादी

चेतना के द्वारा अपने मूल स्वरूप को पा लेना ही स्वतंत्रता है। अगर हम अपने भीतर छिपी खूबियों को पहचान कर उनका परिमार्जन करें, तो यही होगी खुद को पाने की असली आजादी। स्वतंत्रता दिवस पर प्रस्तुत है चिंतन..
फ्रांस के दार्शनिक रूसो ने बहुत दुख के साथ लिखा था कि 'मनुष्य स्वतंत्र पैदा हुआ है, किंतु वह सर्वत्र बंधनों में जकड़ा हुआ है।' रूसो का यह कथन एक प्रकार से फ्रांस की राजक्रांति का नेतृत्व-वाक्य बना और वह 1789 ई. में राजशाही से मुक्त हो गया। इसके बाद से पूरी दुनिया में स्वतंत्रता की एक लहर-सी चलनी शुरू हो गई। भारत तक इस लहर को पहुंचने में लगभग डेढ़ सौ साल लग गए और 1947 में भारत ने अपनी स्वतंत्रता को हासिल कर लिया।
हालांकि ये सब राजनीतिक स्वतंत्रताएं थीं? फिर भी यहां सोचने की बात यह है कि स्वतंत्रता चाहे किसी भी प्रकार की क्यों न हो, उसे इतनी अहमियत क्यों दी जाती है? यदि लोकमान्य तिलक ने कहा कि 'स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा', तो क्या उनका मकसद केवल राजनीतिक स्वतंत्रता तक ही था? तिलक ने जिस 'जन्मसिद्ध अधिकार' की बात कही थी, जाहिर है कि उस स्वतंत्रता का दायरा इतना सीमित नहीं हो सकता। खासकर तब तो और, जब उसको कहने वाला व्यक्ति गंभीर विचारक हो और जिसने गीता के कर्मयोग की व्याख्या की हो।
दरअसल, स्वतंत्रता जीवन जीने की एक प्रणाली ही नहीं है, बल्कि यह अपने आप में जीवन ही है। एक संपूर्ण जीवन। इसका मतलब होता है स्व का तंत्र तथा स्वतंत्रता को पाने का अर्थ हो जाता है- स्वयं को पा लेना। यदि कुछ भी पा लेने की कोशिश में 'स्व' ही खो गया, तो फिर उस पाने का कोई अर्थ नहीं रह जाता, फिर चाहे वह पाना कितना भी बड़ा क्यों न हो। इसी बात को जावेद अख्तर ने अपनी एक कविता में कुछ यूं कहा है, 'ख्वाब में था/ पा लिया। पर खो गई/ वो चीज क्या थी।'

इस बारे में एक रोचक सच्चा किस्सा है। एक समय तलत महमूद गायक बनने मुंबई आए थे। काफी भटकने के बाद संगीतकार अनिल विश्वास ने उन्हें एक गीत गाने का मौका दिया। रिकॉडिंग की तारीख पक्की हो गई। इस बीच तलत साहब जमकर रियाज करते रहे, क्योंकि इसी रिकॉर्डिंग पर उनका गायक बनने का सारा दारोमदार था। रिकॉर्डिंग शुरू हुई। जैसे ही तलत महमूद ने गाना शुरू किया, वैसे ही अनिल विश्वास ने उन्हें रोक दिया। तलत परेशान हो उठे। अनिल ने पूछा कि 'तलत, तुम्हारी आवाज में जो लरजिश थी, आज वह आ नहीं पा रही है। वह कहां चली गई?' तलत ने बड़े उत्साह से बताया, 'जनाब, मैंने अपनी आवाज की लरजिश को खत्म करने के लिए इस बीच बहुत रियाज किया है।' यह सुनकर अनिल विश्वास बोले, 'तलत, जब तुम्हारी आवाज में वही लरजिश फिर से आ जाए, तो आ जाना, तभी रिकॉडिंग कर लेंगे। तुम्हारी आवाज की वह लरजिश ही तो तुम्हारी विशेषता थी।' अपनी विशेषता को पा लेना ही 'स्व' के 'तंत्र' को पा लेना है।
हम सभी के पास दो हाथ-पैर, आंखें, एक पेट तथा एक-एक सिर होने का मतलब यह नहीं होता कि हम सब एक जैसे ही हैं। बनावट के रूप में ऊपरी तौर पर तो यह बात सही हो सकती है, लेकिन आतंरिक तौर पर हम सभी अलग-अलग हैं। प्रकृति ने हम सबको अनोखा बनाया है, अद्भुत बनाया है। ऐसा अलग-अलग बनाया है कि एक के जैसा दूसरा इस पृथ्वी पर कोई नहीं। फिर भला हम क्यों अपनी इस विलक्षणता को भूलकर अपने-आप में स्थित न रहकर दूसरे जैसा होना या बनना चाहते हैं? हम अपने आप में सफल हैं और सुखी भी हैं। लेकिन जैसे ही हम अपनी तुलना दूसरे से, अपने से बड़े से करने लगते हैं, वैसे ही लगने लगता है कि 'हम तो कुछ भी नहीं हैं' और यह सोचकर दुखी हो जाते हैं। इसीलिए हमारे यहां ईश्वर को आनंद कहा गया है- ब्रह्मानंद। जब हम आनंद की स्थिति में रहते हैं, तब हमारे अंदर ईश्वर मौजूद रहता है। अध्यात्म की यह स्थिति स्व में स्थित हुए बिना पाई नहीं जा सकती।
यदि हम अपनी चेतना की थोड़ी भी जांच-पड़ताल करें, तो पाएंगे कि उसकी अपनी मौलिकता तो वहां है ही नहीं। वह बुरी तरह से भ्रष्ट हो गई है। न जाने किन-किन बातों, घटनाओं, परिस्थितियों एवं दृश्यों के प्रभाव ने उसके सच्चे स्वरूप का अपहरण कर लिया है। वह पूरी तरह से परतंत्र हो गई है। इसे ही हमारे ऋषि-मुनियों ने 'माया' कहा है। 'गुलाम चेतना' ही माया है। जैसे ही हमारी यह चेतना दूसरों के प्रभावों से आजाद हो जाती है, वैसे ही वह फिर से ब्रह्म बन जाती है। चेतना के द्वारा अपने मूल स्वरूप को फिर से प्राप्त कर लेना ही 'मुक्ति' है।
मुक्ति की जरूरत केवल आध्यात्मिक क्षेत्र में ही नहीं होती, बल्कि जीवन के व्यवहार में भी होती है। हमारे यहां विद्या का उद्देश्य बताया गया है 'सा विद्या वा विमुक्त'। विद्या वह है, जो विमुक्त करती है। किससे विमुक्ति? उत्तर है, समस्त बाच् प्रभावों से, संकीणर्ताओं तथा दुर्गुणों से विमुक्ति, ताकि व्यक्ति चिंतन के मूल तक पहुंच सके। मुंडकोपनिषद के तीन अर्थयुक्त शब्द है- 'तपसा चीयते ब्रह्म', अर्थात चिंतन की शक्ति से ब्रह्म का विस्तार होता है तथा चेतना की स्वतंत्रता से चिंतन की शक्ति का। भारतीय जीवन-पद्धति में जिस एकांत-साधना की बात कही जाती है, उसका मुख्य उद्देश्य चेतना को स्वतंत्र करना ही होता है, ताकि उसकी रचनात्मक क्षमता जाग्रत होकर कुछ नया रच सके। बड़े-बड़े वैज्ञानिक आविष्कारों का रहस्य चेतना की इसी विमुक्तता में ही निहित है।
हम राजनीतिक रूप से आजाद हो चुके हैं, अब अपनी चेतना, अपने विचारों को आजाद करने का संकल्प लें, ताकि हमारे जीवन की गुणवत्ता और उसका स्वाद ही बदल जाए। एक बार करके तो देखिए।

