मेरी ज़िन्दगी एक बिखरी किताब है,
मेरी ज़िन्दगी
एक बिखरी किताब है
हाल ज़िन्दगी
का उस में लिखा है
हर पन्ना बिखरा हुआ
इधर उधर उड़ा हुआ
बेतरतीबी से फैला हुआ
सब किस्सों से भरे
किसी में अच्छे पलों का वर्णन
कुछ में दर्द की दास्ताँ है
कुछ पन्ने ग़ुम हुए
कुछ पर लिखे हर्फ़ मंद हुए
कुछ अनपढ़े,कुछ नए लगते हैं
कुछ ज्यादा पढ़े गए
वक़्त से पहले ही फट गए
कुछ खो जाएँ,मन कहता है
कुछ निरंतर पढूं,दिल चाहता है
कितने पन्ने और जुड़ेंगे
कितने रहेंगे,कितने उड़ेंगे
पता नहीं मुझ को
मुझ को तो चलते रहना है
निरंतर कुछ करना है
हर पन्ने पर कुछ
लिखना है

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