शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

कोर्ट के दखल से होगी राजनीति की गंगा साफ!

 देश में चुनाव सुधार के नजरिए से कोर्ट केंद्रीय भूमिका में आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने जहां राजनीति में अपराधीकरण और चुनावी वायदों पर राजनीतिक दलों पर अपने फैसलों से शिकंजा कसा, वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी में जातिगत सम्मेलनों पर रोक लगाने का फैसला सुनाकर राजनीतिक दलों को तगड़ा झटका दिया। कोर्ट के इन फैसलों से दूरगामी असर पड़ने की उम्मीद है।
राजनीतिक दल और सरकार भले ही चुनाव सुधारों पर चुप्पी साधे बैठी हो, लेकिन कोर्ट ने मैली होती जा रही राजनीति की गंगा को साफ करने का फैसला कर लिया है।
दागी नेताओं पर शिकंजा
सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई 2013 को राजनीति में अपराधीकरण रोकने की दिशा में अहम फैसला दिया। कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि कोई व्यक्ति जो जेल या पुलिस हिरासत में है तो वह विधायी निकायों के लिए चुनाव लड़ने का हकदार नहीं है। इस फैसले से उन राजनीतिक लोगों को झटका लगेगा जो किसी आपराधिक मामले में दोष साबित होने के बाद होने के बाद इस समय जेल में बंद हैं।
कोर्ट ने कहा कि जेल में होने या पुलिस हिरासत में होने के आधार पर उसका मत देने का अधिकार समाप्त हो जाता है। कोर्ट ने साफ किया कि अयोग्य ठहराए जाने की बात उन लोगों पर लागू नहीं होगी जो किसी कानून के तहत एहतियातन हिरासत में लिए गए हों।
कोर्ट ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य की उस अपील पर यह आदेश दिया जिसमें पटना हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। पटना हाई कोर्ट ने पुलिस हिरासत में बंद लोगों के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी।
9 जुलाई 2013 को इसी पीठ ने जन प्रतिनिधित्व कानून के उस प्रावधान को निरस्त कर दिया था जो दोषी ठहराए गए जन प्रतिनिधियों को सुप्रीम कोर्ट में याचिका लंबित होने के आधार पर अयोग्यता से संरक्षण प्रदान करता था। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि जनप्रतिनिधि दोषी ठहराए जाने की तारीख से ही अयोग्य होंगे।
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि कोर्ट के इन दो फैसलों से राजनीतिक पार्टियां यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य होंगी कि आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारा जाए। जानकारों का कहना है कि फैसला अंतिम नहीं है और इसकी समीक्षा हो सकती है।
घोषणा पत्र के लिए बने गाइडलाइन
इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने पांच जुलाई को चुनाव आयोग को घोषणा पत्रों के कथ्य के नियमन के लिए गाइडलाइन तैयार करने का निर्देश देते हुए कहा था कि राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी घोषणा पत्रों में मुफ्त उपहार देने के वायदे किए जाने से स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों की बुनियाद हिल जाती है। न्यायमूर्ति पी. सदाशिवम और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की पीठ ने कहा कि चुनावी घोषणा पत्र चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले प्रकाशित होते हैं। ऐसे में आयोग इसे अपवाद के रुप में आचार संहिता के दायरे में ला सकता है।
फैसले का व्यापक असर हो सकता है और राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त में लैपटॉप, टेलीविजन, ग्राइंडर, मिक्सर, बिजली के पंखे, चार ग्राम की सोने की थाली और मुफ्त अनाज मुहैया कराने जैसे वायदे किए जाने पर रोक लग सकती है। पीठ ने यह भी कहा कि इस मुद्दे पर अलग से कानून बनाया जाना चाहिए।
याचिका अधिवक्ता एस सुब्रमण्यम बालाजी ने दायर की थी जिसमें मुफ्त उपहार देने के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता ने कहा था कि इस तरह की लोक लुभावन घोषणाएं न सिर्फ असंवैधानिक हैं बल्कि इससे सरकारी खजाने पर भी भारी बोझ पड़ता है।
यूपी में जाति आधारित सम्मेलनों पर रोक
इसी क्रम में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनउ पीठ ने गुरुवार को एक अहम फैसले में पूरे उत्तर प्रदेश में जातियों के आधार पर की जा रही राजनीतिक दलों की रैलियों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। कोर्ट ने पार्टियों को निर्देश दिया है कि वे जातिगत रैलियों और बैठकों से दूर रहें। इस तरह की रैलियों से समाज बंटता है। इसी के साथ अदालत ने मामले में पक्षकारों केंद्र और राज्य सरकार समेत भारत निर्वाचन आयोग और चार राजनीतिक दलों कांग्रेस, बाजेपी, एसपी और बीएसपी को नोटिस जारी किए हैं।
जस्टिस उमानाथ सिंह और जस्टिस महेंद्र दयाल की खंडपीठ ने यह आदेश स्थानीय वकील मोतीलाल यादव की जनहित याचिका पर दिया है। याचिकाकर्ता का कहना था कि उत्तर प्रदेश में जातियों पर आधारित राजनीतिक रैलियों की बाढ आ गयी है और सियासी दल अंधाधुंध जातीय रैलियां कर रहे हैं। याची ने अदालत से कहा कि संविधान के अनुसार सभी जातियां बराबर का दर्जा रखती हैं। किसी पार्टी विशेष द्वारा उन्हें अलग रखना कानून और मूल अधिकारों का हनन है।
(साभार आईबीएन खबर) 

ग्लोबल वार्मिंग से बदल रही है नदियों की चाल!