बुधवार, 21 अगस्त 2013

फेसबुक से बढ़ रहे हैं मानसिक रोगी

वर्चुअल फे्रंडशिप एवं संवाद का माध्यम बनने वाले फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्किंग साइटस लोगों को तेजी से मानसिक रोगी बना रही है। हाल के विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि सोशल नेटवर्किंग साइटों का बहुत अधिक इस्तेमाल डिप्रेशन, एंग्जाइटी, मानसिक तनाव, ऑब्सेसिव कम्पलसिव डिस्आर्डर जैसी मानसिक समस्यायें पैदा कर रहा है और कई बार इनकी परिणति खुदकुशी के रू प में भी हो सकती है।
मनोचिकित्सकों का कहना है कि सोशल नेटवर्किंग साइटों के बढ़ते इस्तेमाल के कारण मानसिक समस्यायें पैदा होने के मामले भारत में भी बढ़ रहे हैं और ये साइटें देश में मानसिक रोगियों की संख्या मे इजाफा के एक प्रमुख कारण हो सकते हैं। विभिन्न अनुमानों के अनुसार देश में मानसिक बीमारियों से ग्रस्त लोगों की संख्या पांच करोड़ तक पहुंच चुकी है।
प्रसिद्ध मनोचिकित्सक एवं दिल्ली साइकिएट्रिक सेंटर (डीपीसी) के निदेशक डा. सुनील मित्तल कहते हैं उनके पास एेसे युवकों एवं बच्चों के इलाज के लिये आने वालों की तादाद बढ़ रही है जो देर रात तक इंटरनेट सर्फिंग एवं चैटिंग करने के कारण अनिद्रा, स्मरण क्षमता में कमी, चिड़चिड़पन और डिप्रेशन जैसी समस्याआें से ग्रस्त हो चुके हैं।
कास्मोस इंस्टीच्यूट आफ मेंटल हेल्थ एंड बिहैवियरल साइंसेस (सीआईएमबीएस) के बाल एवं किशोर मानसिक सेवा विभाग के प्रमुख डा. समीर कलानी ने बताया कि देर रात तक जागकर इंटरनेट का ज्यादा इस्तेमाल करने की लत के कारण बच्चे एवं युवा डिप्रेशन, अनिद्रा, याददाशत में कमी, चिड़चिड़ापन एवं अन्य मानसिक बीमारियों के शिकार बन रहे हैं। यह पाया गया है कि महानगरों एवं बड़े शहरों में बड़ी संख्या में युवा नींद संबंधी समस्याआें के शिकार हैं। कई युवा इन समस्याओं के इलाज के लिये मानसिक चिकित्सक के पास पहुंचते हैं, लेकिन कई खुद व खुद नींद की गोलियां लेने लगते हैं जिससे उनके स्वास्थय पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पडता है। इन गोलियों के इस्तेमाल से याददाश्त में कमी, लीवर की बीमारी, दवा का रिएक्शन हो जाना, दौरे पडऩा जैसी बीमारिया हो सकती है।
सीआईएमबीएस की क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट संस्कृति सिंह बताती हैं कि फेसबुक पर व्यक्ति जब तक रहता है तो उसका कई लोगों के साथ वर्चुअल रिलेशनशिप बनता है लेकिन फेसबुक की दुनिया से बाहर आते ही व्यक्ति अकेलेपन के शिकार हो जाता हैं। फेसबुक के कारण वास्तविक संबंध भी प्रभावित होते हैं जिससे वास्तविक जिंदगी में समस्यायें आती है। ये समस्यायें व्यक्ति को मानसिक तनाव और अन्य मानसिक बीमारियों से ग्रस्त कर सकती हैं। यही नहीं फेसबुक पर बहुत ज्यादा सक्रिय रहने पर व्यक्ति के करियर पर भी प्रभाव पड़ता है।
डा. सुनील मित्तल बताते हैं कि बच्चे और युवा फेसबुक और ट्विटर के स्वास्थ्य पर पडऩे वाले दुष्प्रभाव से अनजान हैं। वे तो अनजाने में ही इसके प्रति एडिक्ट हो जाते हैं और अपनी जिदगी को खतरे में डाल लेते हैं। इस विषय में हुये वैज्ञानिक शोधों के अनुसार सामाजिक अलगाव एवं अकेलापन के कारण जीन की कार्यप्रणाली के तरीके, रोग प्रतिरोध संबंधी जैविक प्रतिक्रिया, हार्मोन के स्तर तथा धमनियों के कार्यों में बदलाव आता है जिसकी परिणति अनेक गंभीर रोगों केरू प में होती है। इसके अलावा इससे मानसिक क्षमता भी प्रभावित होती है।
इस समय दुनिया भर में फेसबुक के 90 करोड़ और ट्विटर के 50करोड से अधिक यूजर्स हैं और इनकी संख्या में हर घंटे तेजी से वृद्धि हो रही है। बच्चे, किशेर एवं युवा स्मार्टफोन, लैपटाप एवं डेस्कटप के जरिये फेसबुक या अन्य सोशल नेटवकिंग साइटों पर चौंटिग करने अथवा तस्वीरों एवं संदेशें का आदान-प्रदान करने में अधिक समय बिताते हैं। 

शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

कोर्ट के दखल से होगी राजनीति की गंगा साफ!

 देश में चुनाव सुधार के नजरिए से कोर्ट केंद्रीय भूमिका में आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने जहां राजनीति में अपराधीकरण और चुनावी वायदों पर राजनीतिक दलों पर अपने फैसलों से शिकंजा कसा, वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी में जातिगत सम्मेलनों पर रोक लगाने का फैसला सुनाकर राजनीतिक दलों को तगड़ा झटका दिया। कोर्ट के इन फैसलों से दूरगामी असर पड़ने की उम्मीद है।
राजनीतिक दल और सरकार भले ही चुनाव सुधारों पर चुप्पी साधे बैठी हो, लेकिन कोर्ट ने मैली होती जा रही राजनीति की गंगा को साफ करने का फैसला कर लिया है।
दागी नेताओं पर शिकंजा
सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई 2013 को राजनीति में अपराधीकरण रोकने की दिशा में अहम फैसला दिया। कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि कोई व्यक्ति जो जेल या पुलिस हिरासत में है तो वह विधायी निकायों के लिए चुनाव लड़ने का हकदार नहीं है। इस फैसले से उन राजनीतिक लोगों को झटका लगेगा जो किसी आपराधिक मामले में दोष साबित होने के बाद होने के बाद इस समय जेल में बंद हैं।
कोर्ट ने कहा कि जेल में होने या पुलिस हिरासत में होने के आधार पर उसका मत देने का अधिकार समाप्त हो जाता है। कोर्ट ने साफ किया कि अयोग्य ठहराए जाने की बात उन लोगों पर लागू नहीं होगी जो किसी कानून के तहत एहतियातन हिरासत में लिए गए हों।
कोर्ट ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य की उस अपील पर यह आदेश दिया जिसमें पटना हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। पटना हाई कोर्ट ने पुलिस हिरासत में बंद लोगों के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी।
9 जुलाई 2013 को इसी पीठ ने जन प्रतिनिधित्व कानून के उस प्रावधान को निरस्त कर दिया था जो दोषी ठहराए गए जन प्रतिनिधियों को सुप्रीम कोर्ट में याचिका लंबित होने के आधार पर अयोग्यता से संरक्षण प्रदान करता था। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि जनप्रतिनिधि दोषी ठहराए जाने की तारीख से ही अयोग्य होंगे।
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि कोर्ट के इन दो फैसलों से राजनीतिक पार्टियां यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य होंगी कि आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारा जाए। जानकारों का कहना है कि फैसला अंतिम नहीं है और इसकी समीक्षा हो सकती है।
घोषणा पत्र के लिए बने गाइडलाइन
इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने पांच जुलाई को चुनाव आयोग को घोषणा पत्रों के कथ्य के नियमन के लिए गाइडलाइन तैयार करने का निर्देश देते हुए कहा था कि राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी घोषणा पत्रों में मुफ्त उपहार देने के वायदे किए जाने से स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों की बुनियाद हिल जाती है। न्यायमूर्ति पी. सदाशिवम और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की पीठ ने कहा कि चुनावी घोषणा पत्र चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले प्रकाशित होते हैं। ऐसे में आयोग इसे अपवाद के रुप में आचार संहिता के दायरे में ला सकता है।
फैसले का व्यापक असर हो सकता है और राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त में लैपटॉप, टेलीविजन, ग्राइंडर, मिक्सर, बिजली के पंखे, चार ग्राम की सोने की थाली और मुफ्त अनाज मुहैया कराने जैसे वायदे किए जाने पर रोक लग सकती है। पीठ ने यह भी कहा कि इस मुद्दे पर अलग से कानून बनाया जाना चाहिए।
याचिका अधिवक्ता एस सुब्रमण्यम बालाजी ने दायर की थी जिसमें मुफ्त उपहार देने के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता ने कहा था कि इस तरह की लोक लुभावन घोषणाएं न सिर्फ असंवैधानिक हैं बल्कि इससे सरकारी खजाने पर भी भारी बोझ पड़ता है।
यूपी में जाति आधारित सम्मेलनों पर रोक
इसी क्रम में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनउ पीठ ने गुरुवार को एक अहम फैसले में पूरे उत्तर प्रदेश में जातियों के आधार पर की जा रही राजनीतिक दलों की रैलियों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। कोर्ट ने पार्टियों को निर्देश दिया है कि वे जातिगत रैलियों और बैठकों से दूर रहें। इस तरह की रैलियों से समाज बंटता है। इसी के साथ अदालत ने मामले में पक्षकारों केंद्र और राज्य सरकार समेत भारत निर्वाचन आयोग और चार राजनीतिक दलों कांग्रेस, बाजेपी, एसपी और बीएसपी को नोटिस जारी किए हैं।
जस्टिस उमानाथ सिंह और जस्टिस महेंद्र दयाल की खंडपीठ ने यह आदेश स्थानीय वकील मोतीलाल यादव की जनहित याचिका पर दिया है। याचिकाकर्ता का कहना था कि उत्तर प्रदेश में जातियों पर आधारित राजनीतिक रैलियों की बाढ आ गयी है और सियासी दल अंधाधुंध जातीय रैलियां कर रहे हैं। याची ने अदालत से कहा कि संविधान के अनुसार सभी जातियां बराबर का दर्जा रखती हैं। किसी पार्टी विशेष द्वारा उन्हें अलग रखना कानून और मूल अधिकारों का हनन है।
(साभार आईबीएन खबर) 

ग्लोबल वार्मिंग से बदल रही है नदियों की चाल!

