विश्व में भारतीय संस्कृति की पर्याय तथा करोड़ांे हिन्दू अनुयायियों की आस्था की प्रतीक मोक्षदायिनी गंगा त्योहारी मौसम में एक बार फिर और मैली होने को विवश है। वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों ने आगामी त्योहारी के दौरान प्रतिमा विसर्जन तथा पूजा सामग्री के प्रवाह से गंगाजल दस प्रतिशत तक और अधिक दूषित होने की संभावना जताई है।
देश की करीब आधी आबादी की जीवन रेखा गंगा का उदगम उत्तरांचल में स्थित हिमालय के पश्चिमी छोर पर 12 हजार 769 फिट की ऊंचाई पर स्थित गोमुख से माना जाता है। उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल से गुजरते हुए यह पवित्र नदी बंगाल की खाड़ी में लुप्त होने से पहले 2525 किलोमीटर का सफर तय कर करोड़ों भारतीयों को भोजन तथा रोजगार उपलब्ध करा देती है। उत्तर प्रदेश की प्रमुख नदी गंगा इस दौरान वाराणसी, मिर्जापुर, कानपुर और इलाहाबाद समेत उत्तर प्रदेश के एक दर्जन से अधिक जिलों में श्रद्धा, संस्कृति और भक्ति के संगम की अनुपम मिसाल पेश करती है।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार प्रतिमाओं के निर्माण में काम आने वाले प्लास्टर आफ पेरिस में जिप्सम, सल्फर, फासफोरस और मैग्नीशियम नदियों के जल को प्रदूषित करते हैं जबकि मूर्तियों की सजावट के लिये इस्तेमाल होने वाले रसायनिक रंगो में मौजूद मरकरी, कैडमियम, शीशा और कार्बन जल को विषाक्त बनाने में महती भूमिका अदा करते हैं। बोर्ड के अनुसार नदियों में प्रवास करने वाली मछली और चिडिय़ों जैसे जलीय जीव जंतु इन रसायनों से कुप्रभावित होते हैं जबकि इन जंतुओं को खाद्य सामग्री के तौर पर इस्तेमाल करने तथा पेय जल से लोग चर्मरोग, श्वांस रोग, अम्लता तथा कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं।
गणेश पूजा के साथ शुरू हिन्दुओं का त्योहारी मौसम करीब दो माह के बाद छठ पूजा के साथ समाप्त होगा। इस दौरान दुर्गापूजा समेत कई छोटे बड़े त्योहारो से घर और बाजार जगमगायेंगे। दिलचस्प पहलू यह है कि गंगा के प्रति अटूट श्रद्धा रखने वाले ये श्रद्धालु ही इस दौरान गंगा में प्रतिमायें और पूजा सामग्री प्रवाहित कर उसके जल को और मैला करेंगे।
गणेश प्रतिमाओं के विसर्जन का कार्यक्रम सम्पन्न हो चुका है । एकअनुमान के अनुसार इस वर्ष पूरे प्रदेश में गणेश प्रतिमाओं के पंडाल में करीब दो गुना का इजाफा हुआ जबकि 15 दिनों तक चलने वाले पितृपक्ष के बाद श्रद्धालु दुर्गापूजा में व्यस्त हो जाएंगे। दुर्गा प्रतिमाओं और पूजा सामग्री का विसर्जन गंगा, गोमती और यमुना समेत कई छोटी बड़ी नदियों में सम्पन्न होगा।
गैर सरकारी संस्था 'इको फ्रैन्डस के कार्यकारी निदेशक राकेश जायसवाल ने इस सबंध में कहा कि सीवर तथा चर्म टेनरियों से निकले रसायन गंगा को सर्वाधिक प्रदूषित करते हैं मगर श्रद्धा के नाम पर आम लोगों का अल्प मात्रा में ही सही मगर नदियों को प्रदूषित करना खेदजनक है। जायसवाल ने कहा कि मूर्तियों के विसर्जन का मानसून के तुरंत बाद होता है। इस दौरान नदियों में पर्याप्त जल होता है जिससे फौरी तौर पर प्रदूषण का पता नहीं चलता मगर नवम्बर से जून के मध्य जब नदियों में जल की मात्रा कम होती है उस दौरान प्रदूषित सामग्री से जल मे घुलित आक्सीजन सामान्य से काफी क म हो जाती है।
उन्होंने कहा कि नदियों के पीने योग्य जल में सामान्य तौर पर जैविक आक्सीजन डिमांड (बीओडी) तीन मिलीग्राम प्रति लीटर से कम होनी चाहिये जबकि घुलित आक्सीजन (डीओ) की मात्रा 5 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक होनी चाहिये। सीवर के प्रदूषित जल में बीओडी 250 मिलीग्राम प्रति लीटर के करीब होता है जबकि चर्म शोधन इकाइयों से निकले प्रदूषित जल में यह स्तर 2000 मिली प्रति लीटर से अधिक हो सकता है।
उन्होंने सुझाव दिया कि यदि प्लास्टर आफ पेरिस की जगह मिट्टी और जूट से बनी मूर्तियां इस्तेमाल की जाये तथा इनकों रंगने के लिये हानिकारक रसायनिक रंगो की बजाय पर्यावरण के अनुकूल वनस्पतियों से बने रंगों को इस्तेमाल किया जाये तो प्रतिमाओं के विसर्जन से नदियों पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा। पूजा सामग्री को नदियों में विसर्जित करने की बजाय पेड़ अथवा गमलों में डाल देना चाहिये जों खाद का काम करेंगे।

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