गरम होती धरती की वजह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं, ये नई खबर नहीं है। लेकिन जो नदी जिंदगी देती है अब उस पर भी ग्लोबल वार्मिंग का असर दिखने लगा है। 400 साल पहले केदारनाथ मंदिर के इर्द-गिर्द ग्लेशियर की ही हुकूमत थी। धीरे-धीरे ये पिघल कर सिमट गया। पिछले 50 साल में हिमालय में इनके पिघलने की रफ्तार तेज हो गई। हिमाचल प्रदेश में लाहौल स्फीति का छोटा शिन्ग्री ग्लेशियर भी अलग नहीं है। इसी ग्लेशियर की बर्फ से चेनाब में पानी आता है।
हिमालय में ऐसे 15000 ग्लेशियर नदियों के पानी के स्रोत है। इनमें से 9500 ग्लेशियर भारतीय इलाके में हैं। जिनमें से 1239 अकेले हिमाचल प्रदेश में हैं। लेकिन, अब ऐसे सभी ग्लेशियरों पर ग्लोबल वार्मिंग का खतरा मंडरा रहा है। नौ किलोमीटर लम्बा छोटा शिन्ग्री ग्लेशियर पिछले 50 सालों में एक किलोमीटर तक पिघल चूका है और अगर हालत जल्द नहीं सुधरे तो चेनाब नदी का यह महत्वपूर्ण ग्लेशियर जल्द ही खत्म हो जाएगा।
खतरा छोटा शिन्ग्री पर ही नहीं है। हिमालय का सबसे बड़ा ग्लेशियर होने के बावजूद गंगोत्री भी बढ़ती गर्मी का ताप झेल नहीं पा रहा। गंगा के पानी का स्रोत ये ग्लेशियर 30 साल में डेढ़ किलोमीटर तक पिघल चुका है। हिमाचल सरकार के स्टेट सेंटर फॉर क्लाइमेंमट चेंज के आंकड़े के मुताबिक हालांकि राज्य में छोटे ग्लेशियर बढ़े हैं-लेकिन बड़े ग्लेशियर खत्म हो रहे हैं।
लाहौल स्फीति में ही 1962 से 2001 के बीच ज्यादातर ग्लेशियर पिघल गए। 10 वर्ग किलोमीटर के 5 ग्लेशियर घटकर महज 2 रह गए। 5 से 10 वर्ग किलोमीटर के 8 ग्लेशियर की जगह अब 5 ही बचे हैं। 3 से 5 वर्ग किलोमीटर के ग्लेशियर भी अब 12 की बजाए 8 ही हैं। जानकार बढ़ती गर्मी को ग्लेशियर पिघलने की वजह बताते हैं। सासे के संयुक्त निदेशक डॉ. एम. आर. भूटियानी के मुताबिक इन ग्लेशियरों की बर्फ कम हो रही है, मलबा बाहर आ रहा है। पठर और तप रहा है जो गर्मी को और मल्टीप्लाई कर रहा है।-
युनिवर्सिटी ऑफ क्वींसलैंड की एक स्टडी के मुताबिक हिरोशिमा पर गिरे परमाणु बम ने धरती का तापमान जितना बढ़ाया, हर सकेंड उसका चार गुना तापमान ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बढ़ रहा है। तापमान बढ़ने की दर भारत में कुछ ज्यादा ही है। एक स्टडी के मुताबिक हर सौ साल में दुनिया का तापमान 0.7 डिग्री सेल्सियस की दर से बढ़ रहा है। तो भारत में ये रफ्तार तीन गुनी है। यहां सौ साल में 1.7 डिग्री के दर से तापमान बढ़ रहा है। इसका असर बर्फबारी की मात्रा पर भी दिखने लगा है। 30 साल में लाहौल स्पिति में बर्फबारी का ट्रेंड बदल गया है। पहले यहां 20 से 25 फीट बर्फ गिरती थी, अब 7 या 8 फीट बर्फ ही पड़ती है।
पूरे हिमालय में छोटा शिन्ग्री जैसे लगभग 1500 ग्लेशियर हैं। इनमें से ज्यादातर तेजी से पिघल रहे हैं। इन ग्लेशियरों का भविष्य खतरे में है और खतरे में है इनसे निकलने वाली गंगा, सतलुज, ब्यास जैसी नदियां भी जिनके पानी पर पहाड़ी और मैदानी इलाकों के करोड़ों लोग जिंदा है। ग्लेशियर ज्यादा पिघलेंगे तो नदी का पानी बढ़ेगा। भाखड़ा बांध में इस बार सतलुज का पानी पिछले साल के मुकाबले दोगुना आया। 25 साल में पहली बार ऐसा हुआ। यहां रोजाना सतलुज का 70 हज़ार क्यूसेक पानी आ रहा है। भाखड़ा-ब्यास प्रबंधन बोर्ड इसे अच्छा संकेत नहीं मान रहा।
बीबीएमबी के सिंचाई सदस्य एसएल अग्रवाल के मुताबिक ग्लेशियर हमारी नदियों के लिए काफी ज़रूरी है। इन पर हो रहे बदलाव पर नजर रखने के लिए हम एक नया प्रोजेक्ट शुरू कर रहे हैं। एक तरफ जहां सतलुज में जलस्तर बढ़ रहा है, वहीं मानसून में रौद्र रूप के लिए बदनाम ब्यास नदी बरसात खत्म होते ही पहाड़ी नाले में बदल जाती है। ब्यास में बरसात और रोहतांग दर्रे के झरनों का पानी आता है। बर्फबारी कम होने से ये झरने सूखने लगे हैं। ब्यास नदी सिर्फ बरसाती नदी बन कर रह गयी है। साफ है सतलुज और ब्यास दोनों नदियां एक दूसरे से एक दम उलट बर्ताव करने लगी हैं।
(साभार आईबीएन खबर)