गरम होती धरती की वजह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं, ये नई खबर नहीं है। लेकिन जो नदी जिंदगी देती है अब उस पर भी ग्लोबल वार्मिंग का असर दिखने लगा है। 400 साल पहले केदारनाथ मंदिर के इर्द-गिर्द ग्लेशियर की ही हुकूमत थी। धीरे-धीरे ये पिघल कर सिमट गया। पिछले 50 साल में हिमालय में इनके पिघलने की रफ्तार तेज हो गई। हिमाचल प्रदेश में लाहौल स्फीति का छोटा शिन्ग्री ग्लेशियर भी अलग नहीं है। इसी ग्लेशियर की बर्फ से चेनाब में पानी आता है।
हिमालय में ऐसे 15000 ग्लेशियर नदियों के पानी के स्रोत है। इनमें से 9500 ग्लेशियर भारतीय इलाके में हैं। जिनमें से 1239 अकेले हिमाचल प्रदेश में हैं। लेकिन, अब ऐसे सभी ग्लेशियरों पर ग्लोबल वार्मिंग का खतरा मंडरा रहा है। नौ किलोमीटर लम्बा छोटा शिन्ग्री ग्लेशियर पिछले 50 सालों में एक किलोमीटर तक पिघल चूका है और अगर हालत जल्द नहीं सुधरे तो चेनाब नदी का यह महत्वपूर्ण ग्लेशियर जल्द ही खत्म हो जाएगा।
खतरा छोटा शिन्ग्री पर ही नहीं है। हिमालय का सबसे बड़ा ग्लेशियर होने के बावजूद गंगोत्री भी बढ़ती गर्मी का ताप झेल नहीं पा रहा। गंगा के पानी का स्रोत ये ग्लेशियर 30 साल में डेढ़ किलोमीटर तक पिघल चुका है। हिमाचल सरकार के स्टेट सेंटर फॉर क्लाइमेंमट चेंज के आंकड़े के मुताबिक हालांकि राज्य में छोटे ग्लेशियर बढ़े हैं-लेकिन बड़े ग्लेशियर खत्म हो रहे हैं।
लाहौल स्फीति में ही 1962 से 2001 के बीच ज्यादातर ग्लेशियर पिघल गए। 10 वर्ग किलोमीटर के 5 ग्लेशियर घटकर महज 2 रह गए। 5 से 10 वर्ग किलोमीटर के 8 ग्लेशियर की जगह अब 5 ही बचे हैं। 3 से 5 वर्ग किलोमीटर के ग्लेशियर भी अब 12 की बजाए 8 ही हैं। जानकार बढ़ती गर्मी को ग्लेशियर पिघलने की वजह बताते हैं। सासे के संयुक्त निदेशक डॉ. एम. आर. भूटियानी के मुताबिक इन ग्लेशियरों की बर्फ कम हो रही है, मलबा बाहर आ रहा है। पठर और तप रहा है जो गर्मी को और मल्टीप्लाई कर रहा है।-
युनिवर्सिटी ऑफ क्वींसलैंड की एक स्टडी के मुताबिक हिरोशिमा पर गिरे परमाणु बम ने धरती का तापमान जितना बढ़ाया, हर सकेंड उसका चार गुना तापमान ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बढ़ रहा है। तापमान बढ़ने की दर भारत में कुछ ज्यादा ही है। एक स्टडी के मुताबिक हर सौ साल में दुनिया का तापमान 0.7 डिग्री सेल्सियस की दर से बढ़ रहा है। तो भारत में ये रफ्तार तीन गुनी है। यहां सौ साल में 1.7 डिग्री के दर से तापमान बढ़ रहा है। इसका असर बर्फबारी की मात्रा पर भी दिखने लगा है। 30 साल में लाहौल स्पिति में बर्फबारी का ट्रेंड बदल गया है। पहले यहां 20 से 25 फीट बर्फ गिरती थी, अब 7 या 8 फीट बर्फ ही पड़ती है।
पूरे हिमालय में छोटा शिन्ग्री जैसे लगभग 1500 ग्लेशियर हैं। इनमें से ज्यादातर तेजी से पिघल रहे हैं। इन ग्लेशियरों का भविष्य खतरे में है और खतरे में है इनसे निकलने वाली गंगा, सतलुज, ब्यास जैसी नदियां भी जिनके पानी पर पहाड़ी और मैदानी इलाकों के करोड़ों लोग जिंदा है। ग्लेशियर ज्यादा पिघलेंगे तो नदी का पानी बढ़ेगा। भाखड़ा बांध में इस बार सतलुज का पानी पिछले साल के मुकाबले दोगुना आया। 25 साल में पहली बार ऐसा हुआ। यहां रोजाना सतलुज का 70 हज़ार क्यूसेक पानी आ रहा है। भाखड़ा-ब्यास प्रबंधन बोर्ड इसे अच्छा संकेत नहीं मान रहा।
बीबीएमबी के सिंचाई सदस्य एसएल अग्रवाल के मुताबिक ग्लेशियर हमारी नदियों के लिए काफी ज़रूरी है। इन पर हो रहे बदलाव पर नजर रखने के लिए हम एक नया प्रोजेक्ट शुरू कर रहे हैं। एक तरफ जहां सतलुज में जलस्तर बढ़ रहा है, वहीं मानसून में रौद्र रूप के लिए बदनाम ब्यास नदी बरसात खत्म होते ही पहाड़ी नाले में बदल जाती है। ब्यास में बरसात और रोहतांग दर्रे के झरनों का पानी आता है। बर्फबारी कम होने से ये झरने सूखने लगे हैं। ब्यास नदी सिर्फ बरसाती नदी बन कर रह गयी है। साफ है सतलुज और ब्यास दोनों नदियां एक दूसरे से एक दम उलट बर्ताव करने लगी हैं।
(साभार आईबीएन खबर)

मंगलवार, 9 जुलाई 2013

दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ा

दुनिया में जहां एक ओर जहरीली ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है वहीं जंगलों की अंधाधुंध कटाई से वन क्षेत्र खतरनाक स्तर तक
कम हो रहे हैं जिससे जलवायु परिवर्तन का खतरा बढ़ता जा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र की यहां जारी ताजा रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक मंदी की शुरूआत में वर्ष 2008-09 में जहरीली गैसों का उत्सर्जन कम रहने के बाद 2009-10 में यह फिर बढ़ गया है। विकसित देशों में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन विकासशील देशों के मुकाबले बहुत ज्यादा है। वर्ष  2008-09 में कार्बन डाईआक्साइड के उत्सर्जन में 0.4 प्रतिशत की गिरावट आई थी, लेकिन वर्ष 2009-10 में इसमें फिर पांच प्रतिशत तक की वृद्धि हो गई। वर्ष 1990 के स्तर से अब तक इसमें 46 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो चुकी है। पिछले दो दशकों के आंकड़ों के विश्लेषण से पता लगता है कि जहरीली गैसों का उत्सर्जन निरंतर बढ़ रहा है। वर्ष 1990 से 2000 के दौरान इस प्रदूषणकारी गैस में 10 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई थी जबकि 2000 से 2010 के दौरान इसमें 33 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो गई।
विकसित देशों में प्रति व्यक्ति हर वर्ष औसत उत्सर्जन करीब 1१ टन है जबकि विकासशील देशों में यह मात्र तीन टन है। दरअसल 1990 तक विकसित देशों में इन गैसों का उत्सर्जन विकासशील देशों की तुलना में दोगुना से भी ज्यादा था। वर्ष 1990 में विकासशील देशों ने जहां मात्र 6.7 अरब टन गैस का उत्सर्जन किया था वहीं विकसित देशों में यह 14.9 प्रतिशत था, लेकिन 2009.10 में विकसित देशों के तीन प्रतिशत के मुकाबले विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में इसमें सात प्रतिशत की वृद्धि हुई है। धरती का तापमान बढ़ाने वाली इस गैस की मात्रा विश्व में वर्ष 1990 में  21.7 टन थी जबकि 2009 में यह 30.१ टन तथा 2010 में 31.7 टन हो गई है।
उधर वन क्षेत्र बढ़ाने के तमाम कानून बनने के बावजूद दुनिया में जंगल बहुत तेजी से कम होते जा रहे हैं और इनकी कमी खतरनाक स्तर पर पहुंच गयी है। वनों की कटाई का मुख्य कारण विश्व की विशाल आबादी का पेट भरने के लिए वन क्षेत्रों को कृषि भूमि में बदलना है। सबसे ज्यादा वनों की कटाई दक्षिणी अमेरिकी देशों और अफ्रीका में हुई है। वर्ष 2005-10 के दौरान इन दोनों क्षेत्रों में हर वर्ष क्रमश 36 लाख हेक्टेयर और 34 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र समाप्त हो गया।  
     जंगल समाप्त होने का सबसे ज्यादा खामियाजा गरीबों और आदिवासियों को भुगतना पड़ा है जो अपनी रोजी-रोटी के लिए वनोंपजों पर निर्भर हैं। जंगलों समेत प्राकृतिक संसाधनों के अतिशत दोहन से पक्षी-स्तनधारी तथा अन्य जीव जंतु सबसे तेज गति से के लुप्तप्राय हो रहे हैं। अंतरराट्रीय प्रकृति संरक्षण संघा के अनुसार दुनिया में पक्षियों की दस हजार स्तनधारियों की साढ़े चार हजार, गर्म जल के मंूगों की 700 तथा उभयचरों की 5700 प्रजातियां हैं। इनमें से सभी प्रजातियां पहले से भी तेज गति से लुप्तप्राय हो रही हैं। 