मंगलवार, 9 जुलाई 2013

दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ा

दुनिया में जहां एक ओर जहरीली ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है वहीं जंगलों की अंधाधुंध कटाई से वन क्षेत्र खतरनाक स्तर तक
कम हो रहे हैं जिससे जलवायु परिवर्तन का खतरा बढ़ता जा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र की यहां जारी ताजा रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक मंदी की शुरूआत में वर्ष 2008-09 में जहरीली गैसों का उत्सर्जन कम रहने के बाद 2009-10 में यह फिर बढ़ गया है। विकसित देशों में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन विकासशील देशों के मुकाबले बहुत ज्यादा है। वर्ष  2008-09 में कार्बन डाईआक्साइड के उत्सर्जन में 0.4 प्रतिशत की गिरावट आई थी, लेकिन वर्ष 2009-10 में इसमें फिर पांच प्रतिशत तक की वृद्धि हो गई। वर्ष 1990 के स्तर से अब तक इसमें 46 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो चुकी है। पिछले दो दशकों के आंकड़ों के विश्लेषण से पता लगता है कि जहरीली गैसों का उत्सर्जन निरंतर बढ़ रहा है। वर्ष 1990 से 2000 के दौरान इस प्रदूषणकारी गैस में 10 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई थी जबकि 2000 से 2010 के दौरान इसमें 33 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो गई।
विकसित देशों में प्रति व्यक्ति हर वर्ष औसत उत्सर्जन करीब 1१ टन है जबकि विकासशील देशों में यह मात्र तीन टन है। दरअसल 1990 तक विकसित देशों में इन गैसों का उत्सर्जन विकासशील देशों की तुलना में दोगुना से भी ज्यादा था। वर्ष 1990 में विकासशील देशों ने जहां मात्र 6.7 अरब टन गैस का उत्सर्जन किया था वहीं विकसित देशों में यह 14.9 प्रतिशत था, लेकिन 2009.10 में विकसित देशों के तीन प्रतिशत के मुकाबले विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में इसमें सात प्रतिशत की वृद्धि हुई है। धरती का तापमान बढ़ाने वाली इस गैस की मात्रा विश्व में वर्ष 1990 में  21.7 टन थी जबकि 2009 में यह 30.१ टन तथा 2010 में 31.7 टन हो गई है।
उधर वन क्षेत्र बढ़ाने के तमाम कानून बनने के बावजूद दुनिया में जंगल बहुत तेजी से कम होते जा रहे हैं और इनकी कमी खतरनाक स्तर पर पहुंच गयी है। वनों की कटाई का मुख्य कारण विश्व की विशाल आबादी का पेट भरने के लिए वन क्षेत्रों को कृषि भूमि में बदलना है। सबसे ज्यादा वनों की कटाई दक्षिणी अमेरिकी देशों और अफ्रीका में हुई है। वर्ष 2005-10 के दौरान इन दोनों क्षेत्रों में हर वर्ष क्रमश 36 लाख हेक्टेयर और 34 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र समाप्त हो गया।  
     जंगल समाप्त होने का सबसे ज्यादा खामियाजा गरीबों और आदिवासियों को भुगतना पड़ा है जो अपनी रोजी-रोटी के लिए वनोंपजों पर निर्भर हैं। जंगलों समेत प्राकृतिक संसाधनों के अतिशत दोहन से पक्षी-स्तनधारी तथा अन्य जीव जंतु सबसे तेज गति से के लुप्तप्राय हो रहे हैं। अंतरराट्रीय प्रकृति संरक्षण संघा के अनुसार दुनिया में पक्षियों की दस हजार स्तनधारियों की साढ़े चार हजार, गर्म जल के मंूगों की 700 तथा उभयचरों की 5700 प्रजातियां हैं। इनमें से सभी प्रजातियां पहले से भी तेज गति से लुप्तप्राय हो रही हैं। 

Dainik Prabhat News



शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

कैसे ले सूचना के अधिकार का फायदा

आरटीआई (राइट टु इन्फर्मेशन) यानी सूचना का अधिकार ने आम लोगों को मजबूत और जागरूक बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है। जम्मू-कश्मीर को छोड़कर यह कानून देश के सभी हिस्सों में लागू है। इस कानून के जरिए कैसे आप सरकारी महकमे से संबंधित अपने काम की जानकारी पा सकते हैं
आरटीआई कानून का मकसद
- इस कानून का मकसद सरकारी महकमों की जवाबदेही तय करना और पारदर्शिता लाना है ताकि भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सके। यह अधिकार आपको ताकतवर बनाता है। इसके लिए सरकार ने केंदीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोगों का गठन भी किया है।
- ‘सूचना का अधिकार अधिनियम 2005′ के अनुसार, ऐसी जानकारी जिसे संसद या विधानमंडल सदस्यों को देने से इनकार नहीं किया जा सकता, उसे किसी आम व्यक्ति को देने से भी इनकार नहीं किया जा सकता, इसलिए अगर आपके बच्चों के स्कूल के टीचर अक्सर गैर-हाजिर रहते हों, आपके आसपास की सड़कें खराब हालत में हों, सरकारी अस्पतालों या हेल्थ सेंटरों में डॉक्टर या दवाइयां न हों, अफसर काम के नाम पर रिश्वत मांगे या फिर राशन की दुकान पर राशन न मिले तो आप सूचना के अधिकार यानी आरटीआई के तहत ऐसी सूचनाएं पा सकते हैं।
- सिर्फ भारतीय नागरिक ही इस कानून का फायदा ले सकते हैं। इसमें निगम, यूनियन, कंपनी वगैरह को सूचना देने का प्रावधान नहीं है क्योंकि ये नागरिकों की परिभाषा में नहीं आते। अगर किसी निगम, यूनियन, कंपनी या एनजीओ का कर्मचारी या अधिकारी आरटीआई दाखिल करता है है तो उसे सूचना दी जाएगी, बशर्ते उसने सूचना अपने नाम से मांगी हो, निगम या यूनियन के नाम पर नहीं।
- हर सरकारी महकमे में एक या ज्यादा अधिकारियों को जन सूचना अधिकारी (पब्लिक इन्फर्मेशन ऑफिसर यानी पीआईओ) के रूप में अपॉइंट करना जरूरी है। आम नागरिकों द्वारा मांगी गई सूचना को समय पर उपलब्ध कराना इन अधिकारियों की जिम्मेदारी होती है।
- नागरिकों को डिस्क, टेप, विडियो कैसेट या किसी और इलेक्ट्रॉनिक या प्रिंटआउट के रूप में सूचना मांगने का हक है, बशर्ते मांगी गई सूचना उस रूप में पहले से मौजूद हो।
- रिटेंशन पीरियड यानी जितने वक्त तक रेकॉर्ड सरकारी विभाग में रखने का प्रावधान हो, उतने वक्त तक की सूचनाएं मांगी जा सकती हैं।
ये विभाग हैं दायरे में
- राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल और मुख्यमंत्री दफ्तर
- संसद और विधानमंडल
- चुनाव आयोग
- सभी अदालतें
- तमाम सरकारी दफ्तर
- सभी सरकारी बैंक
- सारे सरकारी अस्पताल
- पुलिस महकमा
- सेना के तीनों अंग
- पीएसयू
- सरकारी बीमा कंपनियां
- सरकारी फोन कंपनियां
- सरकार से फंडिंग पाने वाले एनजीओ
इन पर लागू नहीं होता कानून
- किसी भी खुफिया एजेंसी की वैसी जानकारियां, जिनके सार्वजनिक होने से देश की सुरक्षा और अखंडता को खतरा हो
- दूसरे देशों के साथ भारत से जुड़े मामले
- थर्ड पार्टी यानी निजी संस्थानों संबंधी जानकारी लेकिन सरकार के पास उपलब्ध इन संस्थाओं की जानकारी को संबंधित सरकारी विभाग के जरिए हासिल कर सकते हैं
राजधानी में आरटीआई
दिल्ली सरकार में प्रशासनिक सुधार विभाग के पूर्व सचिव और आरटीआई एक्सपर्ट प्रकाश कुमार के अनुसार सरकारी फंड लेने वाली सभी प्राइवेट कंपनियां आरटीआई के दायरे में आती हैं। दिल्ली सरकार के विभागों के पीआईओ से जुड़ी सारी जानकारी http://delhigovt.nic.in/rti पर उपलब्ध है। इस साइट पर दिए गए डाउनलोड लिंक पर क्लिक कर आरटीआई का फॉर्म भी डाउनलोड कर सकते हैं। इसमें इसका प्रोफॉर्मा दिया है। आप चाहें तो सादे कागज पर भी तय शुल्क के साथ आवेदन दे सकते हैं। आरटीआई के सेक्शन 19 के तहत अपीलीय अधिकारी के पास आवेदन देने के लिए फॉर्म भी डाउनलोड किया जा सकता है।
बिजली कंपनियां: सेंट्रल इन्फर्मेशन कमिशन के आदेशानुसार प्राइवेट बिजली कंपनियां एनडीपीएल, बीएसईएस आदि भी आरटीआई के दायरे में आती हैं। लेकिन इन कंपनियों ने सेंट्रल इन्फमेर्शन कमिशन के आदेश के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट से स्टे लिया हुआ है और अदालत में मामला लंबित होने के कारण फिलहाल इनके बारे में सूचना नहीं हासिल की जा सकती। हालांकि इन कंपनियों ने अपनी जो सूचना सरकार में दी हुई है, उन्हें सरकार के जरिये हासिल किया जा सकता है।