Dainik Prabhat News



शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

कैसे ले सूचना के अधिकार का फायदा

आरटीआई (राइट टु इन्फर्मेशन) यानी सूचना का अधिकार ने आम लोगों को मजबूत और जागरूक बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है। जम्मू-कश्मीर को छोड़कर यह कानून देश के सभी हिस्सों में लागू है। इस कानून के जरिए कैसे आप सरकारी महकमे से संबंधित अपने काम की जानकारी पा सकते हैं
आरटीआई कानून का मकसद
- इस कानून का मकसद सरकारी महकमों की जवाबदेही तय करना और पारदर्शिता लाना है ताकि भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सके। यह अधिकार आपको ताकतवर बनाता है। इसके लिए सरकार ने केंदीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोगों का गठन भी किया है।
- ‘सूचना का अधिकार अधिनियम 2005′ के अनुसार, ऐसी जानकारी जिसे संसद या विधानमंडल सदस्यों को देने से इनकार नहीं किया जा सकता, उसे किसी आम व्यक्ति को देने से भी इनकार नहीं किया जा सकता, इसलिए अगर आपके बच्चों के स्कूल के टीचर अक्सर गैर-हाजिर रहते हों, आपके आसपास की सड़कें खराब हालत में हों, सरकारी अस्पतालों या हेल्थ सेंटरों में डॉक्टर या दवाइयां न हों, अफसर काम के नाम पर रिश्वत मांगे या फिर राशन की दुकान पर राशन न मिले तो आप सूचना के अधिकार यानी आरटीआई के तहत ऐसी सूचनाएं पा सकते हैं।
- सिर्फ भारतीय नागरिक ही इस कानून का फायदा ले सकते हैं। इसमें निगम, यूनियन, कंपनी वगैरह को सूचना देने का प्रावधान नहीं है क्योंकि ये नागरिकों की परिभाषा में नहीं आते। अगर किसी निगम, यूनियन, कंपनी या एनजीओ का कर्मचारी या अधिकारी आरटीआई दाखिल करता है है तो उसे सूचना दी जाएगी, बशर्ते उसने सूचना अपने नाम से मांगी हो, निगम या यूनियन के नाम पर नहीं।
- हर सरकारी महकमे में एक या ज्यादा अधिकारियों को जन सूचना अधिकारी (पब्लिक इन्फर्मेशन ऑफिसर यानी पीआईओ) के रूप में अपॉइंट करना जरूरी है। आम नागरिकों द्वारा मांगी गई सूचना को समय पर उपलब्ध कराना इन अधिकारियों की जिम्मेदारी होती है।
- नागरिकों को डिस्क, टेप, विडियो कैसेट या किसी और इलेक्ट्रॉनिक या प्रिंटआउट के रूप में सूचना मांगने का हक है, बशर्ते मांगी गई सूचना उस रूप में पहले से मौजूद हो।
- रिटेंशन पीरियड यानी जितने वक्त तक रेकॉर्ड सरकारी विभाग में रखने का प्रावधान हो, उतने वक्त तक की सूचनाएं मांगी जा सकती हैं।
ये विभाग हैं दायरे में
- राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल और मुख्यमंत्री दफ्तर
- संसद और विधानमंडल
- चुनाव आयोग
- सभी अदालतें
- तमाम सरकारी दफ्तर
- सभी सरकारी बैंक
- सारे सरकारी अस्पताल
- पुलिस महकमा
- सेना के तीनों अंग
- पीएसयू
- सरकारी बीमा कंपनियां
- सरकारी फोन कंपनियां
- सरकार से फंडिंग पाने वाले एनजीओ
इन पर लागू नहीं होता कानून
- किसी भी खुफिया एजेंसी की वैसी जानकारियां, जिनके सार्वजनिक होने से देश की सुरक्षा और अखंडता को खतरा हो
- दूसरे देशों के साथ भारत से जुड़े मामले
- थर्ड पार्टी यानी निजी संस्थानों संबंधी जानकारी लेकिन सरकार के पास उपलब्ध इन संस्थाओं की जानकारी को संबंधित सरकारी विभाग के जरिए हासिल कर सकते हैं
राजधानी में आरटीआई
दिल्ली सरकार में प्रशासनिक सुधार विभाग के पूर्व सचिव और आरटीआई एक्सपर्ट प्रकाश कुमार के अनुसार सरकारी फंड लेने वाली सभी प्राइवेट कंपनियां आरटीआई के दायरे में आती हैं। दिल्ली सरकार के विभागों के पीआईओ से जुड़ी सारी जानकारी http://delhigovt.nic.in/rti पर उपलब्ध है। इस साइट पर दिए गए डाउनलोड लिंक पर क्लिक कर आरटीआई का फॉर्म भी डाउनलोड कर सकते हैं। इसमें इसका प्रोफॉर्मा दिया है। आप चाहें तो सादे कागज पर भी तय शुल्क के साथ आवेदन दे सकते हैं। आरटीआई के सेक्शन 19 के तहत अपीलीय अधिकारी के पास आवेदन देने के लिए फॉर्म भी डाउनलोड किया जा सकता है।
बिजली कंपनियां: सेंट्रल इन्फर्मेशन कमिशन के आदेशानुसार प्राइवेट बिजली कंपनियां एनडीपीएल, बीएसईएस आदि भी आरटीआई के दायरे में आती हैं। लेकिन इन कंपनियों ने सेंट्रल इन्फमेर्शन कमिशन के आदेश के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट से स्टे लिया हुआ है और अदालत में मामला लंबित होने के कारण फिलहाल इनके बारे में सूचना नहीं हासिल की जा सकती। हालांकि इन कंपनियों ने अपनी जो सूचना सरकार में दी हुई है, उन्हें सरकार के जरिये हासिल किया जा सकता है।
प्राइवेट फोन कंपनियां: इनकी जानकारी संचार मंत्रालय के जरिये ली जा सकती है।
स्कूल-कॉलेज: सरकारी सहायता प्राप्त प्राइवेट स्कूल भी इसके दायरे में आते हैं। सरकारी सहायता नहीं लेने वाले स्कूलों पर यह कानून नहीं लागू होता, लेकिन शिक्षा विभाग के जरिए उनकी जानकारी भी ली सकती है। कॉलेजों के मामले में भी यही नियम है।
कहां करें अप्लाई
संबंधित विभागों के पब्लिक इन्फमेर्शन ऑफिसर को एक ऐप्लिकेशन देकर इच्छित जानकारी मांगी जाती है। इसके लिए सरकार ने सभी विभागों में एक पब्लिक इन्फर्मेशन ऑफिसर यानी पीआईओ की नियुक्ति की है। संबंधित विभाग में ही पीआईओ की नियुक्ति की जाती है।
कैसे करें अप्लाई
सादे कागज पर हाथ से लिखी हुई या टाइप की गई ऐप्लिकेशन के जरिए संबंधित विभाग से जानकारी मांगी जा सकती है। ऐप्लिकेशन के साथ 10 रुपये की फीस भी जमा करानी होती है।
इनका रखें ध्यान
- किसी भी विभाग से सूचना मांगने में यह ध्यान रखें कि सीधा सवाल पूछा जाए। सवाल घूमा-फिराकर नहीं पूछना चाहिए। सवाल ऐसे होने चाहिए, जिसका सीधा जवाब मिल सके। इससे जन सूचना अधिकारी आपको भ्रमित नहीं कर सकेगा।
- एप्लिकेंट को इसका भी ध्यान रखना चाहिए कि आप जो सवाल पूछ रहे हैं, वह उसी विभाग से संबंधित है या नहीं। उस विभाग से संबंधित सवाल नहीं होने पर आपको जवाब नहीं मिलेगा। हो सकता है आपको जवाब मिलने में बेवजह देरी भी हो सकती है।
- एप्लिकेशन स्पीड पोस्ट से ही भेजनी चाहिए। इससे आपको पता चल जाएगा कि पीआईओ को एप्लिकेशन मिली है या नहीं।
- आरटीआई एक्ट कुछ खास मामलों में जानकारी न देने की छूट भी देता है। इसके लिए एक्ट की धारा 8 देख लें ताकि आपको पता चल सके कि सूचना देने से बेवजह मना तो नहीं किया जा रहा है।
पोस्टल डिपार्टमेंट की जिम्मेदारी