प्राइवेट फोन कंपनियां: इनकी जानकारी संचार मंत्रालय के जरिये ली जा सकती है।
स्कूल-कॉलेज: सरकारी सहायता प्राप्त प्राइवेट स्कूल भी इसके दायरे में आते हैं। सरकारी सहायता नहीं लेने वाले स्कूलों पर यह कानून नहीं लागू होता, लेकिन शिक्षा विभाग के जरिए उनकी जानकारी भी ली सकती है। कॉलेजों के मामले में भी यही नियम है।
कहां करें अप्लाई
संबंधित विभागों के पब्लिक इन्फमेर्शन ऑफिसर को एक ऐप्लिकेशन देकर इच्छित जानकारी मांगी जाती है। इसके लिए सरकार ने सभी विभागों में एक पब्लिक इन्फर्मेशन ऑफिसर यानी पीआईओ की नियुक्ति की है। संबंधित विभाग में ही पीआईओ की नियुक्ति की जाती है।
कैसे करें अप्लाई
सादे कागज पर हाथ से लिखी हुई या टाइप की गई ऐप्लिकेशन के जरिए संबंधित विभाग से जानकारी मांगी जा सकती है। ऐप्लिकेशन के साथ 10 रुपये की फीस भी जमा करानी होती है।
इनका रखें ध्यान
- किसी भी विभाग से सूचना मांगने में यह ध्यान रखें कि सीधा सवाल पूछा जाए। सवाल घूमा-फिराकर नहीं पूछना चाहिए। सवाल ऐसे होने चाहिए, जिसका सीधा जवाब मिल सके। इससे जन सूचना अधिकारी आपको भ्रमित नहीं कर सकेगा।
- एप्लिकेंट को इसका भी ध्यान रखना चाहिए कि आप जो सवाल पूछ रहे हैं, वह उसी विभाग से संबंधित है या नहीं। उस विभाग से संबंधित सवाल नहीं होने पर आपको जवाब नहीं मिलेगा। हो सकता है आपको जवाब मिलने में बेवजह देरी भी हो सकती है।
- एप्लिकेशन स्पीड पोस्ट से ही भेजनी चाहिए। इससे आपको पता चल जाएगा कि पीआईओ को एप्लिकेशन मिली है या नहीं।
- आरटीआई एक्ट कुछ खास मामलों में जानकारी न देने की छूट भी देता है। इसके लिए एक्ट की धारा 8 देख लें ताकि आपको पता चल सके कि सूचना देने से बेवजह मना तो नहीं किया जा रहा है।
पोस्टल डिपार्टमेंट की जिम्मेदारी
केंद्र सरकार के सभी विभागों के लिए 621 पोस्ट ऑफिसों को सहायक जन सूचना दफ्तर बनाया गया है। आप इनमें से किसी पोस्ट ऑफिस में जाकर आरटीआई काउंटर पर फीस और ऐप्लिकेशन जमा कर सकते हैं। वे आपको रसीद और एक्नॉलेजमेंट (पावती पत्र) देंगे। पोस्ट ऑफिस की जिम्मेदारी है कि वह ऐप्लिकेशन संबंधित अधिकारी तक पहुंचाए। इसके अलावा आप किसी भी बड़े पोस्ट ऑफिस में जाकर खुले लिफाफे में अपनी ऐप्लिकेशन दे सकते हैं। इस तरह आपको पोस्टल चार्ज नहीं देना होगा। आप स्टैंप लगाकर पोस्टल ऑडर या डिमांड ड्राफ्ट के साथ सीधे ऐप्लिकेशन को लेटर बॉक्स में भी डाल सकते हैं।
कैसे लिखें आरटीआई ऐप्लिकेशन
- सूचना पाने के लिए कोई तय प्रोफार्मा नहीं है। सादे कागज पर हाथ से लिखकर या टाइप कराकर 10 रुपये की तय फीस के साथ अपनी ऐप्लिकेशन संबंधित अधिकारी के पास किसी भी रूप में (खुद या डाक द्वारा) जमा कर सकते हैं।
- आप हिंदी, अंग्रेजी या किसी भी स्थानीय भाषा में ऐप्लिकेशन दे सकते हैं।
- ऐप्लिकेशन में लिखें कि क्या सूचना चाहिए और कितनी अवधि की सूचना चाहिए?
- आवेदक को सूचना मांगने के लिए कोई वजह या पर्सनल ब्यौरा देने की जरूरत नहीं। उसे सिर्फ अपना पता देना होगा। फोन या मोबाइल नंबर देना जरूरी नहीं लेकिन नंबर देने से सूचना देने वाला विभाग आपसे संपर्क कर सकता है।
कैसे जमा कराएं फीस
- केंद और दिल्ली से संबंधित सूचना आरटीआई के तहत लेने की फीस है 10 रुपये।
- फीस नकद, डिमांड ड्राफ्ट या पोस्टल ऑर्डर से दी जा सकती है। डिमांड ड्राफ्ट या पोस्टल ऑर्डर संबंधित विभाग (पब्लिक अथॉरिटी) के अकाउंट ऑफिसर के नाम होना चाहिए। डिमांड ड्राफ्ट के पीछे और पोस्टल ऑर्डर में दी गई जगह पर अपना नाम और पता जरूर लिखें। पोस्टल ऑर्डर आप किसी भी पोस्ट ऑफिस से खरीद सकते हैं।
- गरीबी रेखा के नीचे की कैटिगरी में आने वाले आवेदक को किसी भी तरह की फीस देने की जरूरत नहीं। इसके लिए उसे अपना बीपीएल सर्टिफिकेट दिखाना होगा। इसकी फोटो कॉपी लगानी होगी।
- सिर्फ जन सूचना अधिकारी को ऐप्लिकेशन भेजते समय ही फीस देनी होती है। पहली अपील या सेंट्रल इन्फेर्मशन कमिश्नर को दूसरी अपील के लिए भी 10 रुपये की फीस देनी होगी।