केंद्र सरकार के सभी विभागों के लिए 621 पोस्ट ऑफिसों को सहायक जन सूचना दफ्तर बनाया गया है। आप इनमें से किसी पोस्ट ऑफिस में जाकर आरटीआई काउंटर पर फीस और ऐप्लिकेशन जमा कर सकते हैं। वे आपको रसीद और एक्नॉलेजमेंट (पावती पत्र) देंगे। पोस्ट ऑफिस की जिम्मेदारी है कि वह ऐप्लिकेशन संबंधित अधिकारी तक पहुंचाए। इसके अलावा आप किसी भी बड़े पोस्ट ऑफिस में जाकर खुले लिफाफे में अपनी ऐप्लिकेशन दे सकते हैं। इस तरह आपको पोस्टल चार्ज नहीं देना होगा। आप स्टैंप लगाकर पोस्टल ऑडर या डिमांड ड्राफ्ट के साथ सीधे ऐप्लिकेशन को लेटर बॉक्स में भी डाल सकते हैं।
कैसे लिखें आरटीआई ऐप्लिकेशन
- सूचना पाने के लिए कोई तय प्रोफार्मा नहीं है। सादे कागज पर हाथ से लिखकर या टाइप कराकर 10 रुपये की तय फीस के साथ अपनी ऐप्लिकेशन संबंधित अधिकारी के पास किसी भी रूप में (खुद या डाक द्वारा) जमा कर सकते हैं।
- आप हिंदी, अंग्रेजी या किसी भी स्थानीय भाषा में ऐप्लिकेशन दे सकते हैं।
- ऐप्लिकेशन में लिखें कि क्या सूचना चाहिए और कितनी अवधि की सूचना चाहिए?
- आवेदक को सूचना मांगने के लिए कोई वजह या पर्सनल ब्यौरा देने की जरूरत नहीं। उसे सिर्फ अपना पता देना होगा। फोन या मोबाइल नंबर देना जरूरी नहीं लेकिन नंबर देने से सूचना देने वाला विभाग आपसे संपर्क कर सकता है।
कैसे जमा कराएं फीस
- केंद और दिल्ली से संबंधित सूचना आरटीआई के तहत लेने की फीस है 10 रुपये।
- फीस नकद, डिमांड ड्राफ्ट या पोस्टल ऑर्डर से दी जा सकती है। डिमांड ड्राफ्ट या पोस्टल ऑर्डर संबंधित विभाग (पब्लिक अथॉरिटी) के अकाउंट ऑफिसर के नाम होना चाहिए। डिमांड ड्राफ्ट के पीछे और पोस्टल ऑर्डर में दी गई जगह पर अपना नाम और पता जरूर लिखें। पोस्टल ऑर्डर आप किसी भी पोस्ट ऑफिस से खरीद सकते हैं।
- गरीबी रेखा के नीचे की कैटिगरी में आने वाले आवेदक को किसी भी तरह की फीस देने की जरूरत नहीं। इसके लिए उसे अपना बीपीएल सर्टिफिकेट दिखाना होगा। इसकी फोटो कॉपी लगानी होगी।
- सिर्फ जन सूचना अधिकारी को ऐप्लिकेशन भेजते समय ही फीस देनी होती है। पहली अपील या सेंट्रल इन्फेर्मशन कमिश्नर को दूसरी अपील के लिए भी 10 रुपये की फीस देनी होगी।
- अगर सूचना अधिकारी आपको समय पर सूचना उपलब्ध नहीं करा पाता और आपसे 30 दिन की समयसीमा गुजरने के बाद डॉक्युमेंट उपलब्ध कराने के नाम पर अतिरिक्त धनराशि जमा कराने के लिए कहता है तो यह गलत है। ऐसे में अधिकारी आपको मुफ्त डॉक्युमेंट उपलब्ध कराएगा, चाहे उनकी संख्या कितनी भी हो।
एक्स्ट्रा फीस
सूचना लेने के लिए आरटीआई एक्ट में ऐप्लिकेशन फीस के साथ एक्स्ट्रा फीस का प्रोविजन भी है, जो इस तरह है :
- फोटो कॉपी: हर पेज के लिए 2 रुपये
- बड़े आकार में फोटो कॉपी: फोटो कॉपी की लागत कीमत
- दस्तावेज देखने के लिए: पहले घंटे के लिए कोई फीस नहीं, इसके बाद हर घंटे के लिए फीस 5 रुपये
- सीडी: एक सीडी के लिए 50 रुपये
कब हो सकता है इनकार
कुछ खास हालात में ही जन सूचना अधिकारी आपकी ऐप्लिकेशन लेने से इनकार कर सकता है, जैसे कि :
- अगर ऐप्लिकेशन किसी दूसरे जन सूचना अधिकारी या पब्लिक अथॉरिटी के नाम पर हो।
- अगर आप ठीक तरह से सही फीस का भुगतान न कर पाए हों।
- अगर आप गरीबी रेखा से नीचे के परिवार के सदस्य के रूप में फीस से छूट मांग रहे हैं, लेकिन इससे जुड़े सटिर्फिकेट की फोटोकॉपी न दे पाए हों।
- अगर कोई खास सूचना दिए जाने से सरकारी विभाग के संसाधनों का गलत इस्तेमाल होने की आशंका हो या इससे रेकॉर्डांे को देखने में किसी नुकसान की आशंका हो।
नोट- अगर आरटीआई को जन सूचना अधिकारी रिजेक्ट कर देता है, तो भी आवेदक को वह कुछ सूचनाएं जरूर देगा। ये हैं:
- रिजेक्शन की वजह
- उस टाइम पीरियड की जानकारी, जिसमें रिजेक्शन के खिलाफ अपील दायर की जा सके
- उस अधिकारी का नाम व पता, जिसके यहां इस फैसले के खिलाफ अपील की जा सकती है।
देरी होने पर कार्रवाई
आमतौर पर सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी 30 दिन में मिल जानी चाहिए। जीवन और सुरक्षा से संबंधित मामलों में 48 घंटों में सूचना मिलनी चाहिए, जबकि थर्ड पार्टी यानी प्राइवेट कंपनियों के मामले में 45 दिन की लिमिट है। ऐसा न होने पर संबंधित विभाग के संबंधित अधिकारी पर 250 रुपये रोजाना के हिसाब से 25 हजार रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। गलत या गुमराह करनेवाली सूचना देने या गलत भावना से ऐप्लिकेशन रिजेक्ट करने पर भी कार्रवाई का प्रावधान है।
अपील का अधिकार
- अगर आवेदक को तय समयसीमा में सूचना मुहैया नहीं कराई जाती या वह दी गई सूचना से संतुष्ट नहीं होता है तो वह प्रथम अपीलीय अधिकारी के सामने अपील कर सकता है। पीआईओ की तरह प्रथम अपीलीय अधिकारी भी उसी विभाग में बैठता है, जिससे संबंधित जानकारी आपको चाहिए।
- प्रथम अपील के लिए कोई फीस नहीं देनी होगी। अपनी ऐप्लिकेशन के साथ जन सूचना अधिकारी के जवाब और अपनी पहली ऐप्लिकेशन के साथ-साथ ऐप्लिकेशन से जुड़े दूसरे दस्तावेज अटैच करना जरूरी है।
- ऐसी अपील सूचना उपलब्ध कराए जाने की समयसीमा के खत्म होने या जन सूचना अधिकारी का जवाब मिलने की तारीख से 30 दिन के अंदर की जा सकती है।
- अपीलीय अधिकारी को अपील मिलने के 30 दिन के अंदर या खास मामलों में 45 दिन के अंदर अपील का निपटान करना जरूरी है।
सेकंड अपील कहां करें
- अगर आपको पहली अपील दाखिल करने के 45 दिन के अंदर जवाब नहीं मिलता या आप उस जवाब से संतुष्ट नहीं हैं तो आप 45 दिन के अंदर राज्य सरकार की पब्लिक अथॉरिटी के लिए उस राज्य के स्टेट इन्फर्मेशन कमिशन से या केंद्रीय प्राधिकरण के लिए सेंट्रल इन्फर्मेशन कमिशन के पास दूसरी अपील दाखिल कर सकते हैं। दिल्ली के लोग दूसरी अपील सीधे सेंट्रल इन्फर्मेशन कमिशन में ही कर सकते हैं।
- इसके अलावा कुछ और वजहों से आप सीआईसी जा सकते हैं, जैसे कि अगर आप संबंधित पब्लिक अथॉरिटी में जन सूचना अधिकारी न होने की वजह से आरटीआई नहीं डाल सकते।
- केंद्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी आपकी ऐप्लिकेशन को संबंधित केंद्रीय लोक (जन) सूचना अधिकारी या अपीलीय अधिकारी को भेजने से इनकार करे
- सूचना के अधिकार एक्ट के तहत सूचना पाने की आपकी रिक्वेस्ट ठुकरा दी जाए या आधी-अधूरी जानकारी दी जाए।
सीआईसी का पता : सेंट्रल इन्फर्मेशन कमिश्नर, अगस्त क्रांति भवन, भीकाजी कामा प्लेस, नई दिल्ली -66, फोन : 2616-1137

खाद्य सुरक्षा बिल

खाद्य सुरक्षा बिल की खासियत यह है कि खाद्य सुरक्षा कानून बन जाने से देश की दो तिहाई आबादी को सस्ता अनाज मिलेगा। विधेयक में लाभ प्राप्त करने वालों क प्राथमिकता वाले परिवार और सामान्य परिवारों में बांटा गया है।
प्राथमिकता वाले परिवारों में गरीबी रेखा से नीचे गुजर.बसर करने वाले और सामान्य कोटि में गरीबी रेखा से ऊपर के परिवारों को रखे जाने की बात कही गई है। ग्रामीण क्षेत्र में इस विधेयक के दायरे में 75 प्रतिशत आबादी आएगीए जबकि शहरी क्षेत्र में इस विधेयक के दायरे में 50 प्रतिशत आबादी आएगी।
विधेयक में प्रत्येक प्राथमिकता वाले परिवारों को तीन रुपये प्रति किलोग्राम की दर से चावल और दो रुपये प्रति किलोग्राम की दर से गेहूं उपलब्ध कराने की बात कही गई है। खाद्य सुरक्षा विधेयक के मसौदे के प्रावधानों के तहत देश की 63.5 प्रतिशत जनता को खाद्य सुरक्षा प्रदान की जाएगी।
खाद्य सुरक्षा विधेयक का बजट पिछले वित्तीय वर्ष के 63,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 95,000 करोड़ रुपये कर दिया जाएगा। इस विधेयक के कानून में बदल जाने के बाद अनाज की मांग 5.5 करोड़ मीट्रिक टन से बढ़ कर 6.1 मीट्रिक टन हो जाएगी।
प्रावधान
-63.5 प्रतिशत आबादी को सस्ते दामों में अनाज प्रदान करने का प्रावधान
-खाद्य सुरक्षा विधेयक का बजट पिछले वित्तीय वर्ष के 63,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 95,000 करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव
-कृषि उत्पाद बढ़ाने के लिए 1,10,000 करोड़ रुपये का निवेश करने का प्रस्ताव
-ग्रामीण क्षेत्रों में 75 प्रतिशत आबादी को इस विधेयक का लाभ दिया जाएगा
-शहरी इलाकों में कुल आबादी के 50 फीसदी लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान की जाएगी
-गर्भवती महिलाओंए बच्चों को दूध पिलाने वाली महिलाओंए आठवीं कक्षा तक पढ़ने वाले बच्चों और बूढ़े लोगों को पका हुआ खाना मुहैया करवाया जाएगा
-स्तनपान कराने वाली महिलाओं को महीने के 1000 रुपये भी दिए जाएंगे
-नया कानून लागू होने पर इससे कम दाम में गेहूं और चावल पाना निर्धन लोगों का कानूनी अधिकार बन जाएगा
दो श्रेणियां
इस योजना के लाभार्थियों को दो भागों में बांटा गया है। प्राथमिकता वाले परिवार और सामान्य परिवार ;जैसे एपीएल या गरीबी रेखा से ऊपर आने वाले लोगद्ध।
इस विधेयक के तहत सरकार प्राथमिकता श्रेणी वाले प्रत्येक व्यक्ति को सात किलो चावल और गेहूं देगी। चावल तीन रुपये और गेहूं दो रुपये प्रति किलो के हिसाब से दिया जाएगा। जबकि सामान्य श्रेणी के लोगों को कम से कम तीन किलो अनाज न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधे दाम पर दिया जाएगा।
ग्रामीण क्षेत्रों में 75 प्रतिशत आबादी को इस विधेयक का लाभ दिया जाएगाए जिसमें से कम से कम 46 प्रतिशत प्राथमिकता श्रेणी के लोगों को दिया जाएगा। शहरी इलाकों में कुल आबादी के 50 फीसदी लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान की जाएगी और इनमें से कम से कम 28 प्रतिशत प्राथमिकता श्रेणी के लोगों को दिया जाएगा।
नए प्रावधान
कुछ दिनों पहले खाद्य मंत्री केवी थॉमस ने इस विधेयक के बारे में कहा था कि राष्ट्रीय सलाहकार परिषद और प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद से चर्चा के बाद 2009 में बनाए गए विधेयक के मसौदे में कुछ और प्रावधान जोड़े गए हैं। संशोधित मसौदे में गर्भवती महिलाओंए बच्चों को दूध पिलाने वाली महिलाओंए आठवीं कक्षा तक पढ़ने वाले बच्चों और बूढ़े लोगों को पका हुआ खाना मुहैया करवाया जाएगा।
खाद्य मंत्री के मुताबिकए स्तनपान कराने वाली महिलाओं को महीने के 1000 रुपये भी दिए जाएंगे। इस विधेयक में ऐसा भी प्रावधान हैए जिसके तहत अगर सरकार प्राकृतिक आपदा के कारण लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान नहीं कर पाती हैए तो योजना के लाभार्थियों को उसके बदले पैसा दिया जाएगा।
महत्वपूर्ण है कि जनवितरण प्रणाली के तहत सरकार हर महीने 6 करोड़ 52 लाख बीपीएल परिवारों को 35 किलो गेहूं और चावल प्रदान करती है। इस योजना के तहत गेहूं 4.15 रुपये में दिया जाता है, जबकि चावल का दाम 5.65 रुपये किलो है।
एपीएल की श्रेणी वाले 11.5 करोड़ परिवारों को 6.10 रुपये में 15 किलो गेहूं और 8.30 रुपये में 35 किलो चावल दिए जाते हैं। नया कानून लागू होने के बाद इससे कम दाम में गेहूं और चावल पाना निर्धन लोगों का कानूनी अधिकार बन जाएगा

सूचना का अधिकार

राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार के तहत लाने का ऐतिहासिक निर्णय सुनाने के बाद अब राजनीतिक दल इस बात के लिए बाध्य होंगे कि किसी भी व्यक्ति द्वारा पूछी गई जानकारी को मुहैया करवाएं। लेकिन यह जानना भी बेहद जरूरी है कि आखिर सूचना का अधिकार है क्या और आखिर कैसे हम इसका सफलतम उपयोग कर सकते हैं।
भारत सरकार ने किसी भी सार्वजनिक प्राधिकरण के कार्यकरण में पारदर्शिता और जबावदेही को बढ़ाने के लिए वर्ष 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम बनाया। सूचना के अधिकार में तहत आम व्यक्ति किसी भी कार्यालय से किसी भी तरह की सूचना को प्राप्त कर सकता है। लेकिन इसमें सुरक्षा से संबंधित जानकारी देने का प्रावधान नहीं रखा गया है। अधिकारी देश की रक्षा से जुड़ी बातों को सार्वजनिक न करने की बात कही गई है।
इसमें कार्य की जांच के दस्तावेज या अभिलेखए या सरकारी फाइल में लिखी गई किसी तरह की कोई भी टिप्पणीए उद्धरणों या प्रमाणित प्रतियों और सामग्री के प्रमाणित नमूनों और इलैक्ट्रॉनिक रूप में भंडारित की गई जानकारी पाने का अधिकार है।
कोई भी नागरिक निर्धारित शुल्को सहित हिंदी या अंग्रेजी में लिखित रूप से आवेदन करके सूचना हेतु अनुरोध कर सकता है। सभी सार्वजनिक प्राधिकरण में विभिन्न स्तरों पर एक केन्द्रीय सहायक जन सूचना अधिकारी पूछी गई जानकारी को देने के लिए सुनिश्चित किया गया है। सभी प्रशासनिक कार्यालय में केंद्रीय जन सूचना अधिकारी के पास जनता को आवश्यक सूचना प्रदान करने की व्यवस्था करने का अधिकार है। इसके लिए संबंधित अधिकारी को तीस दिन के अंदर पूछी गई जानकारी का जवाब मुहैया कराना जरूरी हैए अन्यथा वह दंड का भागीदार बन जाता है।

शुक्रवार, 24 मई 2013

बर्फ की चादर में लिपटी सोलंग


मस्त हवा के झोंके, पंछियों का कलरव और दूर कहीं झरने का कोलाहल समूचे परिवेश को जादुई बना देता है। गर्मियों में भी यहां सैलानियों की खूब भीड रहती है और लाहौल घाटी जाने वाले सैलानी यहां जरूर पड़ाव डालते हैं


हिमाचल प्रदेश की मनाली घाटी में स्थित सोलंग नाला एक ऐसा स्थल है जो सैलानियों, साहसिक पर्यटन के शौकीनों, रोमांचक क्रीड़ा प्रेमियों और फिल्मी हस्तियों को बार-बार यहां आने का न्योता देता दिखता है। हर मौसम में सोलंग का मिजाज देखते ही बनता है। गर्मियों में जहां सोलंग में बिछी हरियाली सहसा ही मन मोह लेती है, वहीं सर्दियों में यहां पहुंचकर ऐसा लगता है जैसे बर्फ के साम्राय में आ गए हों। सोलंग नाले के इर्द-गिर्द बसी है सोलंग घाटी। यह नाला ब्यास नदी का मुख्य स्त्रोत माना जाता है। नाले के शीर्ष पर ब्यास कुंड स्थित है। कुल्लू-मनाली घाटियों के ढलानें और उफनती नदियां वैसे भी रोमांच प्रेमियों के लिए स्वर्ग से कम नहीं हैं। लेकिन सोलंग घाटी ने सर्वाधिक ख्याति अर्जित करके देश-विदेश के पर्यटन मानचित्र पर अपना नाम अंकित करवाया है। गर्मियों में जहां सोलंग में आकाश में उड़ने के साहसिक खेलों का आयोजन होता है, वहीं सर्दियों में यहां की बर्फानी ढलानों पर फिसलता रोमांच देखते ही बनता है।