- अगर सूचना अधिकारी आपको समय पर सूचना उपलब्ध नहीं करा पाता और आपसे 30 दिन की समयसीमा गुजरने के बाद डॉक्युमेंट उपलब्ध कराने के नाम पर अतिरिक्त धनराशि जमा कराने के लिए कहता है तो यह गलत है। ऐसे में अधिकारी आपको मुफ्त डॉक्युमेंट उपलब्ध कराएगा, चाहे उनकी संख्या कितनी भी हो।
एक्स्ट्रा फीस
सूचना लेने के लिए आरटीआई एक्ट में ऐप्लिकेशन फीस के साथ एक्स्ट्रा फीस का प्रोविजन भी है, जो इस तरह है :
- फोटो कॉपी: हर पेज के लिए 2 रुपये
- बड़े आकार में फोटो कॉपी: फोटो कॉपी की लागत कीमत
- दस्तावेज देखने के लिए: पहले घंटे के लिए कोई फीस नहीं, इसके बाद हर घंटे के लिए फीस 5 रुपये
- सीडी: एक सीडी के लिए 50 रुपये
कब हो सकता है इनकार
कुछ खास हालात में ही जन सूचना अधिकारी आपकी ऐप्लिकेशन लेने से इनकार कर सकता है, जैसे कि :
- अगर ऐप्लिकेशन किसी दूसरे जन सूचना अधिकारी या पब्लिक अथॉरिटी के नाम पर हो।
- अगर आप ठीक तरह से सही फीस का भुगतान न कर पाए हों।
- अगर आप गरीबी रेखा से नीचे के परिवार के सदस्य के रूप में फीस से छूट मांग रहे हैं, लेकिन इससे जुड़े सटिर्फिकेट की फोटोकॉपी न दे पाए हों।
- अगर कोई खास सूचना दिए जाने से सरकारी विभाग के संसाधनों का गलत इस्तेमाल होने की आशंका हो या इससे रेकॉर्डांे को देखने में किसी नुकसान की आशंका हो।
नोट- अगर आरटीआई को जन सूचना अधिकारी रिजेक्ट कर देता है, तो भी आवेदक को वह कुछ सूचनाएं जरूर देगा। ये हैं:
- रिजेक्शन की वजह
- उस टाइम पीरियड की जानकारी, जिसमें रिजेक्शन के खिलाफ अपील दायर की जा सके
- उस अधिकारी का नाम व पता, जिसके यहां इस फैसले के खिलाफ अपील की जा सकती है।
देरी होने पर कार्रवाई
आमतौर पर सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी 30 दिन में मिल जानी चाहिए। जीवन और सुरक्षा से संबंधित मामलों में 48 घंटों में सूचना मिलनी चाहिए, जबकि थर्ड पार्टी यानी प्राइवेट कंपनियों के मामले में 45 दिन की लिमिट है। ऐसा न होने पर संबंधित विभाग के संबंधित अधिकारी पर 250 रुपये रोजाना के हिसाब से 25 हजार रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। गलत या गुमराह करनेवाली सूचना देने या गलत भावना से ऐप्लिकेशन रिजेक्ट करने पर भी कार्रवाई का प्रावधान है।
अपील का अधिकार
- अगर आवेदक को तय समयसीमा में सूचना मुहैया नहीं कराई जाती या वह दी गई सूचना से संतुष्ट नहीं होता है तो वह प्रथम अपीलीय अधिकारी के सामने अपील कर सकता है। पीआईओ की तरह प्रथम अपीलीय अधिकारी भी उसी विभाग में बैठता है, जिससे संबंधित जानकारी आपको चाहिए।
- प्रथम अपील के लिए कोई फीस नहीं देनी होगी। अपनी ऐप्लिकेशन के साथ जन सूचना अधिकारी के जवाब और अपनी पहली ऐप्लिकेशन के साथ-साथ ऐप्लिकेशन से जुड़े दूसरे दस्तावेज अटैच करना जरूरी है।
- ऐसी अपील सूचना उपलब्ध कराए जाने की समयसीमा के खत्म होने या जन सूचना अधिकारी का जवाब मिलने की तारीख से 30 दिन के अंदर की जा सकती है।
- अपीलीय अधिकारी को अपील मिलने के 30 दिन के अंदर या खास मामलों में 45 दिन के अंदर अपील का निपटान करना जरूरी है।
सेकंड अपील कहां करें
- अगर आपको पहली अपील दाखिल करने के 45 दिन के अंदर जवाब नहीं मिलता या आप उस जवाब से संतुष्ट नहीं हैं तो आप 45 दिन के अंदर राज्य सरकार की पब्लिक अथॉरिटी के लिए उस राज्य के स्टेट इन्फर्मेशन कमिशन से या केंद्रीय प्राधिकरण के लिए सेंट्रल इन्फर्मेशन कमिशन के पास दूसरी अपील दाखिल कर सकते हैं। दिल्ली के लोग दूसरी अपील सीधे सेंट्रल इन्फर्मेशन कमिशन में ही कर सकते हैं।
- इसके अलावा कुछ और वजहों से आप सीआईसी जा सकते हैं, जैसे कि अगर आप संबंधित पब्लिक अथॉरिटी में जन सूचना अधिकारी न होने की वजह से आरटीआई नहीं डाल सकते।
- केंद्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी आपकी ऐप्लिकेशन को संबंधित केंद्रीय लोक (जन) सूचना अधिकारी या अपीलीय अधिकारी को भेजने से इनकार करे
- सूचना के अधिकार एक्ट के तहत सूचना पाने की आपकी रिक्वेस्ट ठुकरा दी जाए या आधी-अधूरी जानकारी दी जाए।
सीआईसी का पता : सेंट्रल इन्फर्मेशन कमिश्नर, अगस्त क्रांति भवन, भीकाजी कामा प्लेस, नई दिल्ली -66, फोन : 2616-1137

खाद्य सुरक्षा बिल

खाद्य सुरक्षा बिल की खासियत यह है कि खाद्य सुरक्षा कानून बन जाने से देश की दो तिहाई आबादी को सस्ता अनाज मिलेगा। विधेयक में लाभ प्राप्त करने वालों क प्राथमिकता वाले परिवार और सामान्य परिवारों में बांटा गया है।
प्राथमिकता वाले परिवारों में गरीबी रेखा से नीचे गुजर.बसर करने वाले और सामान्य कोटि में गरीबी रेखा से ऊपर के परिवारों को रखे जाने की बात कही गई है। ग्रामीण क्षेत्र में इस विधेयक के दायरे में 75 प्रतिशत आबादी आएगीए जबकि शहरी क्षेत्र में इस विधेयक के दायरे में 50 प्रतिशत आबादी आएगी।
विधेयक में प्रत्येक प्राथमिकता वाले परिवारों को तीन रुपये प्रति किलोग्राम की दर से चावल और दो रुपये प्रति किलोग्राम की दर से गेहूं उपलब्ध कराने की बात कही गई है। खाद्य सुरक्षा विधेयक के मसौदे के प्रावधानों के तहत देश की 63.5 प्रतिशत जनता को खाद्य सुरक्षा प्रदान की जाएगी।
खाद्य सुरक्षा विधेयक का बजट पिछले वित्तीय वर्ष के 63,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 95,000 करोड़ रुपये कर दिया जाएगा। इस विधेयक के कानून में बदल जाने के बाद अनाज की मांग 5.5 करोड़ मीट्रिक टन से बढ़ कर 6.1 मीट्रिक टन हो जाएगी।
प्रावधान
-63.5 प्रतिशत आबादी को सस्ते दामों में अनाज प्रदान करने का प्रावधान
-खाद्य सुरक्षा विधेयक का बजट पिछले वित्तीय वर्ष के 63,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 95,000 करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव
-कृषि उत्पाद बढ़ाने के लिए 1,10,000 करोड़ रुपये का निवेश करने का प्रस्ताव
-ग्रामीण क्षेत्रों में 75 प्रतिशत आबादी को इस विधेयक का लाभ दिया जाएगा
-शहरी इलाकों में कुल आबादी के 50 फीसदी लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान की जाएगी
-गर्भवती महिलाओंए बच्चों को दूध पिलाने वाली महिलाओंए आठवीं कक्षा तक पढ़ने वाले बच्चों और बूढ़े लोगों को पका हुआ खाना मुहैया करवाया जाएगा
-स्तनपान कराने वाली महिलाओं को महीने के 1000 रुपये भी दिए जाएंगे
-नया कानून लागू होने पर इससे कम दाम में गेहूं और चावल पाना निर्धन लोगों का कानूनी अधिकार बन जाएगा
दो श्रेणियां
इस योजना के लाभार्थियों को दो भागों में बांटा गया है। प्राथमिकता वाले परिवार और सामान्य परिवार ;जैसे एपीएल या गरीबी रेखा से ऊपर आने वाले लोगद्ध।
इस विधेयक के तहत सरकार प्राथमिकता श्रेणी वाले प्रत्येक व्यक्ति को सात किलो चावल और गेहूं देगी। चावल तीन रुपये और गेहूं दो रुपये प्रति किलो के हिसाब से दिया जाएगा। जबकि सामान्य श्रेणी के लोगों को कम से कम तीन किलो अनाज न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधे दाम पर दिया जाएगा।
ग्रामीण क्षेत्रों में 75 प्रतिशत आबादी को इस विधेयक का लाभ दिया जाएगाए जिसमें से कम से कम 46 प्रतिशत प्राथमिकता श्रेणी के लोगों को दिया जाएगा। शहरी इलाकों में कुल आबादी के 50 फीसदी लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान की जाएगी और इनमें से कम से कम 28 प्रतिशत प्राथमिकता श्रेणी के लोगों को दिया जाएगा।