साहसिक खेलों का आयोजन
हिमाचल प्रदेश में कई ऐसे स्थल हैं जहां विभिन्न साहसिक खेलों का आयोजन किया जाता है, लेकिन सोलंग एकमात्र ऐसा स्थल है जहां आकाश में उड़ने के रोमांचक खेलों से लेकर हिमानी क्रीड़ाओं तक का आयोजन होता है। यहां कई बार राष्ट्रीय शीतकालीन खेल आयोजित हो चुके हैं। यहां की ढलानें स्कीइंग के लिए दुनिया की बेहतरीन प्राकृतिक ढलानों में शुमार की जाती हैं। मनाली स्थित पर्वतारोहण संस्थान तो 1961 से यहां स्कीइंग का प्रशिक्षण दे रहा है और यहां के कई युवक-युवतियों ने इस संस्थान से स्कीइंग का प्रशिक्षण हासिल करने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन किया है।

प्रकृति की मनोरम छटा
हिमाचल प्रदेश के खूबसूरत मनाली नगर से सोलंग की दूरी महज 13 किलोमीटर है। समुद्र तल से 2480 मीटर की उंचाई पर स्थित सोलंग में प्रकृति की अनुपम छटा देखते ही बनती है। रई, तोच्च और खनोर के फरफराते पेड़ वातावरण में संगीत घोलते प्रतीत होते हैं। पृष्ठभूमि में चांदी से चमकते खूबसूरत पहाड़ हैं, जिनका सौंदर्य शाम की लालिमा में और भी निखर जाता है। मनाली से सोलंग टैक्सी, कार या दुपहिया वाहन द्वारा भी पहुंचा जा सकता है और सोलंग के सौंदर्य को आत्मसात करके शाम को आप बडे अाराम से मनाली पहुंच सकते हैं। रुकना चाहें तो यहां कुछ रिजॉर्ट भी हैं। सर्दियों में जब यहां की पर्वत श्रृंखलाएं बर्फ की सफेद चादर में लिपट जाती हैं तो यहां का नजारा ही बदल जाता है। जिधर निगाह दौड़ाएं, बर्फ ही बर्फ। जमीन पर जमी बर्फ, दरख्तों पर लदी बर्फ, नदी-नालों पर तैरती बर्फ और पहाड़ों के सीने से लिपटी बर्फ- बड़ा अदभुत और मोहक दृश्य होता है। सोलंग घाटी जब बर्फ से श्रृंगार करती है तो इसका नैसर्गिक रूप देखते ही बनता है और इसी रूप के मोहपाश में बंध कर सैलानी यहां से जाने का नाम नहीं लेते। गर्मियों में तो सोलंग का रूप ही बदला होता है, सर्दियों से एकदम अलग। सोलंग में बिछी हरियाली सहसा ही मन मोह लेती है। दूर-दूर तक हरियावल जंगल, पेड़-पौधे और वनस्पति धरती पर हरा गलीचा बिछा होने का भ्रम पैदा करती है।

फूलों की बिछी चादरघाटी में जब रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं तो एक मादक सुगंध चहुं ओर बिखर जाती है। प्रकृति कितने रूप बदलती है, यह सोलंग आकर पता चलता है। मस्त हवा के झोंके, पंछियों का कलरव और दूर कहीं झरने का कोलाहल समूचे परिवेश को जादुई बना देता है। गर्मियों में भी यहां सैलानियों की खूब भीड रहती है और लाहौल घाटी जाने वाले सैलानी यहां जरूर पड़ाव डालते हैं। सिर्फ सैलानी ही नहीं, फिल्मी दुनिया के लोग भी सोलंग के सम्मोहन में बंधे हैं और शूटिंग के लिए उन्होंने सोलंग को कश्मीर का पर्याय माना है। कई चर्चित फिल्मों की शूटिंग सोलंग की खूबसूरत वादियों में हो चुकी है। स्थानीय निवासियों के लिए सोलंग फिल्म नगरी' बनता जा रहा है।

कुमाऊं का मुख्य पर्यटन स्थल बागेश्वर

बागेश्वर कुमाऊं का एक मुख्य पर्यटन स्थल है। यह नीलेश्वर और भीलेश्वर पर्वत श्रृंखलाओं के बीच सरयू, गोमती व विलुप्त सरस्वती नदी के संगम पर बसा है। पुराने समय से ही बागेश्वर को व्यापारिक मंडी के रूप में जाना जाता है। बागेश्वर में प्रतिवर्ष के बागनाथ मंदिर में ही प्रतिवर्ष विश्वप्रसिध्द उत्तरायणी मेला भी लगता है। प्राचीन समय में दारमा, व्यास, मुनस्यारी के निवासी भोटियों और साथ ही मैदान के व्यापारी भी इस मेले में आते थे। भेटिया जाति के लोग ऊन से बने वस्त्रों और जड़ी-बूटियों को बेचते थे और उसके बदले में अनाज व नमक इत्यादि जरूरत का सामान यहां से ले जाया करते थे। इसी कारण वर्तमान में नुमाइश मैदान कहे जाने वाले स्थान को पहले दारमा पड़ाव व स्वास्थ्य केंद्र वाले स्थान को भोटिया पड़ाव कहा जाता था। बागेश्वर के संगम पर हमेशा ही स्नान पर्व चलते रहता है। अयोध्या में बहने वाली सरयू और बागेश्वर की सरयू नदी एक ही मानी जाती है। सरमूल से निकलकर बागेश्वर से बहते हुए पिथौरागढ़ तक इसे सरयू उसके आगे टनकपुर तक इसे रामगंगा तथा टनकपुर से आगे इसे शारदा नाम से जाना जाता है। अयोध्या में इसे पुन: सरयू नाम से पुकारा जाता है। बागेश्वर का जिक्र स्कन्द पुराण के मानस खंड में भी किया गया है। इसके अनुसार बागेश्वर की उत्पत्ति आठवीं सदी के आस-पास की मानी जाती है। यहां के बागनाथ मंदिर की स्थापना को तेरहवीं शताब्दी का बताया जाता है। 1955 तक बागेश्वर ग्राम सभा में आता था। 1955 में इसे टाउन एरिया माना गया। सन् 62 में इसे नोटिफाइड ऐरिया व 1968 में नगरपालिका के रूप में पहचान मिली। 1997 में इसे जनपद बना दिया गया। स्वतंत्रता संग्राम में भी बागेश्वर का महत्वपूर्ण स्थान है। कुली बेगार आंदोलन की शुरुआत बागेश्वर से ही हुई थी। बागेश्वर अपने विभिन्न ग्लेशियरों के लिए भी विश्व में अलग स्थान रखता है। इन ग्लेशियरों के नाम है - सुंदरढु्रगा, कफनी और पिंडारी ग्लेशियर।