नए प्रावधान
कुछ दिनों पहले खाद्य मंत्री केवी थॉमस ने इस विधेयक के बारे में कहा था कि राष्ट्रीय सलाहकार परिषद और प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद से चर्चा के बाद 2009 में बनाए गए विधेयक के मसौदे में कुछ और प्रावधान जोड़े गए हैं। संशोधित मसौदे में गर्भवती महिलाओंए बच्चों को दूध पिलाने वाली महिलाओंए आठवीं कक्षा तक पढ़ने वाले बच्चों और बूढ़े लोगों को पका हुआ खाना मुहैया करवाया जाएगा।
खाद्य मंत्री के मुताबिकए स्तनपान कराने वाली महिलाओं को महीने के 1000 रुपये भी दिए जाएंगे। इस विधेयक में ऐसा भी प्रावधान हैए जिसके तहत अगर सरकार प्राकृतिक आपदा के कारण लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान नहीं कर पाती हैए तो योजना के लाभार्थियों को उसके बदले पैसा दिया जाएगा।
महत्वपूर्ण है कि जनवितरण प्रणाली के तहत सरकार हर महीने 6 करोड़ 52 लाख बीपीएल परिवारों को 35 किलो गेहूं और चावल प्रदान करती है। इस योजना के तहत गेहूं 4.15 रुपये में दिया जाता है, जबकि चावल का दाम 5.65 रुपये किलो है।
एपीएल की श्रेणी वाले 11.5 करोड़ परिवारों को 6.10 रुपये में 15 किलो गेहूं और 8.30 रुपये में 35 किलो चावल दिए जाते हैं। नया कानून लागू होने के बाद इससे कम दाम में गेहूं और चावल पाना निर्धन लोगों का कानूनी अधिकार बन जाएगा

सूचना का अधिकार

राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार के तहत लाने का ऐतिहासिक निर्णय सुनाने के बाद अब राजनीतिक दल इस बात के लिए बाध्य होंगे कि किसी भी व्यक्ति द्वारा पूछी गई जानकारी को मुहैया करवाएं। लेकिन यह जानना भी बेहद जरूरी है कि आखिर सूचना का अधिकार है क्या और आखिर कैसे हम इसका सफलतम उपयोग कर सकते हैं।
भारत सरकार ने किसी भी सार्वजनिक प्राधिकरण के कार्यकरण में पारदर्शिता और जबावदेही को बढ़ाने के लिए वर्ष 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम बनाया। सूचना के अधिकार में तहत आम व्यक्ति किसी भी कार्यालय से किसी भी तरह की सूचना को प्राप्त कर सकता है। लेकिन इसमें सुरक्षा से संबंधित जानकारी देने का प्रावधान नहीं रखा गया है। अधिकारी देश की रक्षा से जुड़ी बातों को सार्वजनिक न करने की बात कही गई है।
इसमें कार्य की जांच के दस्तावेज या अभिलेखए या सरकारी फाइल में लिखी गई किसी तरह की कोई भी टिप्पणीए उद्धरणों या प्रमाणित प्रतियों और सामग्री के प्रमाणित नमूनों और इलैक्ट्रॉनिक रूप में भंडारित की गई जानकारी पाने का अधिकार है।
कोई भी नागरिक निर्धारित शुल्को सहित हिंदी या अंग्रेजी में लिखित रूप से आवेदन करके सूचना हेतु अनुरोध कर सकता है। सभी सार्वजनिक प्राधिकरण में विभिन्न स्तरों पर एक केन्द्रीय सहायक जन सूचना अधिकारी पूछी गई जानकारी को देने के लिए सुनिश्चित किया गया है। सभी प्रशासनिक कार्यालय में केंद्रीय जन सूचना अधिकारी के पास जनता को आवश्यक सूचना प्रदान करने की व्यवस्था करने का अधिकार है। इसके लिए संबंधित अधिकारी को तीस दिन के अंदर पूछी गई जानकारी का जवाब मुहैया कराना जरूरी हैए अन्यथा वह दंड का भागीदार बन जाता है।