भारत भी झेलेगा ग्लोबल वार्मिग का असर

16 नवंबर को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने जलवायु परिवर्तन पर इंडियन नेटवर्क फॉर क्लायमेट चेंज असेसमेंट की रिपोर्ट जारी करते हुए चेताया है कि यदि पृथ्वी के औसत तापमान का बंढना इसी प्रकार जारी रहा तो अगामी वर्षों में भारत को इसके दुष्परिणाम झेलने होंगे। विभिन्न स्थलाकृतियां (पहाड़, रेगिस्तान, दलदली क्षेत्र व पश्चिमी घाट जैसे समृद्ध क्षेत्र) ग्लोबल वार्मिंग के कहर की शिकार होंगी। 
120 संस्थाओं एवं लगभग 500 वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार भारत में कृषि, जल, पारिस्थितिकी तंत्र एवं जैव विविधता व स्वास्थ्य ग्लोबल वार्मिंग से उत्पन्न समस्याओं से अछूते नहीं रहेंगे। वर्ष 2030 तक औसत सतही तापमान
में 1.7 से 2.0 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है। इस रिपोर्ट में चार भौगोलिक क्षेत्रों - हिमालय क्षेत्र, उत्तर-पूर्वी क्षेत्र, पश्चिमी घाट व तटीय क्षेत्र - के आधार पर पूरे देश पर जलवायु परिवर्तन का अध्ययन किया गया है। इन चारों क्षेत्रों में तापमान में वृद्धि के कारण बारिश और गर्मी-ठंड पर पंडने वाले प्रभावों का अध्ययन कर संभावित परिणामों का अनुमान लगाया गया है।  यह रिपोर्ट बढ़ते तापमान के कारण समुद्री जलस्तर में वृद्धि एवं तटीय क्षेत्रों में आने वाले चक्रवातों पर भी प्रकाश डालती है। पश्चिमी घाट में तापमान में वृद्धि के कारण चावल की उपज में 4 प्रतिशत तक की गिरावट आएगी। इसके अलावा जहां कुछ क्षेत्रों में नारियल की उपज 30 प्रतिशत तक बढ़ेगी, वहीं दक्षिण-पश्चिमी कर्नाटक और तमिलनाडु व महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में पैदावार में कमी आएगी। इसके साथ ही पालतू पशुओं पर भी ग्लोबल वार्मिंग का गंभीर प्रभाव पड़ेगा।  जहां तटीय क्षेत्रों में चावल के सिंचित क्षेत्र में 10 से 20 प्रतिशत की गिरावट आएगी वहीं महाराष्ट्र के तटीय ंजिलों, उत्तरी आंध्र प्रदेश व उड़ीसा में चावल के सिंचित क्षेत्र में 5 प्रतिशत की बढत हो सकती है। उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में मक्का की उपज में 40 प्रतिशत गिरावट दर्ज की जाएगी। चावल की उपज में कहीं 10 प्रतिशत तक कमी आ सकती है तो कहीं 5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की जाएगी।  जलवायु परिवर्तन का मानव स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। बांढ एवं सूखे की स्थिति में विस्थापन केकारण कुपोषण, भुखमरी एवं संक्रामक रोगों का भी खतरा बढ़ जाता है। तापमान में होने वाले बदलावों के कारण डेंगू, मलेरिया और दूसरी बीमारियों के बंढने की आशंका रहेगी। मलेरिया जन स्वास्थ्य की एक गंभीर समस्या है। प्रति वर्ष पूरे विश्व में करीब 50 करोंड लोग मलेरिया की चपेट में आते हैं। भारत में पिछले दस सालों में हर साल मलेरिया के लगभग 20 लाख मामले सामने आते रहे हैं। मच्छरों की विकास प्रक्रिया, उनकी आयु तथा रोग संचरण क्रिया में तापमान एवं आर्द्रता की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। धरती के गरमाने के कारण ऊंचाई वाले क्षेत्र में तापमान में वृद्धि के कारण मलेरिया का खतरा बढ़ सकता है। इसके अलावा तापमान में वृद्धि के साथ डेंगू की महामारी की संभावना भी बढेग़ी। इस साल अकेले दिल्ली में ही डेंगू के करीब पांच हंजार मामले देखे गए।  जलवायु परिवर्तन के कारण रोग उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया, वायरस आदि की संख्या में तीव्रता से वृद्धि स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा करेगी। इसके अलावा गर्म मौसम के कारण मच्छर, चूहों आदि की आबादी बढ़ने की संभावना व्यक्त की जा रही है जिसके पारिणामस्वरूप भविष्य में नई-नई बीमारियों के फैलने का खतरा बढ ज़ाएगा।
यह तो हम जानते ही हैं कि प्रदूषित पर्यावरण करीब एक चौथाई रोगों का कारण बनता है। प्रति वर्ष घरेलू एवं बाहरी वायु प्रदूषण के कारण लगभग 20 लाख लोग मृत्यु के मुंह में समा जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अकेले भारत में ही हर साल चार लाख से अधिक महिलाएं और बच्चे सांस के साथ फेफड़ों में कार्बन पहुंचने के कारण बीमार होते हैं।  जलवायु परिवर्तन की समस्या पर्यावरण और पृथ्वी पर उपस्थित समस्त जीवन के साथ-साथ मानव के रहन-सहन एवं सामाजिक व आर्थिक जीवन को भी प्रभावित करेगी। वैसे इसका प्रभाव धीरे-धीरे दिखाई देने लगा है। वैश्विक गर्माहट के कारण पृथ्वी की जलवायु में परिवर्तन होने से यहां उपस्थित जीवन के सामने अनेक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। आज बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण मौसम में अनियमितता आई है, जिसके परिणामस्वरूप कहीं बांढ तो कहीं सूखे की स्थिति उत्पन्न हो रही है। बदलती जलवायु ने सुनामी, भूस्खलन और तूफानों के खतरे में वृद्धि की है।  बंढते तापमान से पृथ्वी की जैव विविधता भी तहस-नहस होगी। अभी जहां हमारी पृथ्वी जीवन के रंग-बिरंगे रूपों से सजी है वहीं बंढता तापमान जीवों की विलुप्ति का कारण बनेगा। जलवायु परिवर्तन के कारण अनेक जीव धरती से विलुप्त हो सकते हैं। तापमान में वृद्धि के कारण विभिन्न पारस्थितिकी तंत्रों में भी बदलाव आने से वहां विद्यमान जैव विविधता घटेगी।  अब सवाल यह उठता है कि पृथ्वी पर मंडरा रहे ग्लोबल वार्मिंग का कारणक्या है। अनेक वर्षों तक वैज्ञानिकों, समाज विज्ञानियों व बुद्धिजीवियों ने अपने अध्ययन के उपरांत पृथ्वी पर मानवीय गतिविधियों को ही दोषी पाया है। यों-यों मानव ने सभ्यता की सीढ़ियां चढ़ी हैं, त्यों-त्यों उसकी आवश्यकताएं बढी हैं। अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने की खातिर मानव ने प्राकृतिक संपदा का अंधाधुंध दोहन करके इस ग्रह के नांजुक संतुलन को ही गड़बड़ा दिया है। लेकिन यह बात सोचने की है कि बेलगाम दोहन के बावजूद आदमी पहले से ंज्यादा सुखी नहीं हुआ है, बल्कि ंज्यादा दुखी हो गया है। 
औद्योगिक विकास के साथ-साथ विकास प्रक्रियाओं की खातिर कार्बन डाईऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, मीथेन और क्लोरोफ्लोरोकार्बन जैसे पदार्थ धीरे-धीरे वायुमंडल में समाते रहे और इन सभी घटनाओं से पृथ्वी गर्म होने लगी। पृथ्वी का धीरे-धीरे गर्म होना जलवायु में ऐसे अनेक अनगिनत बदलाव का कारण साबित हुआ है जिसके कारण यहां उपस्थित जीवन को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पंड रहा है।     आज शुद्ध जल, शुद्ध मिट्टी और शुद्ध वायु हमारे लिए अपरिचित हो गए हैं। आज विकास की राह सिर्फ इंसान के लिए बनाई जा रही है, इसमें प्रकृति कहीं नहीं है। ऐसी परिस्थितियों में मानवीय मूल्यों और पर्यावरण में होते ह्रास के कारण पृथ्वी और यहां उपस्थित जीवन के खुशहाल भविष्य को लेकर चिंता होने लगी है। ऐसे समय में महात्मा गांधी के 'सादा जीवन उच विचार' वाली विचारधारा को अपनाने की आवश्यकता अनुभव की जा रही है। गांधीजी के विचारों का अनुकरण करने पर मानव प्रकृति के साथ प्रेममयी सम्बंधस्थापित करते हुए आनंदमय जीवन व्यतीत कर इस पृथ्वी ग्रह की सुंदरता को बरकरार रख सकता है।  जलवायु परिवर्तन एवं इससे सम्बंधित विभिन्न समस्याओं, जैसे प्रदूषित होता पर्यावरण, जीवों व वनस्पतियों की प्रजातियों का विलुप्त होना, उपजाऊ भूमि में होती कमी, खाद्यान्न संकट, तटवर्ती क्षेत्रों का क्षरण, ऊर्जा के स्रोतों का कम होना और नई-नई बीमारियों का फैलना आदि संकटों से पृथ्वी ग्रह को बचाने के लिए सभी को प्रयास करने होंगे। समय की मांग है कि हम प्रकृति की चेतावनी को समझें और पर्यावरण से छेड़खानी बंद करें। हम आज प्रदूषण के कारण हो रही पर्यावरण की हानि को अछी तरह समझ चुके हैं। हमें जलवायु परिवर्तन से जीवन पर मंडराते खतरे अब नंजर आने लगे हैं। इसलिए ंजरूरत है अपने लालच और इछाओं से ऊपर उठकर आने वाली पीढी क़े बारे में सोचने की। हमें रासायनिक उर्वरक और कीटनाशियों को छोड़कर जैविक खेती को अपनाना होगा। पर्यावरण की रक्षा करनी होगी। प्लास्टिक, जीवाश्म ईंधन आदि का कम से कम उपयोग करना होगा। अपारंपरिक ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना होगा। जैव-डींजल, सौर ऊर्जा, हाइड्रोजन ईंधन, पन एवं पवन बिजली जैसे प्राकृतिक अक्षय ऊर्जा के स्रोतों को बंडे स्तर पर अपनाना होगा। पर्यावरण सुरक्षित रहेगा तो धरती पर जीवन सुरक्षित रहेगा। आज ंजरूरत है अपनी पिछली गलतियों से सबक लेने की और उन्हें सुधारने की। हमें अपने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए आज से ही कदम उठाने होंगे वरना कल बहुत देर हो जाएगी।  जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने और हमारी पृथ्वी को जीवनदायी ग्रह बनाए रखने के लिए प्रत्येक मानव को प्रकृति के संग-संग चलना होगा ताकि हमारा यह ग्रह जीवनमय बना रहे। आज पृथ्वी के जीवनदायी स्वरूप को बनाए रखने की सर्वाधिक ंजिम्मेदारी मानव के कंधों पर ही है। ऐसे में मानव को ऐसे व्यक्ति या उसके विचारों का अनुसरण करने की आवश्यकता है, जिसने प्रकृति को करीब से जाना-समझा हो और सदैव प्रकृति का सम्मान किया हो। दुनिया में प्रकृति के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाले लोगों में महात्मा गांधी, सुंदरलाल बहुगुणा एवं बाबा आमटे आदि अनेक नाम शामिल हैं। 
आज उपस्थित सामाजिक व पर्यावरणीय विषम परिस्थितियों के लिए हमारा भोगवादी नंजरिया ही ंजिम्मेदार है। इसमें कोई दो राय नहीं कि भोग की बंढती प्रवृत्ति ही प्रकृति का दोहन करवाती है। जल, ंजमीन और भोजन जैसी अनिवार्य सुविधाओं के लिए हमें प्रकृति का दोहन नहीं बल्कि उसका उपयोग करना चाहिए, तभी यह धरती युगों-युगों तक हमारी आवश्यकताओं को पूरा करती हुई जीवन के विविध रूपों के साथ मुस्कुराती रहेगी।